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गोमती रिवर फ्रंट घोटाला : आरोपित इंजीनियर रूप सिंह यादव व अन्य पर मुकदमा चलाने की अनुमति

गोमती रिवर फ्रंट घोटाला उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुए गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में सीबीआइ सिंचाई विभाग के तत्कालीन अधीक्षण अभियंता रूप सिंह यादव के विरुद्ध मुकदमा चलाएगी। सरकार ने रूप सिंह के विरुद्ध जांच एजेंसी को अभियोजन के लिए स्वीकृति दे दी है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 24 Mar 2021 02:56 PM (IST)Updated: Wed, 24 Mar 2021 03:00 PM (IST)
गोमती रिवर फ्रंट घोटाला : आरोपित इंजीनियर रूप सिंह यादव व अन्य पर मुकदमा चलाने की अनुमति
गोमती रिवर फ्रंट घोटाले के आरोपी इंजीनियर रूप सिंह यादव पर मुकदमा चलाने की अनुमति मिली।

लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। समाजवादी पार्टी के शासनकाल में उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हुए गोमती रिवर फ्रंट घोटाले में सीबीआइ सिंचाई विभाग के तत्कालीन अधीक्षण अभियंता रूप सिंह यादव के विरुद्ध मुकदमा चलाएगी। सरकार ने रूप सिंह के विरुद्ध जांच एजेंसी को अभियोजन के लिए स्वीकृति दे दी है। सीबीआइ ने रिवर फ्रंट घोटाले में आरोपित रूप सिंह यादव व उसके सहयोगी वरिष्ठ सहायक राजकुमार को 20 नवंबर, 2020 को लखनऊ से गिरफ्तार कर जेल भेजा था। सीबीआइ अब जल्द रूप सिंह के विरुद्ध कोर्ट में आरोपपत्र दाखिल करने की तैयारी कर रही है।

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रिवर फ्रंट घोटाले में सीबीआइ ने 30 नवंबर, 2017 को केस दर्ज कर अपनी जांच शुरू की थी। बीते दिनों आरोपित रूप सिंह यादव से लंबी पूछताछ की गई थी, जिसके बाद सीबीआइ ने उनकी गिरफ्तारी की थी। रूप सिंह यादव सेवानिवृत्त हो चुके हैं। रिवर फ्रंट घोटाले की जांच प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) भी कर रहा है। सीबीआइ के केस को आधार बनाकर ईडी ने इस प्रकरण में फरवरी 2018 को अपना केस दर्ज किया था। सीबीआइ जांच में सामने आया था कि ट्रंक ड्रेन, रबर डैम, डायाफ्राम वॉल व कुछ अन्य कार्यों को फर्जी दस्तावेजों के जरिये एग्रीमेंट तैयार कर ठेकेदारों को काम आवंटित किए गए, जबकि उनके विज्ञान भी जारी नहीं किए गए थे। इन अनियमितताओं के आरोप में ही रूप सिंह को गिरफ्तार किया गया था।

बता दें लखनऊ में गोमती रिवर फ्रंट के लिए सपा सरकार ने 1513 करोड़ स्वीकृत किए थे, जिसमें से 1437 करोड़ रुपये जारी होने के बाद भी मात्र 60 फीसद काम ही हुआ। 95 फीसद बजट जारी होने के बाद भी 40 फीसद काम अधूरा ही रहा। इस मामले में वर्ष 2017 में योगी सरकार ने न्यायिक जांच के आदेश दिए थे। आरोप है कि डिफाल्टर कंपनी को ठेका देने के लिए टेंडर की शर्तों में बदलाव किया गया था। पूरे प्रोजेक्ट में करीब 800 टेंडर निकाले गए थे, जिसका अधिकार चीफ इंजीनियर को दे दिया गया था। मई 2017 में रिटायर्ड जज आलोक कुमार सिंह की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग से जांच कराई। जांच रिपोर्ट में कई खामियां उजागर हुईं। इसके बाद रिपोर्ट के आधार पर योगी सरकार ने सीबीआइ जांच के लिए केंद्र को पत्र भेज दिया।


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