बदले हालात, दूर होते रिश्ते फिर आ गए पास
जागरण संवाददाता महोबा शाहिद दस साल से गुड़गांव में थे। आज-कल करते हुए वह घर चरखार
जागरण संवाददाता, महोबा : शाहिद दस साल से गुड़गांव में थे। आज-कल करते हुए वह घर चरखारी आ ही नहीं पा रहा था। आखिर कोरोना वायरस की दहशत ही सही उन्हें परिवार के साथ मिलने का मौका दे दिया। भले ही वह नौकरी छोड़ यहां छोटा रोजगार रहा है, लेकिन परिवार के बीच खुश है। कोरोना काल में लॉकडाउन के दौरान दूर होते रिश्ते तो जुड़े ही घर-आंगन और रसोई तक का माहौल भी बदल गया। एक दूसरे के सुख-दुख की खबर लेने वालों में भी नजदीकियां बढ़ गईं। बदले हालातों में अगर किसी को सबसे सुखद फल का अनुभव वह थे घर के बुजुर्ग। घर की लक्ष्मी कही जाने वाली बहू-बेटियों को भी रसोई चौका से कुछ दिनों के लिए राहत मिल गई थी।
कोरोना काल के दौरान सूनी सड़कें, गलियों में भी पसरा सन्नाटा एक अजीब सी दहशत पैदा कर रहा था। पूर्व प्रधानाचार्य शिव कुमार गोस्वामी कहते हैं कि ऐसा तो माहौल कभी नहीं देखा। इस मुसीबत के दिनों में एक अच्छाई देखने को मिली वह एकल परिवार की तस्वीर। इसकी कल्पना केवल की जा सकती थी कोरोना काल के दौरान वह साकार होती दिखी। दूर होकर भी पास-पास आ गए
महोबा के ढलैतनपुरा निवासी हितेंद्र अवस्थी कहते हैं कोरोना में तकलीफ जरूर मिली, लेकिन लॉकडाउन के दौरान घरों में कैद लोग दूर रहते हुए भी काफी पास-पास नजर आ रहे थे। फोन से एक दूसरे की खैरियत पूछी जा रही थी। इसके यहां जो भी सामग्री कम होती तो दूसरा उसे पहुंचाने में जुट जाता। सूने घरौंदों में लौटी खुशहाली
महोबा के ढलैतनपुरा निवासी 84 वर्षीय स्वामी प्रसाद के यहां परिवार में 36 सदस्य हैं। इनके यहां चार पीढि़यां एक छत के नीचे निवासी करती हैं। लॉकडाउन के पहले अधिकांश बेटे काम धंधा के कारण कुछ लोग दिल्ली में रह रहे थे। लॉकडाउन के दौरान से लेकर अभी तक सभी सदस्य एक ही छत के नीचे निवास कर रहे हैं। स्वामी प्रसाद कहते हैं कि ऐसा माहौल तो कभी देखने को नहीं मिला। करीब तीन माह तक घर में त्योहार जैसा माहौल था। प्रमोद अवस्थी कोरोना काल से पहले कानपुर में रह रहे थे। लॉकडाउन के समय वह भी यहीं परिवार के पास आ गए। पुलिस का स्वरूप बदला
पुलिस को लेकर वैसे जनता में सोच दूसरी ही रहती है। भय और डर का माहौल दिखता है, लेकिन कोरोना काल में पुलिस का मित्रवत स्वरूप देखने को मिला। सदर कोतवाली में प्रभारी रहे विपिन त्रिवेदी ने अप्रवासियों व मोहल्लों में खाना वितरित कराया। लोगों के यहां दवा, कपड़ा, अन्य खाद्य सामग्री उपलब्ध कराते रहे। पुलिस लाइन में स्टाफ को दिक्कत न हो इसके लिए भी कैंप लगा कर राहत पहुंचाई थी। इसी तरह और भी कोरोना योद्धाओं का नेक काम जनता के दिल को छू जाने वाला था। नौकरी छूटी तो स्वरोजगार अपनाया
चरखारी निवासी शाहिद चार भाई हैं। वह स्वयं गुड़गांव में दस साल से एक जूता फैक्ट्री में सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत था। लॉकडाउन के कारण उसकी नौकरी छूट गई थी। वह अपने परिवार के पास चरखारी लौट आया था। यहां और कोई काम न होने से वह ई-रिक्शा चलाने लगा। इस समय परिवार की गुजर बसर उसी के माध्यम से हो रही है। इसी तरह सुरेश सेन गांव पुनिया में इस समय बर्गर का ठेला लगाता है। यह भी पहले गुड़गांव में फैक्ट्री में गार्ड थे। वहां नौकरी छूटी तो अपना रोजगार गांव में ही प्रारंभ कर दिया। इनके परिवार में पत्नी, बच्चे व दो भाई हैं। पैदल-साइकिल से सफर किया तय
कुलपहाड़ में पांच-छह युवक दिल्ली से साइकिल व कुछ रास्ता पैदल ही तय किया था। युवक राहुल ने बताया कि उस समय तो यही चिता थी कि किसी तरह अपना घर मिले। वैसे रास्ते में कई जगह मुसीबत आई भी पर लोगों से मिली मदद से सफर आसान रहा। महोबा निवासी मनोज अपने साथी कैलाश, कन्हैया तथा छतरपुर के पांच लोग साथ में मुंबई से लौटे थे।