प्राचीन कल्पवृक्ष की पूजा कर मांगी कोरोना से मुक्ति की दुआ
जागरण संवाददाता महोबा कोरोना का कहर चरम पर है। संक्रमित भी बढ़ रहे है। सोमवार
जागरण संवाददाता, महोबा : कोरोना का कहर चरम पर है। संक्रमित भी बढ़ रहे है। सोमवार को ग्राम सिचौरा कबरई में किसानों ने दो हजार वर्ष पुराने व भारत के इकलौते जुड़वां कल्प वृक्ष के नीचे हवन पूजन किया और देश को फिर से स्वस्थ व आर्थिक रूप से मजबूत बनाने की कामना की।
ग्राम के सचिन खरे व पं रघुवर दयाल ने बताया कि कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया के सामने बहुत बड़ा संकट खड़ा कर दिया है।लाखों लोग मारे जा चुके हैं और करोड़ों लोग इस महामारी की चपेट में आ चुके हैं। अर्थ व्यवस्था बर्बाद हो गयी है। अब इस कोरोना संकट का अंत होना चाहिए। इसीलिए आज कल्प वृक्ष के नीचे हम लोगों ने हवन पूजन किया। बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने बताया कि एक कल्प वृक्ष हमीरपुर में भी यमुना नदी के किनारे लगा है जिसकी आयु लगभग एक हजार साल है। वहां की तत्कालीन डीएम वी. चंद्रकला ने उस कल्प वृक्ष क्षेत्र का सुंदरीकरण कराया था। लेकिन महोबा के प्रशासन की उदासीनता की वजह से इस दो हजार वर्ष पुराने कल्पतरु की उपेक्षा अभी भी जारी है। देवतरु व सुरतरु जैसे उपनामों से चर्चित इस दुर्लभ वृक्ष के बारे में मान्यता है कि इसके नीचे बैठकर जो कल्पना की जाती है, वो साकार जरूर होती है। इसीलिए आज यह अनुष्ठान किया गया। पुराणों के अनुसार कल्प वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी और पृथ्वी पर इसे भगवान श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा लायी थीं। देश में इस वक्त करीब 15 कल्प वृक्ष हैं और सबसे पुराना कल्प वृक्ष बाराबंकी के रामनगर में लगा है जिसकी आयु करीब 6 हजार वर्ष है लेकिन जुड़वां कल्प वृक्ष सिर्फ महोबा में मौजूद है।