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-कठोर 'तपस्या' से भी नहीं रीझे हुक्मरान

अजय दीक्षित महोबा जिले की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं पर जनता भले व्यवस्था को लंबे समय से कोस र

By JagranEdited By: Published: Tue, 28 Jul 2020 11:37 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jul 2020 06:09 AM (IST)
-कठोर 'तपस्या' से भी नहीं रीझे हुक्मरान
-कठोर 'तपस्या' से भी नहीं रीझे हुक्मरान

अजय दीक्षित, महोबा :

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जिले की बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं पर जनता भले व्यवस्था को लंबे समय से कोस रही है मगर, जनप्रतिनिधि से लेकर अफसर चुप्पी ही नहीं बल्कि जितना हो सका, इस पर खूब पर्दा भी डाला। भला हो इंद्रदेव का, जिन्होंने जिला अस्पताल में लापरवाहियों की ऐसी पोल खोली कि बदइंतजामी से कराह रही बेबस जनता की आवाज अब सरकार तक गूंज रही है। आज से पहले स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए जिले में बड़े आंदोलन हो चुके हैं। प्रधानमंत्री से मुख्य सचिव तक खून से खत लिखकर भेजे गए। लेकिन, कठोर 'तपस्या' से हुक्मरान नहीं रीझे।

जिले की मरणासन्न होती स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर पिछले पांच साल से लगातार आंदोलन कर रहे बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने तो जिले में मेडिकल कॉलेज लाने के लिए काफी संघर्ष किया जो आज भी जारी है। वह कहते हैं, इंद्रदेव की मेहरबानी से जिला अस्पताल की बदहाली उजागर हो गई। न बारिश से अस्पताल तालाब बनता और न शासन-प्रशासन जागता। बीते वर्ष 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस पर उन्होंने जिला अस्पताल की व्यवस्थाएं सुधारने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मुख्य सचिव राजेंद्र तिवारी को खून से खत लिखकर भेजे थे। एक हफ्ते बाद स्वास्थ्य विभाग की एक टीम आई थी। उसने जिला अस्पताल में आवश्यक सुधार संबंधी रिपोर्ट शासन को भेजी थी। जिले के प्रभारी मंत्री जीएस धर्मेश को भी जिला अस्पताल की गंभीर समस्याओं से अवगत कराया मगर, परिणाम कुछ नहीं निकला। पूर्व सांसद गंगा चरण राजपूत को भी अस्पताल गेट पर धरना देने बैठना पड़ा।

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जब एम्स के लिए त्यागा अन्न

तारा पाटकर स्वास्थ्य सेवाएं सुधारने व एम्स मेडिकल कॉलेज के लिए 259 दिन सत्याग्रह करने के अलावा पोस्टकार्ड अभियान चला चुके हैं। आम जनता के लिखे लाखों खत प्रधानमंत्री कार्यालय को भिजवा चुके हैं। वह जूते -चप्पल त्याग कर पिछले 5 साल से नंगे पैर चल रहे हैं। 2016 में तारा पाटकर एम्स जैसी चिकित्सा सुविधाओं से लैस अस्पताल की मांग करते हुए सात अगस्त 2016 को अन्न त्याग कर अनशन पर बैठ गए थे। 24 अक्टूबर को पीएम की जिले में परिवर्तन रैली थी। अगले महीने नवंबर में प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की टीम आई थी।

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केंद्रीय स्वास्थ्य टीम ने कहा था, यह सामुदायिक अस्पताल लायक

तीन साल पहले मुआयना करने आई केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की टीम ने भी जिला अस्पताल में अव्यवस्था पर सवाल उठाते हुए इसे एक सामुदायिक अस्पताल के बराबर का बता दिया था। दिल्ली से आई डॉ. आरएस मोहिल व डॉ. आरके साहू की टीम ने मीडिया के सामने कहा था कि यह अस्पताल तो जिला चिकित्सालय के मानक भी पूरे नहीं करता, इसे उच्चीकृत कर मेडिकल कॉलेज में तब्दील करना संभव नहीं।

टीम ने जांच के बाद कहा था कि शासन यहां अस्पताल के लिए 20-25 एकड़ जमीन मुहैया कराए। यह मांग रखने के साथ रिपोर्ट आगे बढ़ा दी गई थी लेकिन, आज भी केंद्रीय टीम की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।

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