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महिला समानता दिवस 26 अगस्त पर विशेष : संघर्ष ही बनती है मिसाल

महिलाएं, जिन्होंने स्त्री के साथ-साथ पुरुष की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई है।

By JagranEdited By: Published: Sun, 26 Aug 2018 12:50 PM (IST)Updated: Sun, 26 Aug 2018 12:50 PM (IST)
महिला समानता दिवस 26 अगस्त पर विशेष : संघर्ष ही बनती है मिसाल
महिला समानता दिवस 26 अगस्त पर विशेष : संघर्ष ही बनती है मिसाल

लखनऊ (नमन दीक्षित)। संतुलन एक ऐसा विचार जो लगभग हर दुनियावी चीज का आधार है। एक सामाजिक ढांचे में जितनी भी विसंगतियां नजर आती हैं वह संतुलन की स्थिति के बिगड़ने के कारण ही होती हैं। खास तौर पर पुरुष और महिला के बीच समानता से बना संतुलन। दुनिया का हर समाज इस त्रास से जूझा है अथवा जूझ रहा है। हम भी जूझ रहे हैं। एक मानसिकता, एक धारणा ऐसी है कि कुछ काम और जिम्मेदारियां सिर्फ मर्दो के लिए ही हैं, जैसे कमाई करके घर चलाना, बाइक चलाना वगैरह-वगैरह। समाज में कामों का वर्गीकरण औरत और मर्द के हिसाब से किया गया है। यह मानसिकता समानता की विचारधारा को कुंद करती है।हालांकि ऐसे कई उदाहरण भी देखने को मिलते हैं जहां महिलाओं ने पुरुष वर्चस्व की परिपाटी को तोड़ा है और एक नई धारा का सृजन किया है। महिलाएं, जिन्होंने स्त्री के साथ-साथ पुरुष की जिम्मेदारी भी बखूबी निभाई है। अपने परिवार के लिए आलंब बनने की उनकी संघर्ष यात्रा किसी के लिए भी प्रेरणा बन सकती है। महिला समानता दिवस ऐसी ही महिलाओं की संघर्ष यात्रा पर एक रिपोर्ट। कभी हॉकी की राष्ट्रीय खिलाड़ी थीं, बेटा बन सके बड़ा प्लेयर इसलिए चला रहीं ई-रिक्शा

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लखनऊ की मालती मिश्रा आज सड़क पर ई-रिक्शा चलाते हुए उन पुराने सपनों में खो जाती हैं जिन्हें बचपन से ही उन्होंने संजोया था। कड़ी मेहनत कर उस मुकाम तक पहुंचीं भी, लेकिन बुरे आर्थिक और पारिवारिक हालात ने ऊंचाइयों की ओर बढ़ती गति को थाम दिया। उन्होंने यहीं केडी सिंह बाबू स्टेडियम में हॉकी सीखी। किशोरावस्था में राष्ट्रीय स्तर के कई मैच भी खेले। आखिरी मैच गोरखपुर में नॉर्थ ईस्टर्न रेलवे की टीम के साथ खेला था। मालती बताती हैं कि 8वीं के बाद ही उनका विवाह कर दिया गया। वैवाहिक जीवन में भी कई दिक्कतें आईं। अंतत: अकेलेपन की जंजीरों में घिरने के बाद उनके सामने दो रास्ते थे, हालात को लेकर रोना रोतीं या फिर नई उमंग लेकर आगे बढ़तीं। उन्होंने दूसरा रास्ता चुना। अपने बेटे के लिए दोबारा अपने पैरों पर खड़े होने का फैसला किया। उन्होंने 10वीं की परीक्षा पास कर बीबीडी में नौकरी कर ली। इसके काफी दिन बाद यह नौकरी भी छूट गई तो लोन लेकर ई-रिक्शा खरीद लिया और ठाना कि अब अपने बेटे को हॉकी का बड़ा खिलाड़ी बनाएंगी। उनकी मेहनत और जुनून भरी सोच रंग भी ला रही है। उनका बेटा आज नेशनल कॉलेज में पढ़ाई के साथ श्रेष्ठ खिलाड़ियों में शामिल हो चुका है। मालती ने एक पिता और एक माता दोनों की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया है। पति की मुत्यु के बाद संभाला घर

प्राग नारायण रोड स्थित कॉलोनी में रहने वाली सुनीता आज पान की दुकान चला रही हैं। कारण है पति का बीमारी के चलते निधन हो जाना। वह कहती हैं कि सबकुछ ठीक चल रहा था लेकिन अचानक पति के जाने से जिंदगी में एक भूचाल सा गया। जिस समाज में रह रही हैं वहां उनके लिए काम करना बहुत मुश्किल साबित हो रहा था। लोग बड़ी-बड़ी विचारधाराओं की बात कर बड़े उदाहरण तो देते हैं, पर उसे जब कठिन परिस्थितियों में मैने अमल में लाने की कोशिश की तो सबसे बड़ी रुकावट या डर समाज से ही था, लेकिन उन्होंने इन सब की परवाह किए बिना जिंदगी को उसी पटरी पर लाने का फैसला किया। आज वह पान की दुकान चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही हैं। निभा रहीं घर के मुखिया की जिम्मेदारी

डालीबाग निवासी राधा गुप्ता प्राग नारायण रोड पर आज भुंट्टे का ठेला लगाती हैं। उन्होंने बताया कि शुरुआत से ही घर में पैसे की काफी तंगी थी। पति कमाते तो हैं, पर उससे घर का खर्च चलाना मुश्किल था, तो ठाना कि अब वह भी घर संभालने में उतनी ही मेहनत करेंगी, जितनी परिवार के मुखिया को करनी पड़ती है। हालांकि शुरुआत में समाज से उन्हें काफी उलाहना भी मिलीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। पिछले 15 सालों से वह सीजन के हिसाब से, भुंट्टा, खीरा तो कभी मूंगफली का ठेला लगाकर परिवार चला रही हैं। आज लोग उनकी मिसाल देते हैं। तब लड़कियां बाइक चलाती हुई नहीं दिखती थीं

प्राची शिखा, बाइकरनी ग्रुप लखनऊ चैप्टर की हेड।

मुझे जब कहीं जाना होता था तो भाई या पापा का मुंह देखना पड़ता था। भाई छोटा जरूर था पर बहुत भाव खाता था। वैसे भी मुझे दूसरों पर डिपेंड रहना कभी अच्छा नहीं लगता। इसीलिए कभी-कभी सोचती थी कि यदि मुझे भी स्कूटी चलाना आता तो मैं खुद ही चली जाती। बस, एक दिन मौका पाकर दादाजी की स्कूटी उठाई और निकल पड़ी। ऐसा मैंने कई बार किया। उस समय महिलाएं अमूमन बाइकिंग न के बराबर ही करती थीं। उस समय उतना ट्रेंड भी नहीं था और लड़कियों के लिए बाइकिंग लोगों की नजरों में फिट नहीं बैठता था। लेकिन मैं अपने जुनून को अमल में लाई। सीखने के दौरान कई बार गिरी और चोट भी खाई पर स्कूटी चलाना सीख लिया क्योंकि तब आत्मनिर्भर बनने का जुनून सवार था। 2012 से अब तक बाइक राइडिंग जारी है। 2012 में मैं बाइकरनी ग्रुप से जुड़ गई। नोएडा, दिल्ली, गुड़गांव में भी बाइक राइडिंग करने लगी।


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