मंदिर में फकीर की मजार और महंत की समाधि
दिलीप शर्मा मैनपुरी गंगा-जमुनी तहजीब के लिए मशहूर देश में साप्रदायिक सौहार्द की मिसालें बिखरी पड़ी हैं।
दिलीप शर्मा, मैनपुरी: गंगा-जमुनी तहजीब के लिए मशहूर देश में साप्रदायिक सौहार्द की मिसालें बिखरी पड़ी हैं। मैनपुरी का प्राचीन भीमसेन मंदिर भी इसका ही एक प्रतीक है। 12वीं सदी में निíमत बताए जाने वाले इस शिव मंदिर में 200 साल से यहा के महंत की समाधि के साथ एक मुस्लिम फकीर की मजार भी बनी हुई है। श्रावण मास में हर साल उमड़ने वाली शिव भक्तों की भीड़ दोनों को ही पूजती है।
शहर स्थित भीमसेन मंदिर में जिले में ही नहीं आसपास के जिलों से भी श्रद्धालु आते हैं। यहा स्थापित शिवलिंग को सिद्ध माना जाता है। महाशिवरात्रि और श्रावण मास के सोमवारों को यहा सर्वाधिक श्रद्धालु उमड़ते हैं। मंदिर के अंदर पुजारी नरोत्तमदास की समाधि बनी है। मंदिर परिसर में ही मुस्लिम फकीर गुलाब खा की मजार भी है।
मंदिर प्रशासन से जुड़े वीरसिंह के मुताबिक, घटना लगभग 200 साल पुरानी है। महाशिवरात्रि पर मंदिर में भंडारा चल रहा था, तभी एक मुस्लिम फकीर वहा आए और उन्होंने हाथ में पकड़े पात्र में खीर मागी। परोसने वाले खीर डालते रहे, लेकिन पात्र नहीं भरा। यह चमत्कार देख पुजारी नरोत्तमदास को सूचना दी तो वह अपने कमंडल में खीर लेकर आए। उन्होंने अपने कमंडल से खीर डालना शुरू किया। इसके बाद न तो फकीर का कमंडल भरा और नहीं पुजारीजी का कमंडल खाली हुआ। काफी देर चले इस सिलसिले के बाद दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया। उसके बाद गुलाब खा नामक वह फकीर अपने जीवन काल में मंदिर परिसर में ही रहे। उनके निधन के बाद उनकी मजार बनवा दी गई, यह आज भी स्थापित है। मंदिर में आने वाले जिस श्रद्धा भाव से पुजारी नरोत्तम दास की समाधि को पूजते हैं, उसी श्रद्धा से मजार पर भी पुष्प अíपत करते हैं। पौराणिक काल का बताया जाता है मंदिर
भीमसेन मंदिर को पौराणिक काल का माना जाता है। प्राचीन समय में मैनपुरी क्षेत्र ऋषियों की तपोस्थली हुआ करता था। उसी समय मंदिर की स्थापना की गई थी। मंदिर में स्थापित भगवान का विग्रह भी पौराणिक काल का है, हालाकि माना जाता है कि भगवान भीमसेन का मंदिर तो 12वीं शताब्दी में पुनíनमित हुआ था। पद्मासन की मुद्रा में भगवान शिव
यहा भगवान शिव पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं, उनके चेहरे पर बड़ी-बड़ी मूंछ हैं। किवदंती है कि अज्ञातवास के दौरान इच्छु नदी (वर्तमान में ईशन) के किनारे से गुजरते समय पाडव यहा रुके थे और उन्होंने भगवान भीमसेन की अर्चना की थी।