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माध्यमिक स्तर तक जरूरी हो संस्कृत : राज्यापाल आनंदी बेन पटेल

उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम् और उत्तर प्रदेश उच्च शिक्षा परिषद की ओर से आयोजित हुई अंतरराष्ट्रीय चर्चा।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Sun, 06 Sep 2020 08:42 PM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 08:42 PM (IST)
माध्यमिक स्तर तक जरूरी हो संस्कृत : राज्यापाल आनंदी बेन पटेल
माध्यमिक स्तर तक जरूरी हो संस्कृत : राज्यापाल आनंदी बेन पटेल

लखनऊ, जेएनएन। माध्यमिक स्तर तक देव भाषा संस्कृत को अनिवार्य होना चाहिए, लेकिन यह भी जरूरी है कि नई शिक्षा नीति के तहत इसमें  ई-कंटेंट निर्माण, शिक्षण कला और कौशल संपादन पर जोर दिया जाए। नई शिक्षा नीति संस्कृत भाषा के विकास के साथ ही रोजगार के अवसर देने का अवश्य काम करेगी। राज्यापाल आनंदी बेन पटेल रविवार को जूम एप के माध्यम से आयोजित अंतरराष्ट्रीय चर्चा में बतौर मुख्य अतिथि बोल रही थीं।

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उप्र संस्कृत संस्थानम उप्र उच्च शिक्षा परिषद और संस्कृत भारती की ओर से राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 एवं संस्कृत के संदर्भ में पूर्व सिद्धता विषयक आयोजित ऑनलाइन चर्चा की अध्यक्षता बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति व उप्र उच्चशिक्षा परिषद के अध्यक्ष प्रो. गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने की। उन्होंने अध्यक्षीय वक्ता के रूप में कहा कि संस्कृत शिक्षण को उपादेय, गुणवत्ता पूर्ण एवं दूसरे विषयों से जोड़ने की आवश्यकता है। संस्कृत शिक्षार्थियों की रेखांकित सीमा को बदलकर इस भाषा को आम भाषा बनाया जा सकता है। 

मुख्यवक्ता शामिल हुए शिक्षा मंत्रालय के वरिष्ठ भाषा परामर्शक एवं संस्कृत संवर्धन प्रतिष्ठान के न्यासी सचिव पद्मश्री चमूकृष्ण शास्त्री ने कहा कि नई शिक्षा नीति में संस्कृत को तकनीक से जोड़ने की तैयारी की जा रही है। संस्कृत ज्ञान के तरीकों में बदलाव कर सरल मानक भाषा बनाई जा सकती है।

उन्होंने बहु विषयक विश्वविद्यालय एवं गुणवत्ता पर ध्यान देने की वकालत की। चर्चा का संचालन कर रहे उप्र संस्कृत संस्थानम् के अध्यक्ष डॉ. वाचस्पति मिश्रा ने कहा कि यह ऐसी भाषा है जो भारतीयता का एहसास कराती है। प्रदेश सरकार की पहल पर जन भाषा बनाने का कार्य युद्ध स्तर पर चल रहा है। प्रशासनिक सेवाओं में संस्कृत की भूमिका बढ़ी है। चर्चा में संस्कृतभारती के शास्त्र रक्षा प्रकल्प के प्रमुख डॉ. संजीव राय, डॉ. अशोक दुबे, डॉ. ललित गौड़, उपेंद्र त्रिपाठी, उमेश कुमार के अलावा जितेंद्र कुमार, पवन कुमार, डॉ. शोभन लाल उकिल, प्रो.कृष्णकांत शर्मा सहित कई विश्वविद्यालयों के विद्वानों ने हिस्सा लिया।


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