भूजल दोहन के लिए फुटपाथ तक पहुंचे
लखनऊ[रूमा सिन्हा]। जिसकी जमीन, उसका पानी, यह दावा अब पुराना हुआ। भूजल भंडारों से दोहन के लिए लोग सरक
लखनऊ[रूमा सिन्हा]। जिसकी जमीन, उसका पानी, यह दावा अब पुराना हुआ। भूजल भंडारों से दोहन के लिए लोग सरकारी जमीन यानी फुटपाथ और सड़क तक को नहीं छोड़ रहे हैं। शहर भर में इन दिनों लोग बेफिक्री से फुटपाथ, यहां तक कि सड़क किनारे बो¨रग कर भूजल लूट रहे हैं। यह स्थिति तब है जब नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने केंद्रीय भूजल प्राधिकरण को यह आदेश दे रखा है कि सभी प्रकार के बोरवेल्स व नलकूपों के लिए एनओसी लेना अनिवार्य होगा। मंशा साफ है कि भूजल की अधाधुंध लूट पर अंकुश लगाया जा सके। राजधानी में एक तरफ तो लाखों लोग पानी की एक-एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। वहीं ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है जो पैसे के बूते पर बो¨रग करा कर अन्य लोगों के हिस्से के जमीनी पानी को भी निचोड़े ले रहे हैं। दिन-रात के दोहन से भूजल भंडार खाली हो रहे हैं और नलकूप व बो¨रग फेल हो रही हैं। पानी की कमी को पूरा करने के लिए लोग बो¨रग के लिए नई-नई जगह तलाश रहे हैं। इस तलाश में वह अपना घर छोड़ सरकारी जमीन पर बने फुटपाथ व सड़क तक पहुंच गए हैं। अलीगंज एचआइजी कालोनी में हो रही बो¨रग में जब कई बार डिग करने पर भी पानी नहीं मिला तो सड़क किनारे बो¨रग कर डाली। यही स्थिति महानगर व राणा प्रताप मार्ग की है जहां फुटपाथ पर ही बो¨रग करा डाली। यह कोई एक-दो स्थानों की बात नहीं है। शहर भर में यह नजारा आम है। ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट के पूर्व निदेशक अशोक कुमार की मानें तो लोग यह नहीं समझ रहे कि आखिर भूजल की यह तलाश कहां तक जाएगी। दरअसल, हो यह रहा है कि जब पानी मिलता है तो लोग उसका बेहिसाब इस्तेमाल करते हैं। लोग यह भूल जाते हैं कि भूजल भंडार असीमित नहीं हैं। यही वजह है कि हर दो-तीन साल में नई जगह बो¨रग करानी पड़ रही है। दरअसल हम शहरों को कंक्रीट में तब्दील करते जा रहे हैं, जिससे भूजल भंडारों में बारिश का पानी तो पहुंच ही नहीं रहा है। वहीं पानी की हर तरह की जरूरत चाहें पेयजल हो, निर्माण कार्य हों, औद्योगिक या कृषि क्षेत्र की जरूरतें हों पेयजल से ही पूरी हो रही हैं। मजे की बात तो यह है कि एक बो¨रग के लिए ही हजारों लीटर भूजल व्यर्थ नाली में बहाने में भी संकोच नहीं करते। साफ है कि भूजल भंडारों की स्थितियां दिनोंदिन भयावह होती जा रही हैं। राज्य भूजल विभाग के हालिया आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं।
एनओसी लेना अनिवार्य
एनजीटी ने देश भर में हो रहे भूजल दोहन को गंभीरता से लेते हुए आदेश दिया था कि बगैर केंद्रीय भूजल प्राधिकरण से एनओसी लिए कोई भी जमीनी पानी का दोहन नहीं कर सकेगा। केंद्रीय भूजल बोर्ड के रीजनल डायरेक्टर वाईपी कौशिक कहते हैं कि प्राधिकरण के पास इतने संसाधन ही नहीं है कि वह करोड़ों में लगे नलकूपों व बोरवेल्स के लिए एनओसी जारी कर सके। कौशिक कहते हैं कि यह राज्य सरकार को ही देखना होगा। जहां तक फुटपाथ व सड़क पर बो¨रग की बात है तो यह म्यूनिसिपल अथॉरिटी को देखना चाहिए कि उसकी जमीन पर कैसे बो¨रग की जा रही है।
खराब हो रहे हालात
- अस्सी के दशक में इंदिरा नगर, महानगर, अलीगंज, त्रिवेणीनगर, लालबाग, नौबस्ता, पारा, लालकुर्ती, सदर (कैंट), हुसैनगंज, जेल रोड, आलमबाग व जलालपुर (पारा) में सात-आठ मीटर की गहराई पर जल स्तर था जो अब 30 मीटर से अधिक गहराई तक खिसक चुका है।
- गोमती नगर के विनय खंड, विकास खंड व विराम खंड में बीते तीन वर्षों में साढ़े तीन से साढ़े चार मीटर की गिरावट दर्ज की गई है। इंदिरा नगर के सी ब्लॉक में बीते तीन वर्षों में ढाई से साढ़े चार मीटर से अधिक की गिरावट रिकॉर्ड की गई है।
क्या कहते हैं अफसर ?
राज्य भूजल विभाग के सीनियर हाइड्रोलॉजिस्ट रविकांत का कहना है कि रीचार्ज कम हो रहा है और दोहन उससे कहीं ज्यादा होता है। यही वजह है कि भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। जरूरत इस बात की है कि हम अपनी जरूरतों को कम करें और पानी को किफायत से खर्च करें। साथ ही भूजल के बजाय हमें सतही जल पर निर्भरता बढ़ानी होगी। अन्यत: स्थितियां और गंभीर होंगी।