World Health Day 2020: ‘धरती पर फरिश्ता’ हैं नर्स, रुकें और थैंक्स बोलें...
विश्व स्वास्थ्य दिवस को इस बार नर्सों के नाम किया गया है वर्षों से आज भी नहीं बदली है नर्सों की स्थिति।
लखनऊ [कुमार संजय]। नर्सों की तारीफ भले ही ‘धरती पर फरिश्ते’ के रूप में की जाती हो लेकिन इनकी पेशेवर जिंदगी दयनीय है। खासकर निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में और सरकारी संस्थानों में आउटसोर्स पर काम कर रहीं नर्सो के लिए काफी दिक्कते हैं। कम वेतन मिलता है और खराब स्थिति में काम करना पड़ता है। हड़ताल एवं आंदोलनों से उनकी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं आया है। अध्ययन करने वाले नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर वुमेन डेवलपमेंट स्टडीज की जूनियर फेलो श्रीलेखा नायर ने कहा कि नर्सों के सामने आर्थिक, मौखिक एवं शारीरिक उत्पीड़न एक बड़ी समस्या बना हुआ है। उन्हें न सिर्फ डॉक्टरों और प्रबंधन, बल्कि सहकर्मियों के र्दुव्यवहार का भी सामना करना पड़ता है। सात अप्रैल को विश्व स्वास्थ्य दिवस को नर्सेज के नाम समर्पित किया है और कहा गया है कि रुकें और थैंक्स बोलें.।
एक बड़े संस्थान में काम करने वाली एक आउटसोर्स नर्स कहती हैं कि 16 हजार में कैसे गुजारा करते हैं यह हम ही जानते हैं।ट्रेंड नर्सेज एसोसिएशन के पदाधिकारी डॉ. अजय सिंह कहते है कि निजी अस्पतालों में तो प्रबंधन नर्सों का शोषण करता है। नर्सों और प्रबंधन के बीच लगभग गुलाम एवं मालिक जैसे रिश्ते होते हैं। निजी क्षेत्र में नर्सों को मिलने वाले कम वेतन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि उनमें से अधिकतर ने चार से छह लाख रुपये का शैक्षिक ऋ ण लेकर अपनी पढ़ाई की होती है। उनके द्वारा चुकाई जाने वाली न्यूनतम किस्त करीब छह हजार से 10 हजार रुपये होगी, जबकि उन्हें तनख्वाह के रूप में पांच से लेकर 15 रुपये तक ही मिल पाते हैं।खराब स्थिति होने के बावजूद उनमें से अधिकतर नौकरी से चिपकी रहती हैं, क्योंकि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं होता। मूविंग विद द टाइम्स-जेंडर, स्टेटस एंड माइग्रेशन ऑफ नर्सेज इन इंडिया प्रकाशित करने वाली श्रीलेखा ने कहा, नसोर्ं को केवल उनके वरिष्ठ ही नहीं, बल्कि मरीजों के संबंधी भी मौखिक रूप से प्रताड़ित करते हैं, जैसा कि अखबारों में छपता है, कुछ मामलों में उनका शारीरिक शोषण भी किया जाता है।
निजी और सरकारी संस्थानों में आउट सोर्स की हालत दयनीय
अध्ययन में कहा गया है कि मरीजों की जान बचाने के मामले में नर्सो के योगदान की बहुत सी कहानियां हैं, लेकिन उनके योगदान पर ध्यान नहीं दिया जाता। यह सच है कि महत्वपूर्ण स्वास्थ्य संबंधी कार्यों में भाग लेने वाले डॉक्टरों का हर जगह नाम होता है, लेकिन नसोर्ं के नाम का रिकॉर्ड में कभी कोई उल्लेख तक नहीं होता।
ऐसे होता है शोषण
नर्सेज नेता कहती है कि नसोर्ं के शोषण का एक और तरीका यह है कि अस्पताल प्रबंधन नर्सों के प्रमाण पत्रों को जब्त कर लेते हैं। अध्ययन के अनुसार ठेकेदार और निजी अस्पतालों में नर्सों के साथ अन्य तरह की धोखाधड़ी भी की जाती है। उनका वेतन कागजों में कुछ और दर्शाया जाता है, जबकि हकीकत में उन्हें इससे कम पैसे दिए जाते हैं।
रेलवे-एम्स की तरह हो आउट सोर्स नर्सेज को वेतन
राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद के अध्यक्ष जेएन तिवारी कहते है कि नर्सेज के वेतन रेलवे और एम्स के तरह प्रदेश में होना चाहिए। रेलवे में संविदा नर्सेज का वेतन 44 हजार है जबकि प्रदेश में आउट सोर्स नर्सेज का वेतन 15 से 17 हजार है। इससे लड़कियों का मनोबल गिरता है। बीच में ठेकेदार की जरूरत नहीं है। पांच साल काम करते रहने वाली नर्सेज को परमानेंट किया जाए, जिससे लड़कियों को सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा मिले।