बेरोजगारी की भंवर में फंसे मजदूरों के खेवइया बने 'सागर'
देवेंद्र मिश्रा कबरई (महोबा) चार मासूम बच्चे बीमार पत्नी की देखरेख में बेबस हो
देवेंद्र मिश्रा, कबरई (महोबा) :
चार मासूम बच्चे, बीमार पत्नी की देखरेख में बेबस हो चुके 40 वर्षीय श्रमिक जमुना के सामने निवाले का संकट था। वह किसी भी तरह गांव लौटना चाह रहे थे। समाज सेवी सागर को पता चला तो वह उसकी मदद करने पहुंचे। उस गरीब परिवार को जाने से रोका बल्कि उसकी पत्नी का इलाज करवाने के साथ मजदूर को काम दिलाया। लॉकडाउन के दौरान इसी तरह तमाम क्रशर मंडी के बेरोजगार मजदूरों के खेवनहार बन कर उन्होंने उन्हें मुसीबत के इस झंझावात से पार निकाला।
कोरोना के कारण लॉकडाउन में अन्य रोजी-रोजगार के साथ क्रशर मंडी पर भी गहरा असर पड़ा। यहां पर करीब दस हजार बाहरी मजदूर काम करता है। कई तो परिवार के साथ रहते हैं। उस दौर में यह मजदूर काम न चलने के कारण फंस कर रह गए थे। काम मिल नहीं रहा था, ऐसे में परिवार का भरण पोषण कैसे हो, यही चिता थी। इन हालातों में मंडी में सागर सिंह ने ऐसे बेरोजगार परिवारों को मदद करने का संकल्प लिया। टेंट लगा कर दिया सहारा
कबरई में करीब पांच सौ मजदूर घरों को लौट जाने को मजबूर थे। कारण था कि इनके पास काम नहीं था। ऐसे में क्रशर कारोबारी सागर सिंह ने सभी को रोजगार देने का वादा। जो काम नहीं कर सकते थे उन्हें घर बैठे ही मजदूरी के एवज में आर्थिक मदद की। इनके पास रहने का ठिकाना नहीं बचा था उनके लिए अपने क्रशर में ही टेंट लगवा कर आशियाना की व्यवस्था की। टीम बनाकर गांव-गांव पहुंचाई मदद
लॉकडाउन के समय गांवों के हालत भी खराब थे। वहां रह रहे लोगों को खाना व सूखा राशन पहुंचाने के लिए सागर सिंह ने अपने भाई संग्राम सिंह की देखरेख में दस अलग-अलग टीमें गठित कीं। यह टीमें प्रतिदिन गांवों का दौरा करतीं। लोगों की सूची तैयार कर उनकी जरूरत का सामान का पैकेट तैयार कर उनके घरों तक पहुंचाया जाता। यह क्रम करीब दो माह तक चला। काम चालू होते ही किया समायोजित
क्रशर का काम चालू होते ही सागर सिंह ने जो मजदूर बाहर लौट गए थे, या जो यहीं पर थे उन्हें जरूरत के अनुसार प्लांट में समायोजित कराया। उन्हें राशन, रहने की व्यवस्था कराई। सागर सिंह कहते हैं कि मुसीबत के समय हम यदि अपनों के काम नहीं आ सके तो जिदगी का मतलब ही क्या है।