उत्तर प्रदेश डायरी: दूर तक जाएगा अयोध्या का संदेश
दीपावली जैसा बड़ा पर्व होने के कारण वैसे तो पिछला पूरा सप्ताह त्यौहारों के नाम गया, लेकिन इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने की घोषणा से लोकसभा चुनाव का जो एजेंडा पिछले महीने सेट हुआ।
फैजाबाद का नाम अब अयोध्या होने की घोषणा ने उत्तर प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य में लहरें पैदा कर दीं। पक्ष और विपक्ष दोनों ही एकदम से सक्रिय हो उठे हैं।
दीपावली जैसा बड़ा पर्व होने के कारण वैसे तो पिछला पूरा सप्ताह त्यौहारों के नाम गया, लेकिन इलाहाबाद का नाम प्रयागराज करने की घोषणा से अगले लोकसभा चुनाव का जो एजेंडा पिछले महीने सेट हुआ था, इस नए नामकरण ने उसे गति दे दी। अयोध्या को जिसने भी देखा, काशी या प्रयाग की तुलना में उसे हमेशा उदास पाया। सोता हुआ और खोया खोया सा शहर। सार्वजनिक सुविधाएं वहां नहीं के बराबर थीं और लगता ही नहीं था कि यह शहर कभी भारतीय संस्कृति का केंद्र रहा होगा।
गत वर्ष राज्य सरकार द्वारा राम की नगरी अयोध्या में पहली बार मनाई गई दीवाली ने इस उपेक्षित नगर को कुछ विकास योजनाएं दीं और इस बार की दीवाली में उसके नाम का विस्तार फैजाबाद तक कर दिया गया। नामकरण पर हंगामा होना था सो हुआ।
विपक्ष ने इसे धर्म का राजनीतिकरण कहा। नामकरण का निर्णय तब वास्तविक सराहना पा सकेगा जब अयोध्या में नागरिक सुविधाएं भी दिखेंगी। दीवाली मनाना बेशक एक पुरातन नगर का सम्मान है, लेकिन नगरवासियों को इससे बहुत अधिक चाहिए। अयोध्या यदि अगले कुछ वर्षो में पर्यटन का बड़ा केंद्र बन सका तो वह होगी सरकार की असल सफलता।
उधर यह भी सही है कि ये नामकरण हिंदू चेहरे के तौर पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहचान उत्तर प्रदेश के बाहर तक ले जा रहे हैं।
छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश का चुनाव हो या तेलंगाना का, योगी आदित्यनाथ को भाजपा वहां स्टार प्रचारक के रूप में भेज रही है। वह प्रखर हिंदुत्व का चेहरा बन चुके हैं।
इस घटना ने सरकार व भाजपा दोनों के लिए पैदा की शर्मिदगी
सत्तारूढ़ दल का कोई पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एक चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए थाने में पुलिस के हाथ जोड़े तो राज्य में उस पार्टी के कार्यकर्ताओं की हैसियत समझी जा सकती है। यही हुआ मेरठ में।
ऐन दीवाली के दिन मेरठ में एक ऐसी घटना घटी जिसने राज्य सरकार और भाजपा दोनों के लिए शर्मिदगी की स्थिति पैदा कर दी। कई बार के विधायक और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी एक चोरी की एफआइआर दर्ज कराने में जब विफल हो गए तो उन्हें थाने जाना पड़ा।
तब भी पुलिस नहीं मानी तो उन्हें धरना तक देना पड़ा। घटना बड़ी थी तो अखबारों में उनकी हाथ जोड़े फोटो छपी और फिर सोशल साइट्स पर चली। यूपी में नौकरशाही का तंत्र कितना व्यापक और कितना सघन है, इसका उदाहरण है यह घटना। जब लक्ष्मीकांत वाजपेयी जैसे नेता को रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए अनुनय विनय करनी पड़े तो आम लोगों को होने वाली परेशानी का अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। सरकार के मंत्री, विधायक सभी अपनी उपेक्षा की शिकायत करते हैं, लेकिन उनकी सुनी नहीं जाती और बात हमेशा आई गई हो जाती है।
लखनऊ को मिला नया अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम
बीते सप्ताह उत्तर प्रदेश को एक नया अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट स्टेडियम मिल गया। लखनऊ में बने इस स्टेडियम में छह नवंबर को पहला एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैच भारत और वेस्ट इंडीज के बीच खेला गया।
क्रिकेट की राजनीति से अपरिचित नई पीढ़ी के लिए यह बात हमेशा कौतुक भरी रही कि जब उत्तर प्रदेश में कानपुर का ग्रीन पार्क है तो फिर यहां बड़े मैच क्यों नहीं होते। उनकी जिज्ञासा खासकर आइपीएल मैचों को लेकर होती है।
उत्तर प्रदेश सरकार के खेल मंत्री पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी चेतन चौहान हैं और वह अगर कोशिश करें तो उत्तर प्रदेश के खेलों पर जमाने से छाई राजनीति की बदली छंट सकती है।