दिव्यांगों को सर्टिफिकेट के लिए किया जा रहा परेशान
जागरण संवाददाता, मैनपुरी : कुदरत ने आंखों की रोशनी छीनी तो दिव्यांगता ने 'धरती के भगवान' से उम्मीद ब
जागरण संवाददाता, मैनपुरी : कुदरत ने आंखों की रोशनी छीनी तो दिव्यांगता ने 'धरती के भगवान' से उम्मीद बांध ली। मगर, भ्रष्ट व्यवस्था की अंधेरगर्दी देखिए, जिनसे मदद की उम्मीद बांध रखी है, सीएमओ कार्यालय के वही जिम्मेदार परीक्षण की आड़ में नेत्रों से दिव्यांग की भावनाओं से खेल रहे हैं। दिव्यांगता का हर रोज उपहास उड़ाया जा रहा है। अफसोस कि सीएमओ की मानवीय संवेदनाएं भी मदद के लिए उन्हें मजबूर नहीं कर रही हैं। रोज-रोज की मुश्किलों से थक चुके नेत्रों से दिव्यांग ने हाथ जोड़कर अपना प्रमाण पत्र दिलवाने की गुहार लगाई है। दिव्यांगों की दिव्यांगता साबित करने के लिए सीएमओ कार्यालय परिसर के चिकित्सकों का प्रमाण पत्र जरूरी है। प्रमाण पत्र देने से पहले दिव्यांगता की जांच कराए जाने का नियम है।
सोमवार को जिले भर से नेत्रों से दिव्यांग एवं अल्पदृष्टि पीड़ितों को जांच के लिए बुलाया गया था। 44 डिग्री सेल्सियस तापमान पर आसमान से बरसती आग के बीच नेत्रों से दिव्यांग जांच कक्ष के बाहर लाइन लगाए खडे़ थे। दोपहर एक बजे तक डॉक्टर साहब का ही अता-पता नहीं था। घंटों इंतजार कर हार चुकी अंधी बूढ़ी हड्डियों ने आखिरकार जवाब दे ही दिया। नेत्र रोग और ईएनटी विशेषज्ञ के न आने से परेशान नेत्रों से दिव्यांगों से पहले तो वहां के कर्मचारियों ने अभद्रता की। बाद में परेशान नेत्रों से दिव्यांगों ने सीएमओ कार्यालय पहुंचकर उनसे मदद की गुहार लगाई, लेकिन कोई मदद हो न सकी। थक-हारकर वापस घरों को लौट गए।
ईएनटी विशेषज्ञ हैं नहीं, फिर भी बुलाए दिव्यांग
जिले में ईएनटी विशेषज्ञ का पद लगभग साढे़ तीन साल से खाली पड़ा हुआ है। यह जानते हुए भी स्वास्थ्य अधिकारियों द्वारा नाक, कान और गला से संबंधित मरीजों को भी जांच के लिए बुलाया जाता है। बिना चिकित्सक के दिव्यांग परेशान होते हैं और बगैर उपचार के ही वापस लौट जाते हैं। न तो पानी के प्रबंध हैं और न ही मरीजों को खडे़ होने के लिए छांव के। तपती दोपहरी में धूप और लू में ही घंटों खड़े होकर अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। साहब, हम तो खुद मोहताज हैं
भगवान ने आंखों की रोशनी छीन ली। सोचा था कि धरती के भगवान डॉक्टर मदद करेंगे। यहां भी कोई नहीं सुनता। बुढ़ापे में प्रमाण पत्र लेने के लिए किन-किन मुश्किलों से जूझकर आना पड़ता है, ये कोई नहीं समझता।
सुभाष चंद्र वर्मा, दरीबा।
सरकार कहती है कि बेहतर व्यवस्था कराई गई है। व्यवस्था संभालने के लिए भी यदि बेहतर लोगों को बिठाया जाए तो किसी को भी परेशानी का सामना ही न करना पडे़। यहां तो हर कोई अपना रौब झाड़ता दिखता है।
विष्णु पाल, नगला महानंद।
मेरी देखने की शक्ति कमजोर है। अधिकारी तो अच्छी तरह से देख सकते हैं। जहां डॉक्टर ही नहीं हैं, वहां हम मजबूर लोगों को बेवजह बुलाकर आखिर क्यों परेशान किया जाता है। अगर, नियम से काम करें तो हमें मुसीबत उठानी ही न पडे़।
प्रतीक्षा, भोगांव।
साहब, व्यवस्था बड़ी खराब है। हम बेबस लोगों को भी परेशान किया जाता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ की तैनाती है लेकिन फिर भी वे जांच के लिए नहीं आए। कोई सुविधा नहीं है। हर बार परेशान होकर बिना राहत के ही लौटना पड़ता है।
दीवान खां, भरतपुर।
अधिकारी कहिन
दिव्यांगों की समस्या सुनी है। छांव और पानी के पर्याप्त प्रबंध कराए जाएंगे। उन्हें भविष्य में दिक्कत न हो, इसके लिए नए सिरे से व्यवस्था कराई जाएगी।
डॉ. अर¨वद कुमार गुप्तामुख्य चिकित्सा अधिकारी, मैनपुरी।