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13 साल के देश प्रेमी ने लिखी थी बेवर बलिदान की गाथा

14 अगस्त1942 में देशप्रेमियों ने थाने पर झंडा फहरा दिया था।

By JagranEdited By: Published: Fri, 05 Feb 2021 05:09 AM (IST)Updated: Fri, 05 Feb 2021 05:09 AM (IST)
13 साल के देश प्रेमी ने लिखी थी बेवर बलिदान की गाथा
13 साल के देश प्रेमी ने लिखी थी बेवर बलिदान की गाथा

दिलीप शर्मा, मैनपुरी: अगस्त क्रांति के दौर में बेवर के वीरों ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। 13 साल के एक देश प्रेमी छात्र ने बलिदान की गौरवमयी कहानी की नींव रखी थी। पूरा बेवर क्रांति के रंग में रंग गया था और अंग्रेज सरकार के नुमाइंदों को खदेड़कर थाने पर तिरंगा फहरा दिया था। बाद में अंग्रेज सरकार ने क्रांतिकारियों पर गोलियां बरसाई, जिसमें छात्र सहित कई अन्य शहीद हो गए थे। चौरी-चौरा शताब्दी महोत्सव के तहत गुरुवार को जब वंदेमातरम गायन हुआ तो सभी ने इन शहीदों को नमन किया।

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वर्ष 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन जिले में भी जोर पकड़ रहा था। 11 और 12 अगस्त,1942 को बेवर में हीरालाल दीक्षित और कढ़ोरीलाल गुप्ता गिरफ्तार कर लिए। इसके विरोध में 14 अगस्त को नगर के टाउन मिडिल स्कूल के छात्रों ने क्रांतिकारियों के साथ नगर में जुलूस निकाला। नेतृत्व 13 वर्षीय छात्र कृष्ण कुमार मिश्र कर रहे थे। पुलिस ने जुलूस में शामिल गयाप्रसाद को गिरफ्तार किया तो लोगों ने उनको छुड़ा लिया। फिर छात्रों ने थाने के भवन पर तिरंगा फहराकर जुलूस खत्म कर दिया। इसके बाद तत्कालीन कलक्टर ने मैनपुरी से एक पुलिस दल बेवर भेजा।

14-15 अगस्त,1942 की रात में ही बेवर से महाराम, सूबेदार आर्य, शंभूदयाल, मन्नीलाल आदि को गिरफ्तार कर लिया गया। 15 अगस्त की सुबह छात्रों ने गिरफ्तार नेताओं को थाने से छुड़ाने के लिए दोपहर में फिर जुलूस निकाला। थाने के पास पहुंचते ही पुलिस ने फायरिग शुरू कर दी। जमुना प्रसाद त्रिपाठी को सबसे पहले गोलियां लगीं। इसके बाद कृष्ण कुमार मिश्रा और सीताराम गुप्ता गोलियों का शिकार हुए। इनकी शहादत मौके पर ही हो गई। कई लोग घायल हुए। बेवर की इस बलिदान गाथा का इतिहासकार एवं साहित्यकार श्रीकृष्ण मिश्रा एडवोकेट ने अपनी पुस्तक समग्र मैनपुरी में पूरा उल्लेख किया है।

गोली लगने के बाद भी न गिरने दिया था तिरंगा

समग्र मैनपुरी पुस्तक में छात्र कृष्ण कुमार मिश्रा हाथ में तिरंगा लिए थे। सिपाहियों ने उनके दाएं हाथ में गोली मारी। गोली लगने के बाद कृष्ण कुमार ने अपने बाएं हाथ में तिरंगा पकड़ा और आगे बढ़ने लगे। फिर उनकी जांघ में गोली लगी, इस पर भी वह नहीं रुके तो तीन गोलियां और मारी गईं। इसके बाद भारत मां का ये लाल तिरंगा आसमान की ओर किए हुए नीचे गिर पड़ा था।

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वेबर के बलिदानियों की याद में बना है शहीद मंदिर

इस घटना में जमुना प्रसाद त्रिपाठी के पुत्र जगदीश नारायण त्रिपाठी भी शामिल थे। उस वक्त वह 16 वर्ष के थे। जगदीश नारायण त्रिपाठी ने वर्ष 1971 में इस घटना की याद में शहीद मंदिर का निर्माण कराया। यहां 26 शहीदों की प्रतिमाएं स्थापित कीं। अब हर राष्ट्रीय दिवस पर यहां शहीदों को याद किया जाता है।


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