वीरभूमि पर 1966 में दद्दा ने दिखाई थी हाकी की जादूगरी
अभिषेक द्विवेदी महोबा क्रिकेट का क्रेज वर्तमान में जहां सभी के सिर चढ़कर बोल रहा है तो
अभिषेक द्विवेदी, महोबा : क्रिकेट का क्रेज वर्तमान में जहां सभी के सिर चढ़कर बोल रहा है तो हाकी के दीवानों की भी कमी नहीं है। हाकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद दद्दा बुंदेलीधरा पर भी जादूगरी बिखेर चुके हैं। आज भी उनके खेल की तस्वीर हाकी प्रेमियों के जेहन में ताजा है।
वर्ष 1966 में शहर के बजरिया स्थित रेलवे ग्राउंड में चौहान मेमोरियल हाकी टूर्नामेंट में उन्होंने अपने खेल से हर किसी का मन मोह लिया था। इस मैच में उनकी टीम विजेता भी बनी थी और मेजर ने अपने खेल का लोहा मनवाया था। शहर में भी उनके कई प्रशंसक हैं जो उस दौर के स्मरण को बताते हैं। गोल दागकर लिया था बदला
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झांसी की हाकी टीम के सदस्य रहे मुख्तार अहमद बताते हैं कि 1976 में उनकी मुलाकात मेजर से झांसी में हुई। झांसी और हमीरपुर के मध्य फाइनल मैच था। तब मैं हमीरपुर की टीम में था और मेजर ध्यानचंद झांसी की टीम से थे। तब मेजर ने अनुभव साझा करते हुए बताया कि जर्मनी में मैच दौरान उन्हें एक खिलाड़ी ने घायल कर दिया था। तब उन्होंने गोल कर इसका बदला लिया था।
बेहद सरल स्वभाव के थे मेजर
झांसी हाकी टीम के पूर्व कप्तान इरशाद अली शब्बन बताते हैं कि मेजर बेहद सरल स्वभाव के थे। वह खिलाड़ियों को शालीनता और संयम से पेश आने की सीख देते थे। उनका खेल बेहतर था और उनसे बहुत कुछ सीखने का अवसर मिला, जो आगे खेल में काम आया। महोबा में हुए मैच में उन्होंने यहां के खिलाड़ियों को भी टिप्स दिए थे।
बांदा में मेजर को मिली थी शिकस्त
वर्ष 1968 में बांदा में शंकरलाल मेमोरियल टूर्नामेंट का फाइनल मुकाबला झांसी व महोबा के बीच हुआ था और मेजर झांसी के कप्तान थे। जबकि महोबा का नेतृत्व विशंभर चौरसिया कर रहे थे। इस मैच में महोबा के खिलाड़ियों ने पांच गोल किए और झांसी की टीम महज दो गोल ही कर सकी थी। इस तरह बांदा में मेजर को शिकस्त मिली थी।