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तब्लीगी जमातियों से निपटने का उत्तर प्रदेश में सबसे कारगर फॉर्मूला, भय बिन होत न प्रीत...

बरेली में एक गांव में जब ग्रामीणों से क्वारंटाइन होने का आग्रह किया गया तो आदत से मजबूर लोग हिंसा पर आमादा हो गए और पुलिसकर्मियों को पथराव करके लहूलुहान कर दिया।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 13 Apr 2020 01:35 PM (IST)Updated: Tue, 14 Apr 2020 01:40 AM (IST)
तब्लीगी जमातियों से निपटने का उत्तर प्रदेश में सबसे कारगर फॉर्मूला, भय बिन होत न प्रीत...
तब्लीगी जमातियों से निपटने का उत्तर प्रदेश में सबसे कारगर फॉर्मूला, भय बिन होत न प्रीत...

उत्तर प्रदेश, सद्गुरु शरण। यूपी में अब तक कोरोना संक्रमित 466 रोगी चिह्नित हुए हैं, जिनमें 252 यानी आधे से अधिक, सीधे तब्लीगी जमाती या उनके संपर्क में आए लोग हैं। इससे समझा जा सकता है कि जमातियों ने उस समाज के साथ कैसा गैर जिम्मेदाराना बर्ताव किया, जिसका हिस्सा खुद उनके अलावा उनके परिवार, नाते-रिश्तेदार, इष्ट-मित्र और स्वधर्मी भी हैं। बाकी देशदुनिया की तरह यूपी का शासन-प्रशासन भी लॉकडाउन लागू करके लोगों को घरों में रहने के लिए बाध्य कर रहा था।

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चौरासी कोसी परिक्रमा : अयोध्या में नवरात्र के दौरान होने वाली चौरासी कोसी परिक्रमा में सदियों से लाखों श्रद्धालु शामिल होते हैं, पर इस बार सबने वहां न जाने का स्वत:स्फूर्त संकल्प ले लिया। वहां रामलला के नए गर्भगृह समेत सभी मंदिरों की गतिविधि अकेले पुजारी द्वारा सुबह-शाम भगवान की आरती तक सीमित हो गई। नवरात्र में देवी दर्शन के लिए मंदिर जाने और कन्याभोज करके व्रत पारण करने की परंपरा भंग करने का संकल्प प्रखर राष्ट्रभाव का अकल्पनीय उदाहरण रहा, जिसके लिए एक भी स्थान पर जोर-जबर्दस्ती नहीं करनी पड़ी।

बड़ी संख्या में विदेशी भी आराम फरमाते मिले : मंदिरों की तरह गुरुद्वारे और गिरजाघर भी स्वत: बंद हो गए, पर अधिकतर मस्जिदों और मदरसों में हमेशा की तरह रौनक बरकरार थी। निजामुद्दीन और स्थानीय जमातों में शामिल लोगों की तलाश में जब पुलिस मस्जिदों-मदरसों में घुसी तो वहां स्थानीय जमातियों के साथ बड़ी संख्या में विदेशी भी आराम फरमाते मिले। कुछ स्थानों पर तो बच्चे भी मिले। पुलिस को इन स्थलों से आपत्तिजनक वीडियो भी मिले जिनमें परोक्ष-अपरोक्ष रूप से लोगों से लॉकडाउन की बंदिशों, खासकर घर में ही नमाज अदा करने की प्रशासन की अपील न मानने का संदेश दिया गया था। शायद ऐसी नकारात्मक नसीहतों का ही असर था कि पूरे प्रदेश में जगह-जगह मस्जिद जाकर सामूहिक नमाज अदा करने की जिद को लेकर संघर्ष चल रहे थे। सरकार, शासन और प्रशासन सन्न थे।

