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गणतंत्र दिवस 2022: अवध के अधिग्रहण के साथ उठी थी स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी, तालुकेदारों व जमीदारों ने नहीं दिया साथ

Republic Day 2022 13 मई 1857 को मेरठ में स्वतंत्रता संग्राम की जो चिंगारी फूटी थी उसकी शुरुआत अवध से की गई थी। अंग्रेजी सरकार द्वारा अवध के शासकों से किया गया दुर्व्यवहार 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ उनको हथियार उठाने का महत्वपूर्ण कारण बना।

By Vikas MishraEdited By: Published: Wed, 26 Jan 2022 10:16 AM (IST)Updated: Wed, 26 Jan 2022 10:23 AM (IST)
गणतंत्र दिवस 2022: अवध के अधिग्रहण के साथ उठी थी स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी, तालुकेदारों व जमीदारों ने नहीं दिया साथ
अंग्रेज सरकार अवध के शासकों पर हमेशा गैरबराबरी की संधि थोपती रहीं

लखनऊ, जागरण संवाददाता। भले ही 13 मई 1857 को मेरठ में स्वतंत्रता संग्राम की चिंगारी फूटी थी, लेकिन इसकी नींव अवध के अधिग्रहण के साथ ही रख गई थी। अंग्रेज सरकार अवध के शासकों पर हमेशा गैरबराबरी की संधि थोपती रहीं, जिससे यहां की जनता में उनके प्रति रोष पनपने लगा। 1857 की क्रांति के कुछ वर्ष पूर्व फ्रेंड ऑफ इंडिया पत्रिका ने 18 मार्च एवं 14 सितंबर 1854 के अंक में एक लेख प्रकाशित किया। लेख में गवर्नर जनरल लार्ड डलहौजी ने एक के बाद एक देसी रियासतों का कुप्रशासन और स्वाभाविक उत्तराधिकारी न होने के बहाने अधिग्रहण करने को इसका जिम्मेदार ठहराया था। इसके चलते अवध के तालुकेदारों व जमीदारों ने भी अंग्रेजों का साथ नहीं दिया।

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अंग्रेजी सरकार द्वारा अवध के शासकों से किया गया दुव्र्यवहार 1857 में अंग्रेजों के खिलाफ उनको हथियार उठाने का महत्वपूर्ण कारण बना। इसके बाद एंग्लो-इंडियन पत्रिकाओं ने इन तालुकेदारों व जमीदारों के मालिकाना अधिकार तथा उसकी अवधि पर प्रश्न उठाना शुरू कर दिया। फ्रेंड ऑफ इंडिया 10 जनवरी 1856 में इसका उल्लेख किया गया। अब कृषक अपनी भूमि पर सुरक्षित नहीं थे। ऊपर से किसानों पर भू राजस्व का भार बढ़ता जा रहा था। व्यापारियों पर नए कर का बोझ लाद दिया गया था। इन सब ने जमीदारों व तालुकेदारों को एकजुट करने का काम किया और बाद में उन लोगों को स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ खड़ा कर दिया

अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली शाह की छवि एक अयोग्य, निष्ठुर, कामुक शासन के रुप में पेश करने की कई कोशिशें की, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। शायद कहीं कारण था कि अजमद अली शाह के पुत्र वाजिद अली शाह पर गर्वनर जनरल डलहौजी ने एक नई संधि के लिए दबाव बनाया। जनरल चाहता था कि सभी तोपों को उतरवा दिया जाए और सेना को नि:शस्त्र कर दिया जाए। पर वाजिद अली शाह इसके लिए तैयार नहीं हुए। मेजर जनरल जेम्स आउट्रम ने सात फरवरी 1856 में अवध को अधिग्रहीत करने के लिए एक घोषणा प्रकाशित की। बाद में 11 फरवरी 1857 को डलहौजी ने अवध राज्य को अधिग्रहीत कर वाजिद अली शाह को छत्तर मंजिल से गिरफ्तार कर कलकत्ता के मटियाबुर्ज में ले जाकर नजरबंद कर दिया। बादशाह पर नई संधि के लिए दबाव बनाने और उनको बाद में सत्ता से बाहर करने से अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया था।

अधिग्रहण 1857 की क्रांति का मुख्य कारणअवध का अधिग्रहण: 1857 की स्वतंत्रता क्रांति का मुख्य कारण रहा। अवध के शासक अंग्रेज सरकार के प्रति हमेशा वफादार थे। उन्होंने संधि का पालन किया। लेकिन अंग्रेजों ने हमेशा छल किया। अवध की जनता वाजिद अली शाह का बहुत सम्मान करती थी। अंग्रेजों ने जब उनके शासक को कलकत्ता में नजरबंद कर दिया, तब से ही यहां की जनता में अंग्रेजों के प्रति क्रोध बढऩे लगा था।=


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