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कानपुर से आए धनपत राय, महोबा ने बना दिया प्रेमचंद

अभिषेक द्विवेदीमहोबा हिदी कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र का महोबा से गहरा नाता है

By JagranEdited By: Published: Fri, 31 Jul 2020 12:08 AM (IST)Updated: Fri, 31 Jul 2020 06:12 AM (IST)
कानपुर से आए धनपत राय, महोबा ने बना दिया प्रेमचंद
कानपुर से आए धनपत राय, महोबा ने बना दिया प्रेमचंद

अभिषेक द्विवेदी,महोबा :

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हिदी कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद्र का महोबा से गहरा नाता है। यहां पर उन्होंने पांच साल बिताए। खास बात यह कि साहित्य जगत को प्रेमचंद महोबा ने ही दिया। इससे पहले तो वह कानपुर से धनपत राय की पहचान के साथ आए थे।

वर्ष 1909 में कानपुर से स्थानांतरित होकर धनपत राय सब डिप्टी इंस्पेक्टर आफ स्कूल के रूप में महोबा आए थे। यहां छजमनपुरा में किराए के मकान में रहते थे। कुछ साल पहले ही यह मकान जर्जर होकर गिर गया। साधारण से दिखने वाले मुंशीजी अंधेरे में ढिबरी की रोशनी में उपन्यास लिखते थे। किसी से उनको खास मतलब भी नहीं होता था। पहले तो कोई उन्हें पहचान नहीं पाया, लेकिन कलम के धनी मुंशीजी के उपन्यास पढ़कर लोग उनके कायल हो गए।

इतिहासकार डा. एलसी अनुरागी बताते हैं, उस वक्त वह 29 साल के थे। 1909 से 1914 तक का समय महोबा में बिताया। 1908 में नवाब राय नाम से उन्होंने प्रथम उर्दू कहानी संग्रह सोज-ए-वतन लिखा, जो शासन को नागवार गुजरा। खुफिया ने सुराग लगाकर लेखक का पता लगा लिया। हमीरपुर के तत्कालीन कलेक्टर ने धनपत राय को कुलपहाड़ तलब किया। बैलगाड़ी से धनपत राय रातोंरात कुलपहाड़ पहुंचे। कलेक्टर ने तहसील (अब राजकीय बालिका इंटर कालेज) के पास सोज-ए-वतन की 700 प्रतियां जलवा दी थी। सख्त आदेश दिया कि प्रकाशन के पूर्व वह कहानी और रचनाएं पहले शासन को दिखाएंगे। महोबा प्रवास में प्रेमचंद ने आल्हा की जीवनी भी लिखी। अंग्रेज सरकार के सख्त आदेश और हिदायतों से विचलित हुए बिना उन्होंने अपना काम जारी रखा। वरिष्ठ साहित्यकार संतोष पटैरिया बताते हैं, वर्ष 1910 में 'जमाना' पत्रिका, कानपुर के संपादक मुंशी दयानारायण निगम ने धनपत राय को नाम बदल रहने व कहानी लिखने की सलाह दी। उनके सुझाव पर तब धनपत राय ने 'बड़े घर की बेटी' कहानी नए नाम प्रेमचंद्र से लिखी। इस तरह महोबा में धनपतराय से वह प्रेमचंद्र बने।

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बैंदों के शिवमंदिर में लिखी थी आत्माराम

महोबा प्रवास दौरान मुंशी प्रेमचंद्र चरखारी, बेलाताल, ग्राम बैंदों पनवाड़ी घोड़ी से अक्सर जाते थे। बैंदों गांव में एक शिवमंदिर है। जहां वह अक्सर जाते थे। यहीं पर बैठकर आत्माराम कहानी लिखी थी।


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