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उर्दू भाषा जानने वाले को स्पीच थेरेपी में करनी पड़ती है मशक्कत, शोध में हुआ खुलासा

एसजीपीजीआइ के बॉयोमेडिकल रिसर्च के शोध में स्पीच थेरेपी को लेकर सामने आए कई तथ्य भाषा डालती है दिमाग की सक्रियता पर प्रभाव।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 28 Jan 2020 08:21 AM (IST)Updated: Tue, 28 Jan 2020 08:21 AM (IST)
उर्दू भाषा जानने वाले को स्पीच थेरेपी में करनी पड़ती है मशक्कत, शोध में हुआ खुलासा
उर्दू भाषा जानने वाले को स्पीच थेरेपी में करनी पड़ती है मशक्कत, शोध में हुआ खुलासा

लखनऊ, जेएनएन। भाषा का प्रभाव दिमाग की सक्रियता पर पड़ता है। संजय गांधी पीजीआइ के सेंटर फॉर बॉयोमेडिकल रिसर्च के वैज्ञानिक डॉ. उत्तम कुमार की शोध में यह तथ्य सामने आया है। इसमें यह भी साबित हुआ है कि स्पीच थेरेपी देते समय जानना जरूरी है की मरीज किस भाषा का जानकार रहा है। 

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इसके लिए डॉ. उत्तम कुमार ने हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू जानने वाले लोगों पर अध्ययन किया। इसमें ये तथ्य सामने आए। डॉ. उत्तम कुमार के मुताबिक हमारा मस्तिष्क न्यूरान्स से बना होता है। इसमें करीब 86 अरब न्यूरान्स होते हैं। वे एक-दूसरे से जुड़े होते हैं, जिसे आप आसान भाषा में ब्रेन सर्किट भी कह सकते हैं। एक तरह से यह मस्तिष्क की नेटवर्किंग है। इस सर्किट के बहुत सारे हिस्से होते हैं। ये मिलकर एक प्रॉसेसर जैसा काम करते हैं। अध्ययन में 20 हिंदी भाषियों को लिया गया, जो अंग्रेजी और उर्दू नहीं जानते थे। इनकी ब्रेन मैपिंग की गई, तो पता चला कि हिंदी पढ़ते समय दिमाग का पृष्ठ भाग यानी ऊपरी हिस्सा ज्यादा सक्रिय रहा। उर्दू पढ़ते समय दिमाग के पृष्ठ भाग यानी ऊपरी हिस्से के साथ निचला हिस्सा भी सक्रिय रहता है। दोनों हिस्से सक्रिय होने से इनके दिमाग को ज्यादा काम करना पड़ता है। 

उर्दू भाषी को ज्यादा देर तक स्पीच थेरैपी देने की जरूरत

अपने अध्ययन डॉ. उत्तम कुमार ने पाया कि पैरालिसिस होने, शब्दों को समझने में दिक्कत होने, सिर में चोट होने पर उर्दू भाषियों की स्पीच थेरैपी आसान नहीं होती। इसलिए अध्ययन के आए नतीजों के बाद इनके लिए नई तकनीक विकसित की जा रही है। हिंदी व अंग्रेजी भाषियों की अपेक्षा इन्हें ज्यादा देर तक स्पीच थेरैपी देनी चाहिए।


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