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डर को पीछे छोड़ एचआइवी के खिलाफ जंग

महराजगंज जनपद के आजाद नगर निवासी विजया पाठक की टीम एचआइवी पीड़ितों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने व उनको अधिकार दिलाने के लिए स्वास्थ्य विभाग से समन्वय स्थापित कर गांव-गांव कैंप आयोजित कर रही है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 30 Nov 2020 09:30 PM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2020 09:30 PM (IST)
डर को पीछे छोड़ एचआइवी के खिलाफ जंग

महराजगंज: एचआइवी-एड्स का नाम सुनकर आदमी एक बार कांप जाता है, लेकिन कुछ ऐसे भी हैं जो दूसरों को बचाने के लिए बीमारी से दो-दो हाथ करने से भी नहीं चूकते। ऐसी ही एक शख्सियत हैं विजया पाठक, जिन्होंने एचआइवी के खिलाफ जंग छेड़ रखी है और डर को पीछे छोड़ जिदगी बांट रही हैं।

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महराजगंज जनपद के आजाद नगर निवासी विजया पाठक की टीम एचआइवी पीड़ितों को समाज की मुख्य धारा से जोड़ने व उनको अधिकार दिलाने के लिए स्वास्थ्य विभाग से समन्वय स्थापित कर गांव-गांव कैंप आयोजित कर रही है। एचआइवी पीड़ितों को भी खोज रही है। टीम द्वारा शहर से लेकर सुदूर गांवों में आयोजित कैंप में करीब एक हजार लोगों की जांच के साथ जागरूक किया जा चुका है। एक वर्ष में कुल 19 संक्रमित पाए गए हैं। इनका जिला संयुक्त अस्पताल के फैसिलिटी इंट्रीग्रेटेड एंटी रेक्ट्रोवायरल ट्रीटमेंट सेंटर (एआरटी सेंटर) में रजिस्ट्रेशन कराकर चिकित्सकीय सुविधा भी उपलब्ध करा रही हैं। एआरटी सेंटर के प्रभारी डा. एवी त्रिपाठी ने बताया कि अभियान से पीड़ितों को चिन्हित करने में मदद मिल रही है। मुहिम से लोगों में जागरूकता आएगी और एचआइवी पर नियंत्रण लग सकेगा। नेपाल के सीमावर्ती गांवों व पिछड़े इलाकों पर फोकस

विजया के साथ मीरा, प्रीति, फातिमा, सरोज, मीना की टीम जिले भर में काम कर रही है। इनका फोकस पिछड़े व नेपाल के सीमावर्ती ठूठीबारी, झुलनीपुर, आदि क्षेत्रों में रहता है। पहले यह टीम गांव में पहुंचकर संदेह के आधार पर लोगों के बारे में ेजानकारी प्राप्त करती है। फिर काउंसलिंग कर उन्हें जांच के लिए प्रेरित करती है। इसके बाद गांव में कैंप लगाकर जांच की जाती है।

टीम के कार्य को देखकर पिछले सप्ताह ही इनको उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसाइटी की पहल पर हाई रिस्क ग्रुप के संभावित एचआइवी मरीजों को भी चिह्नित करने की जिम्मेदारी दी गई है। दिखा रहीं बेहतर जिदगी की राह

विजया एचआइवी पीड़ित ही नहीं बल्कि समाज की उन महिलाओं को भी आत्मनिर्भरता की राह दिखा रही हैं, जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। समाज की चुनौतियां से टूटकर भटकाव ना हो, इसके लिए उन लोगों को जागरूक भी कर रहीं और प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर रीता शर्मा के सहयोग से इनके समूह का गठन कर बेहतर जिदगी की राह दिखा रही हैं। अब तक 60 समूह से पांच हजार महिलाएं जुड़कर लघु उद्योग के जरिए अपना जीवन संवार रही हैं।


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