World Alzheimer Day: अत्यधिक शराब का सेवन व वायु प्रदूषण भी बन रहा अल्जाइमर का कारण
World Alzheimer Day नए शोध में सामने आई जानकारी। जागरूकता लाने को 21 से 27 सितंबर तक मनाया जाएगा राष्ट्रीय डिमेंशिया जागरूकता सप्ताह।
लखनऊ, (कुसुम भारती)। World Alzheimer Day: उम्र बढ़ने के साथ ही तमाम तरह की बीमारियां भी बढ़ने लगती हैं। जिनमें से एक प्रमुख बीमारी बुढ़ापे में भूलने की आदतों यानि अल्जाइमर -डिमेंशिया की भी है। हालांकि, अभी तक इसे सिर्फ बुजुर्गों या बढ़ती उम्र का रोग माना जाता रहा है। मगर वायु प्रदूषण, शराब का अत्यधिक सेवन और सिर पर गहरी चोट भी इस रोग का कारण हो सकती है। यह बात, हाल ही में एक शोध के नतीजों में सामने आई है। ऐसे में, विशेषज्ञों का कहना है कि अल्जाइमर रोग बुजुर्गों के अलावा वायु प्रदूषित क्षेत्रों में रहने वालों को भी प्रभावित कर सकता है।वहीं, कोरोना काल में ऐसे मरीजों की संख्या और भी बढ़ रही है। 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर-डिमेंशिया डे के मौके पर विशेष रिपोर्ट।
हाइवे व इंडस्ट्रीयल इलाकों के लोग हो रहे प्रभावित
किंग जार्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय (केजीएमयू) के मनोचिकित्सा विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डॉ. आदर्श त्रिपाठी कहते हैं, हालांकि, अल्जाइमर रोग बुजुर्गों में होने वाली एक आम बीमारी है। मगर हाल ही में लैंसेट जर्नल में प्रकाशित शोध के नतीजों में यह पाया गया है कि अब यह रोग वायु प्रदूषण, शराब का बहुत अधिक सेवन और सिर में गंभीर चोट लगने से भी हो सकती है। साथ ही हाइवे के किनारे और इंडस्ट्रीयल एरिया में रहने वालों को भी प्रभावित कर रहा है। नए शोध में कुछ रिस्क फैक्टर रिवाइज किए गए हैं जिसमें यह बात सामने आई है। डॉ. त्रिपाठी कहते हैं, बुजुर्गों को डिमेंशिया से बचाने के लिए जरूरी है कि परिवार के सभी सदस्य उनके प्रति अपनापन रखें। अकेलापन न महसूस होने दें, समय निकालकर उनसे बातें करें, उनकी बातों को नजरंदाज कदापि न करें बल्कि उनको ध्यान से सुनें। ऐसे कुछ उपाय करें कि उनका मन व्यस्त रहे, उनकी पसंद की चीजों का ख्याल रखें। निर्धारित समय पर उनके सोने-जागने, नाश्ता व भोजन की व्यवस्था का ध्यान रखें।
अमूमन 65 साल की उम्र के बाद लोगों में यह बीमारी देखने को मिलती है या यूं कहें कि सेवानिवृत्ति के बाद यह समस्या ज्यादा पैदा होती है। इसके लिए जरूरी है कि जैसे ही इसके लक्षण नजर आएं तो जल्दी से जल्दी चिकित्सक से परामर्श करें ताकि समय रहते उनको इस समस्या से छुटकारा दिलाया जा सके। वहीं, जीवनशैली में एकदम से बदलाव आना भी इसके प्रमुख लक्षणों में से एक है। साथ ही शरीर में आलसपन का आना, लोगों से बात करने से कतराना, बीमारियों को नजरंदाज करना, भरपूर नींद का न आना, किसी पर भी शक करना जैसे लक्षण भी इसमें शामिल हैं।
अत्यधिक मोबाइल का उपयोग भी दे रहा रोग
