सुन्नी वक्फ बोर्ड के फैसले पर बोले उलमा, सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल से कबूल Lucknow news
सुन्नी वक्फ बोर्ड के फैसले पर मुस्लिम धर्मगुरुओं ने दी अपनी राय। कहा सुन्नी वक्फ बोर्ड का अपना फैसला वहीं किसी ने कहा संवैधानिक अधिकार दी जा सकती है याचिका।
लखनऊ, जेएनएन। अयोध्या पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने चुनौती न देने का निर्णय लिया है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के इस फैसले पर उलमा की राय जानने की कोशिश की गई।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड केे सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड खुदमुख्तार इदारा है। वह इलेक्टेड बॉडी है। बोर्ड को अधिकार है कि वह फैसला ले कि उसको पुनर्विचार याचिका दाखिल करनी है या नहीं। इसको लेकर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड पहले ही बैठक कर अपना फैसला ले चुकी है। वह अपने स्टैंड पर कायम है।
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी संयोजक एडवोकेट जफरयाब जिलानी ने कहा, सुन्नी वक्फ बोर्ड ने जो फैसला लिया है, उसकी उम्मीद पहले से ही थी। पुनर्विचार याचिका दाखिल करना संवैधानिक अधिकार है। बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करना चाहता, न करे। अगर एक भी पक्षकार पुनर्विचार याचिका दाखिल करने के पक्ष में हैं तो भारतीय संविधान उनको पूरा अधिकार देता है।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वरिष्ठ शिया धर्मगुरु व उपाध्यक्ष मौलाना डॉ. कल्बे सादिक ने कहा कि मुसलमानों को अपने देश के संविधान पर पूरा यकीन है। इसलिए मुसलमानों ने कोर्ट के फैसले को दिल से कबूल किया। इस फैसले ने सदियों से चले आ रहे झगड़े को हमेशा के लिए समाप्त कर दिया। मैंने पहले ही कहा था कि मुसलमानों को चाहिए कि वह अपने हिंदू भाइयों को जमीन दे दें।
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल करे या न करे। यह उसका अपना फैसला है। कोर्ट ने बोर्ड को पांच एकड़ जमीन दी है। हमारा एजेंडा क्लियर है। हमने पहले भी कहा था कि इस मामले में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का जो भी स्टैंड होगा। शिया पर्सनल लॉ बोर्ड उसके साथ देगा।
मजलिस उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना कल्बे जवाद नकवी ने कहा कि कोर्ट के फैसले के बाद पुनर्विचार याचिका दाखिल करने का कोई मतलब नहीं है। फैसला आने से पहले मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा था कि अयोध्या मामले को लेकर कोर्ट जो भी फैसला देगा, वह हमें मंजूर होगा। हम सभी को अपने बयान पर कायम रहना चाहिए। अगर फैसला मुसलमानों के पक्ष में होता तो भी वहां मस्जिद नहीं बना पाते।
काजी-ए-शहर मुफ्ती इरफान मियां फरंगी महली ने कहा कि पुनर्विचार याचिका दायर करना एक प्रक्रिया है। देश के संविधान ने हमको यह अधिकार दिया है। जो पक्षकार फैसले से सहमत नहीं हैं, पुनर्विचार याचिका दाखिल करना उनका संवैधानिक अधिकार हैं। सुन्नी वक्फ बोर्ड पुनर्विचार याचिका दाखिल नहीं करेगा, यह उनका अपना स्टैंड है। पुनर्विचार याचिका दाखिल करने या न करने पर दबाव बनाना ठीक नहीं है।