डॉक्टर हालचाल लेने गए तो ये जमाती उनके ऊपर थूकने लगे : समझ में आ चुका था कि पिछले कुछ दिन की सारी कवायद पर जमाती पानी फेर चुके हैं। इसके बावजूद सरकार ने धैर्य रखा और इन्हें समझा- बुझाकर अस्पतालों और क्वारंटाइन सेंटरों में भेजा, पर कोराना की बरात के ये बराती इतनी आसानी से कहां मानने वाले थे। अस्पताल के वार्ड में दाखिल होते ही ये लोग निर्वस्त्र होकर घूमने लगे। डॉक्टर हालचाल लेने गए तो ये जमाती उनके ऊपर थूकने लगे। वह वार्ड में भी हर जगह थूक रहे थे। अस्पताल प्रशासन धैर्य धारण किए रहा। चिकित्साकर्मी इनकी सेवा करते रहे। कर्मचारी जब खाना लेकर पहुंचे तो जमातियों ने बीफ और बिरयानी की मांग की। बिल्कुल मनबढ़ बरातियों जैसे नखरे।

ऐसा दुर्व्यवहार तो लोग स्वजनों का भी नहीं सहते, पर शायद यही चिकित्सा पेशे की खासियत है कि जो आपको प्रताड़ित और अपमानित कर रहे, जो आपके ऊपर थूक रहे, जो आपको अश्लील गालियां दे रहे, जो आपके स्त्री होने का भी लिहाज नहीं कर रहे, आप उनका भी इलाज करिए और उनके जीवन की रक्षा करिए। प्रदेश के सभी डॉक्टरों और उनकी टीम को इस महानता के लिए सलाम। आप सचमुच धरती के भगवान हैं। आप सचमुच धरती के देव हैं।

दही के भ्रम में चूना भी पिया : बरेली में जमातीनुमा लोगों की बहुतायत वाले एक गांव में जब ग्रामीणों से क्वारंटाइन होने का आग्रह किया गया तो आदत से मजबूर लोग हिंसा पर आमादा हो गए और स्वास्थ्यकर्मियों-पुलिसकर्मियों को पथराव करके लहूलुहान कर दिया। इनसे निपटने की रणनीति बनाते हुए स्थानीय प्रशासन को अंतत: पीएसी याद आई। फिर क्या, आनन-फानन में पीएसी मौके पर भेजी गई जिसने अपनी शैली में लोगों का इलाज शुरू किया। ग्रामीणों ने हमेशा की तरह महिलाओं को आगे करके जंग जीतने का अंतिम प्रयास किया, पर इनकी आदतों-हरकतों से वाकिफ प्रशासन सतर्क था। वहां महिला पुलिसकर्मियों को भी बुला लिया गया था। कुछ ही मिनटों में सारे क्रांतिकारी न सिर्फ घरों में कैद हो गए, बल्कि खुशी-खुशी क्वारंटाइन होने को भी तैयार हो गए। बरेली के इस वाकये का संदेश प्रदेशभर के जमातियों में गया। अब उन्हें दही और चूने का फर्क समझ में आ चुका है। प्रशासन को भी भूला मंत्र याद आ गया, भय बिन होत न प्रीत।

सियासत का खूबसूरत चेहरा : कोरोना संकट ने सियासत की खल-छवि भी तोड़ी है। केंद्र और राज्य के सत्तारूढ़ नेतृत्व ने जिस तरह इस संकट को ललकारा, उसकी सराहना पूरी दुनिया कर रही, पर इस घड़ी में यूपी के विपक्षी दलों ने भी सरकार की नीति-रणनीति के साथ जो एकजुटता दिखाई, वह वंदनीय है। आक्रामक तेवरों के लिए पहचानी जाने वालीं बसपा प्रमुख मायावती ने इस दरम्यान बेहद जिम्मेदाराना रवैया दर्शाया, जबकि अखिलेश यादव ने भी यदा-कदा सरकार को चिकोटी काटने के अलावा प्राय: सरकार के प्रयासों का साथ ही दिया। सियासत की यह सकारात्मकता सचमुच सराहनीय है। ऐसी खूबसूरत चेहरे वाली सियासत से ही उत्तर प्रदेश, उत्तम प्रदेश बन सकता है।

[स्थानीय संपादक, उत्तर प्रदेश]


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