उत्तर प्रदेश राज्यनामा: सवर्णों का आंदोलन भड़का, शिक्षकों की भर्ती अटकी
उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि किसी पिछड़े पर ज्यादती नहीं होने दी जाएगी। सपा प्रमुख अखिलेश यादव शांत रहे। न समर्थन में दिखे और न विरोध में।
बसपा प्रमुख मायावती ने कहा, सवर्णों के बंद के पीछे भाजपा थी।
केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा, बंद को विपक्ष का समर्थन था और सवर्णों को अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए।
उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि किसी पिछड़े पर ज्यादती नहीं होने दी जाएगी।
सपा प्रमुख अखिलेश यादव शांत रहे। न समर्थन में दिखे और न विरोध में।
ये बयान या चुप्पी सवर्ण समाज द्वारा एससी एसटी एक्ट के खिलाफ छह सितंबर को कराए गए भारत बंद के बाद के हैं। समाज की सेहत के लिए बंद ठीक नहीं होते लेकिन यह भी सही है कि आमतौर पर हर बंद को किसी न किसी दल का समर्थन रहता है लेकिन, इस बार ऐसा नहीं हुआ। सोशल मीडिया तो परस्पर विरोधी मतों से पट गया जबकि सभी राजनीतिक दलों ने बंद समर्थक प्रदर्शनकारियों को दूर से ही ठेल दिया।
राजनीतिक अस्पृश्यों के साथ दिखने के लिए कोई भी पार्टी तैयार नहीं थी। उधर एक्ट का असर होना भी शुरू हो गया था। सात सितंबर को जिस दिन लखनऊ से लेकर भोपाल, ग्वालियर, रायपुर और दिल्ली तक बंद के कारणों पर तीखी बहस चल रही थी, ठीक उसी समय लखीमपुर के तीन डाक्टरों पर एससी एसटी एक्ट का मुकदमा लिखा जा रहा था।
एक नर्सिंग होम के इन डाक्टरों पर बच्चे की डिलीवरी में गलती करने का आरोप है। पुलिस दुविधा में पड़ी थी कि वह इस केस को मेडिकल लापरवाही माने या दलित उत्पीडऩ? डाक्टरों में दो ब्राह्मण हैं और एक यादव। इसके अगले ही दिन आठ सितंबर को बिजनौर में एक आइएएस अधिकारी के विरुद्ध उनके ही स्टेनो ने मुकदमा लिखा दिया। सुप्रीम कोर्ट हालांकि केंद्र सरकार द्वारा एक्ट में किए गए संशोधनों को दोबारा परखने जा रहा है लेकिन इसमें तो कोई शक नहीं कि यह मसला भाजपा के गले की हड्डी बन गया है।
बीते हफ्ते एक और घटना राज्य सरकार के लिए मुश्किलें लायी। भाजपा सरकार की पहली सबसे बड़ी भर्ती में इतने घपले हो गए कि लोग बसपा शासनकाल में हुई राज्य शैक्षिक पात्रता परीक्षा (टीईटी-2011) को याद करने लगे। उस समय परीक्षा में सारे नियम ताख पर रख दिए गए थे। बाद में तत्कालीन शिक्षा निदेशक को जेल भी जाना पड़ा था। इस बार भी सहायक शिक्षकों की भर्ती ऐसी ही गड़बडिय़ों का शिकार हुई। कुछ दिनों पहले भाजपा सरकार ने 68,500 सहायक शिक्षकों के लिए विज्ञापन निकाला था।
पहले 6137 सामान्य वर्ग के अभ्यर्थियों को आरक्षण की गलत व्याख्या से बाहर कर दिया गया। यह गलती सुधारी तो गड़बडिय़ों की परत दर परत सामने आने लगी। बिना परीक्षा दिए ही अभ्यर्थियों का पास हो जाना, फेल अभ्यर्थियों को पास करके सूची नियुक्ति के लिए भेज देना और कॉपी में 94 नंबर पाने वाले को रिजल्ट में 41 नंबर देना, कमोबेश ऐसी ही गड़बडिय़ां टीईटी-2011 में हुई थीं।
सरकार ने परीक्षा नियामक प्राधिकारी कार्यालय की सचिव को निलंबित करने के साथ ही जांच बैठाई है, लेकिन परीक्षा में और क्या-क्या हुआ है, यह कई परतों में दबा वह रहस्य है जिसे कुछ लोग रहस्य ही रखना चाहते हैं। इनके हाथ हमेशा की तरह लंबे हैं। यह देखना रुचिकर होगा कि दल और शासन निरपेक्ष यह शक्तिशाली वर्ग सरकार की पकड़ में आ भी पाता है या फिर हथेली की बालू हो जाएगा।
उधर शिक्षक दिवस पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शिक्षकों से एक रोचक किंतु बेधक प्रश्न पूछ लिया। शिक्षकों के एक सम्मान समारोह में उन्होंने जानना चाहा था कि कितने सरकारी शिक्षकों के बच्चे उनके अपने स्कूल में पढ़ते हैं। यानी जिस स्कूल में पिताजी पढ़ाते हैं, बेटा भी वहीं पढ़ता है या अंग्रेजी स्कूल में जाता है।
बोला तो कोई नहीं पर जवाब सबको पता है...!