Views of School Management in Lucknow: सीबीएसई 12वीं की परीक्षाएं रद होने पर स्नातक स्तर पर पड़ेगा असर, मेधावी छात्रों की मेहनत बेकार
शिक्षाविदों का मानना है कि भले ही सीबीएसई 12वीं की परीक्षाएं रद की गई हों मगर इसका असर स्नातक स्तर पर भी व्यापक रूप से पड़ेगा। स्नातक स्तर पर अभी तक मेरिट के आधार पर दाखिला लेने वाले शैक्षिक संस्थानों को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
लखनऊ [पुलक त्रिपाठी]। कोरोना महामारी के चलते सेंट्रल बोर्ड आफ सेकेंडरी एजुकेशन (सीबीएसई) और सीआइएससीई 12वीं की परीक्षा के रद किए जाने का फैसला निश्चित तौर लाखों विद्यार्थियों (सीबीएसई-लखनऊ में 13 हजार, यूपी में तीन लाख 25 हजार) की सुरक्षा के लिहाज से सराहनीय है, लेकिन इसे लेकर निजी स्कूल संचालकों के अपने अलग-अलग तर्क हैं। उनका मानना है कि सामान्य छात्र तो इस फैसले से खुश होंगे, मगर मेधावी छात्रों के लिए यह निर्णय ठीक नहीं है। इससे न सिर्फ उनकी मेहनत बेकार होगी, बल्कि बच्चों के बीच की क्रीमी लेयर समाप्त हो जाएगी। वहीं, शिक्षाविदों का मानना है कि भले ही सीबीएसई 12वीं की परीक्षाएं रद की गई हों, मगर इसका असर स्नातक स्तर पर भी व्यापक रूप से पड़ेगा। स्नातक स्तर पर अभी तक मेरिट के आधार पर दाखिला लेने वाले शैक्षिक संस्थानों को बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
क्या है बच्चों में क्रीमी लेयर: निजी स्कूल की प्रधानाचार्य छाया जोशी बताती हैं कि बारहवीं के बोर्ड पेपर का कांसेप्ट कुछ इस प्रकार का होता था कि जो छात्र साधारण पढ़ाई करते थे, वे 60 से 80 प्रतिशत तक नंबर ले आते थे, वहीं उनसे अधिक मेहनती छात्र 80 से 90 प्रतिशत तक नंबर हासिल कर लेते थे। क्रीमी लेयर के ब'चों का प्रतिशत 90 से 100 प्रतिशत के बीच माना जाता रहा है। परीक्षा रद होने की स्थिति में बच्चों के बीच का क्रीमी लेयर कांसेप्ट खत्म हो जाएगा। उनका कहना है कि देश में कई ऐसे नामी विश्वविद्यालय हैं जो मेरिट के आधार पर छात्रों का प्रवेश लेते थे, इन विश्विद्यालय के लिए भी ये एक बड़ा झटका है। जैसे दिल्ली विश्विद्यालय के कई कालेज में 99 से 95 प्रतिशत के बीच अंक हासिल करने वाले ब'चों का ही दाखिला मिल पाता था।
सीबीएसई के सिटी कोआर्डिनेटर जावेद आलम ने बताया कि बच्चों की सुरक्षा से बढ़कर कुछ नहीं है। सरकार का यह फैसला स्वागत योग्य है।
सेंट जोसफ विद्यालय समूह एवं प्रेसिडेंट/अनएडेड प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन, उत्तर प्रदेश के प्रबंध निदेशक अनिल अग्रवाल ने बताया कि बच्चों का स्वास्थ्य उनकी सुरक्षा सर्वोपरि है मगर पढ़ाई को भी पीछे नहीं छोड़ा जा सकता है, हममें से कोई भी नहीं जानता कि कोविड-19 का प्रकोप कब कम होगा और आगे किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ेगा, अगर आज आनलाइन शिक्षा हो सकती है तो आनलाइन एग्जाम क्यों नहीं हो सकता? यह एक बड़ा और विचार करने वाला विषय है। कब तक ब'चों को परीक्षा से वंचित रखा जाएगा, प्रमोट किया जाएगा। इससे शिक्षा की गुणवत्ता कहीं न कहीं खराब होगी। अफसोस है कि आज शिक्षा हमारी प्राथमिकता में बची ही नहीं है। सरकार से अनुरोध है कि इस वर्ष जो भी हो रहा है, मगर अगले वर्ष के लिए सरकार और शिक्षा बोर्ड को प्लान तैयार करके रखना पड़ेगा, ताकि अगर आफलाइन परीक्षा नहीं हो पा रही है तो आनलाइन परीक्षा संपादित करवाई जाए।
अवध कालीजिएट के संस्थापक प्रबंधक सरबजीत सिंह ने बताया कि बच्चों की सुरक्षा के लिए सरकार का यह निर्णय स्वागत योग्य है, मगर मेधावी ब'चों की बात की जाए तो उनके लिहाज से यह फैसला दुर्भाग्यपूर्ण है। यह फैसला दूरगामी दृष्टिकोण से शैक्षिक ढांचे को भी खासा प्रभावित करेगा।
एसकेडी के मैनेजिंग डायरेक्टर मनीष सिंह ने बताया कि परीक्षाएं होती तो अ'छा रहता, परंतु बच्चों की सुरक्षा को देखते हुए सरकार का यह फैसला जिम्मेदारी भरा है, क्योंकि सरकार को पता है कि वह कितने ब'चों का अभी टीकाकरण करवा सकती है। ऐसे में समय को देखते हुए यह सही फैसला हैं। बस यही उम्मीद करते हैं कि सीबीएसई पारदर्शी तरीके से मूल्यांकन कराएगा।