नक्शा न मानक, नाला के नाम पर गड़बड़झाला
जागरण संवाददाता महोबा जिला अस्पताल में जलभराव की समस्या यूं ही नहीं।
जागरण संवाददाता, महोबा :
जिला अस्पताल में जलभराव की समस्या यूं ही नहीं। पूरे शहर में जलभराव की गहराई में जाएं तो असल चूक की गवाही खुद नाले देते हैं। न तो नक्शा देखा गया और न ही मानक, नाला के नाम पर गड़बड़झाला तैयार कर दिया। शहर में 61 से ज्यादा छोटे-बड़े नाले हैं। इसमें जिला अस्पताल के सामने निकला नाला सबसे लंबा है। इसमें आधे शहर की आबादी का पानी आता है। नाले में न तो कहीं साइफन लगे हैं और न ही ढाल का ख्याल रखा गया।
नाला तैयार करने के दौरान उसकी ढाल का ख्याल रखना होता है। उससे भी पहले नक्शा तैयार करके देखा जाता है कि पानी कहां से कहां तक का आएगा और शहर के कौन से एरिया में गिराया जाना चाहिए। नाला निर्माण के दौरान 50 मीटर या जरूरत पर उससे कम दूरी में साइफन लगा कर लोहे की जाली लगी होनी चाहिए। इससे सफाई में मदद मिलती है। जिला अस्पताल के सामने निकला नाला करीब चार किलोमीटर लंबा है। इसे आठ से दस साल पहले तैयार किया गया था। दुकानों के सामने तो पटिया डाली गई हैं, लेकिन जाली और साइफन के इंतजाम कहीं नहीं हैं। उससे भी बड़ी खामी यह कि नाला के नीचे जो नाला बना था, उसमें सरकारी भवनों के सामने स्थायी स्लैब पड़ी थी, उसे तोड़े बिना ही उसके ऊपर नाला बन गया। इससे नाला हरदम जाम रहता है। बारिश के दौरान पानी का दबाव बढ़ने से अस्पताल और रोडवेज बस स्टाफ के वर्कशाप में बाढ़ आ जाती है।
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निर्माण में आई लागत
नगर पालिका के नए बने नालों में पांच सौ मीटर नाला की कीमत करीब 20 लाख लागत आई थी। पुराने बने नालों में जिला अस्पताल के सामने निकले नाले की लागत 70 से 80 लाख रुपये आई थी।
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यहां का आ रहा पानी
जिला अस्पताल के सामने निकले नाले का पानी हमीरपुर चुंगी में गिरता है, जहां से पानी बहकर दसरापुर तालाब में चला जाता है। इस नाले में शहर के 15 नालों का पानी आता है।
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नगर पालिक के जेई वासुदेव शुक्ला ने बताया कि जो नाले बने हैं वो काफी पुराने हैं। जो नए नाले बनवाए जा रहे हैं वो मानक व नक्शे के मुताबिक हैं।