बलरामपुर अस्पताल में मनोरोग विभाग में परामर्शदाता डॉ. पीके श्रीवास्तव कहते हैं, बदलती जीवनशैली भी इस रोग को बढ़ावा दे रही है। लोगों का खुद के प्रति पोजेसिव होना, अत्यधिक तनाव या स्ट्रेस में रहना और मोबाइल का अत्यधिक उपयोग भी अल्जाइमर रोग का कारण बन रहा है। जिसके चलते कम उम्र के लोग भी इस रोग की जद में आ रहे हैं।
ये भी हैं कारण
रोग के प्रति जागरूकता की कमी, हाइपरटेंशन, डिप्रेशन, डायबिटीज, मोटापा, धूम्रपान, सुनाई देने में समस्या आना, शारीरिक क्रियाओं का न करना व समाज से कटे रहना इसके मुख्य कारण हैं।
रोग के लक्षण
रोजमर्रा की चीजों को भूल जाना, व्यवहार में परिवर्तन आना, रोज घटने वाली घटनाओं को भूल जाना, दैनिक कार्य न कर पाना आदि इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं। वहीं, रोग के चलते बातचीत करने में दिक्कत आती है या किसी भी विषय में प्रतिक्रिया देने में विलंब होता है। डायबिटीज, उच्च रक्तचाप, हाई कोलेस्ट्रोल, सिर की चोट, ब्रेन स्ट्रोक, एनीमिया और कुपोषण के अलावा नशे की लत होने के चलते भी इस बीमारी के चपेट में आने की संभावना रहती है।
जागरूकता सप्ताह के तहत होंगे विविध आयोजन
विश्व अल्जाइमर दिवस के मौके पर महानिदेशक, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सेवाएं, उत्तर प्रदेश की ओर से सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को इस बारे में पत्र भेजकर 21 से 27 सितंबर तक चलने वाले अल्जाइमर-डिमेंशिया जागरूकता सप्ताह के दौरान विविध आयोजन करने को कहा गया है। इसके तहत कोविड-19 के सभी दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए रैली, संगोष्ठी, अर्बन स्लम कैंप, मंदबुद्धि प्रमाण पत्र देने आदि के लिए शिविर आयोजित करने के निर्देश दिए गए हैं।
स्वास्थ्य विभाग मदद को तैयार
राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत नेशनल प्रोग्राम फॉर द हेल्थ केयर ऑफ एल्डर्ली (एनपीएचसीई) संचालित किया जा रहा है। इसके तहत वरिष्ठ नागरिकों व वृद्धजनों के समुचित उपचार पर विशेष ध्यान दिया जाता है। हर जिले में इसके लिए विशेषज्ञ चिकित्सक और स्टाफ की तैनाती भी की गयी है। बुजुर्गों के लिए अलग वार्ड भी बनाए गए हैं। इसके अलावा उनके मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं पर परामर्श के लिए मनोचिकित्सक तैनात किया गए हैं। मनकक्ष की व्यवस्था की गयी है, जहां पर काउंसिलिंग से लेकर इलाज तक की व्यवस्था होती है। समय-समय पर शिविर आयोजित कर भी बुजुर्गों की मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ीं समस्याओं का समाधान किया जाता है।
क्या कहते हैं आंकड़े
सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली की तरफ से अभी हाल ही में जारी एक एडवाइजरी में कहा गया है कि वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश में करीब 16 करोड़ बुजुर्ग (60 साल के ऊपर) हैं । इनमें से 60 से 69 साल के करीब 8.8 करोड़, 70 से 79 साल के करीब 6.4 करोड़, दूसरों पर आश्रित 80 साल के करीब 2.8 करोड़ और 18 लाख बुजुर्ग ऐसे हैं, जिनका अपना कोई घर नहीं है या कोई देखभाल करने वाला नहीं है ।