मिशन एडमिशन : एक बार में दो माह की फीस
जागरण संवाददाता, मैनपुरी : साहब, प्राइवेट स्कूलों का तो राग ही निराला है। अभिभावकों की जेब पर डाका ड
जागरण संवाददाता, मैनपुरी : साहब, प्राइवेट स्कूलों का तो राग ही निराला है। अभिभावकों की जेब पर डाका डालने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। नया शिक्षण सत्र शुरु होते ही इनकी मनमानी एक बार फिर शुरु हो गई है। एक बार में दो माह की फीस वसूल रहे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं, अलग-अलग प्रकार की शुल्क के नाम पर भी बेखौफ वसूली का खेल खेला जा रहा है। अभिभावकों ने पूछने की हिम्मत की तो बच्चों को कहीं और पढ़ाने की बात सुननी पड़ रही है।
मुहल्ला देवपुरा निवासी अंकुश (पांच) शहर के एक अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ता है। परीक्षा पास की तो नई क्लास में दाखिले के लिए परिजन फिर स्कूल पहुंचे। मगर, फीस की रसीद देखकर परिजन हैरान रह गए। एडमिशन फीस के साथ एक अतिरिक्त महीने की फीस तो मांगी ही गई, साथ ही साल के शिक्षण कार्य के लिए अलग-अलग प्रकार का शुल्क भी बताया गया। मजबूरी में परिजनों को स्कूल प्रबंधन की बात मानकर मनमानी फीस जमा करानी पड़ी।
यह महज किसी एक स्कूल की बात नहीं है। सभी प्राइवेट स्कूल इन दिनों अभिभावकों से खुली वसूली पर आमादा हैं। स्थिति यह है कि एक साथ दो-दो महीनों की फीस मांगी जा रही है। इतना ही नहीं, बच्चों की यूनीफॉर्म फीस, भवन निर्माण फीस, पेयजल व्यवस्था की फीस, प्रोजेक्टर रूम, एडवांस स्टडी क्लासेस, कंप्यूटर शिक्षा के साथ योग और खेलकूद के नाम पर अलग-अलग फीस निर्धारित कर दी गई है। स्कूल संचालक बाकायदा अभिभावकों को फीस की रसीद भी उपलब्ध करा रहे हैं। फीस तो वसूली, सुविधाएं नदारद
प्राइवेट स्कूल संचालक तमाम सुविधाओं के नाम पर अभिभावकों से फीस तो वसूलते हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर में पीने के साफ पानी के भी प्रबंध नहीं हैं। ज्यादातर स्कूल तो ऐसे हैं जो घरों में ही संचालित हो रहे हैं। खेल मैदान और उपकरणों के नाम पर फीस ली जाती है, लेकिन न तो मैदान हैं और न ही खेल सामग्री। शुद्ध पेयजल के नाम पर भी अभिभावकों से शुल्क लिया जाता है, लेकिन बच्चों को पीने के लिए हैंडपंप का पानी या फिर टंकी का पानी दिया जाता है। कंप्यूटर का शुल्क तो लिया जाता है लेकिन साल भर बच्चों को कंप्यूटर की जानकारी ही नहीं दी जाती।
एडमिशन से पहले करें सुविधाओं की पड़ताल
अगर आप भी अपने बच्चों के दाखिले की तैयारी कर रहे हैं तो स्कूलों के प्रास्पेक्टस और उनके लुभावने ऑफरों की बजाय स्वयं सुविधाओं की पड़ताल करें।
- विद्यालय में कितने कंप्यूटर उपलब्ध हैं। आपसे कंप्यूटर शुल्क वसूला जाता है। यह देखें कि आपके बच्चे का कंप्यूटर सीखने का नंबर क्या प्रतिदिन आएगा।
- एडवांस क्लास के नाम पर भी फीस वसूली जाती है। पड़ताल करें कि एडवांस क्लास में बच्चे को नई जानकारियां दी जाएंगी या फिर सीडी के जरिए सिर्फ चित्र दिखाए जाएंगे।
- स्कूलों में बच्चों के खेलने के लिए पर्याप्त मैदान और खेल सामग्री है या नहीं।
- योग सिखाने के लिए क्या व्यवस्था है। क्या, योग शिक्षक है या सामान्य शिक्षकों से ही इसकी शिक्षा दिलाई जाती है। बोले लोग
'प्राइवेट स्कूलों की तो मनमानी चल रही है। किसी भी स्कूल की फीस निर्धारित ही नहीं है। हर कोई अपने भवन के हिसाब से फीस वसूल रहा है। महंगाई के दौर में अभिभावकों की जेब काटी जा रही है।'आशीष कुमार, छपट्टी।
'तमाम प्रकार की फीस वसूली जाती है। लेकिन, स्कूलों में सुविधाएं ढूंढे़ नहीं मिलतीं। प्रशासन को भी इस मामले में सख्ती करनी चाहिए। प्राइवेट स्कूलों की भी यदि जांच हो तो मनमानी पर अंकुश लग सकता है।'महेंद्र यादव एड. राजीव गांधी नगर। 'बोर्ड को एक टीम का गठन करना चाहिए जो विद्यालयों में व्यवस्थाओं की पड़ताल करे। अभिभावकों से जो फीस ली जा रही है, उसका भौतिक सत्यापन हो कि सुविधाएं हैं भी या नहीं।'सौरभ पांडेय, अधिवक्ता, नगला पजाबा। 'एक बार में दो-दो माह की फीस वसूलते हैं। अभिभावक यदि पूछना चाहें तो उन्हें यह कहकर डरा दिया जाता है कि बच्चे का एडमिशन कहीं और करा लीजिए। विकल्प न होने के कारण हमें तो मनमानी झेलनी पड़ती है।'गो¨वद पाल, आवास विकास कॉलोनी।