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UP Election 2022: सिर्फ उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर लगाया दांव कांग्रेस की मंशा पर उठाता है सवाल

UP Election 2022 लड़की हूं लड़ सकती हूं और 40 प्रतिशत महिला प्रत्याशी उतारकर कांग्रेस भले ही सोच रही हो कि महिलाएं उसके पक्ष में लामबंद होकर मतदान करेंगी लेकिन भारतीय समाज के मतदान करने की मनस्थिति को कांग्रेस समझ नहीं पाई है यह प्रमाणित होता दिख रहा है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 30 Oct 2021 11:03 AM (IST)Updated: Sat, 30 Oct 2021 11:04 AM (IST)
UP Election 2022: सिर्फ उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर लगाया दांव कांग्रेस की मंशा पर उठाता है सवाल
केवल उत्तर प्रदेश में महिलाओं पर लगाया दांव कांग्रेस की मंशा पर सवाल उठाता है। प्रतीकात्मक

हर्ष वर्धन त्रिपाठी। UP Election 2022 उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का चुनावी अभियान एक वादे और एक पोस्टर के आधार पर खड़ा करने की कोशिश की जा रही है। कांग्रेस महासचिव और उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ का नारा देते हुए पोस्टर जारी कर दिया। साथ ही यह एलान भी कर दिया कि 40 प्रतिशत विधानसभा टिकट महिलाओं को ही दिए जाएंगे। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को संजीवनी मिलने से देश में कांग्रेस पार्टी की स्थिति बेहतर होगी, ऐसा मानने वाले राजनीतिक विश्लेषकों ने प्रियंका वाड्रा के इस एलान भर से यह कहना शुरू कर दिया कि कांग्रेस ने बहुत बड़ा दांव खेल दिया है।

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लेकिन क्या उत्तर प्रदेश में मृतप्राय कांग्रेस पार्टी, लड़की हूं, लड़ सकती हूं, कहकर और 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देकर महिलाओं का मत अपने पक्ष में कर सकती है? इसे समझने के लिए कई महत्वपूर्ण बिंदु हैं, जिन्हें एक-एक करके समझने से आसानी से बात समझ आ जाएगी। जब इस लिहाज से समझने की कोशिश करते हैं तो महिला मतदाता एकदम से केवल इस आधार पर मतदान करेंगी कि महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में है, ऐसा होता नहीं दिखता।

प्रियंका वाड्रा महिलाओं को लड़की हूं, लड़ सकती हूं बताकर परिवार में लड़कियों को लड़कों के खिलाफ खड़ा करके जिस तरह से मत लेना चाहती हैं, यह कितना आधारहीन है, इसका एक बड़ा प्रमाण 2019 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिला था, जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को लगा था कि तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाएं अपने परिवार के विरोध में जाकर उन्हें मत दे देंगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। हां, यह अवश्य है कि उज्‍जवला जैसी महिला केंद्रित योजनाओं की वजह से महिलाओं ने नरेन्द्र मोदी के पक्ष में अपने परिवार की ही बात को और मजबूत करने में मदद की। आंकड़े स्थापित करते हैं कि आज भी भारतीय मतदाता परिवार में ही मतदान करता है। यही वजह रही कि कमजोर आय वर्ग के परिवारों में महिलाओं ने पुरुषों को भी नरेन्द्र मोदी के पक्ष में मतदान करने के लिए तैयार किया। ऐसा बहुत कम होता है कि परिवार में हर कोई अलग-अलग मतदान करता हो।

अब एक और महत्वपूर्ण बिंदु पर प्रियंका वाड्रा के इस दांव को कसकर देखते हैं कि क्या महिलाओं को अधिक टिकट देकर ही उन्हें शक्तिशाली बनाया जा सकता है। इस दांव पर कांग्रेस शुरू में ही औंधे मुंह गिर जाती है कि कांग्रेस की उत्तर प्रदेश में ऐसी स्थिति है नहीं कि चुनाव जीत सके और ऐसे में यह आरोप मजबूती से कांग्रेस पर चिपकता है कि वह हार का ठीकरा लड़कियों के सिर फोड़ने की कोशिश कर रही है। दूसरे राज्यों में जहां कांग्रेस की स्थिति उत्तर प्रदेश से बेहतर है, वहां न लड़की लड़ सकती है और न ही कांग्रेस उन्हें 40 प्रतिशत टिकट देने की बात कर रही है। कांग्रेस पार्टी का दोहरा रवैया यहीं इस पूरे अभियान को शुरू होने से पहले ही खत्म कर देता है, लेकिन अब इससे आगे की बात कर लेते हैं।

दरअसल प्रियंका वाड्रा जिस भाजपा के सामने महिलाओं को ताकत देने की बात कर रही हैं, उसकी पूर्ण बहुमत की केंद्र की नरेन्द्र मोदी सरकार में सर्वाधिक 11 महिलाओं को मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया है। देश की पहली लोकसभा में पांच प्रतिशत महिला सांसद से 2019 में मोदी सरकार के समय महिला सांसदों की संख्या 14 प्रतिशत तक पहुंच गई है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन और स्मृति ईरानी के साथ ही मीनाक्षी लेखी, अनुप्रिया पटेल, रेणुका सिंह, दर्शना जरदोश, भारती पवार, शोभा करंदलाजे, साध्वी निरंजन ज्योति, प्रतिमा भौमिक और अन्नपूर्णा देवी आज नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल में हैं और पुरुष साथियों जैसे ही शक्तिशाली हैं। इतना ही नहीं, नरेन्द्र मोदी जब पहली बार प्रधानमंत्री बने थे तो उन्होंने छह महिलाओं को मंत्रिमंडल में शामिल किया था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मंत्रिमंडल की तुलना देश के दूसरे प्रधानमंत्रियों से करें तो मनमोहन मंत्रिमंडल में भी कुल 10 महिलाएं ही थीं, जबकि मोदी सरकार में 11 महिला मंत्री हैं।

देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के पहले मंत्रिमंडल में अकेली महिला मंत्री के तौर पर राजकुमारी अमृता कौर थीं। दूसरी सरकार में किसी महिला मंत्री का प्रतिनिधित्व ही नहीं था और तीसरी सरकार में नेहरू ने डाक्टर सुशीला नैयर को मंत्री बनाया था। हालांकि लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में इंदिरा गांधी सहित तीन महिला मंत्री थीं। साथ ही, देश की शक्तिशाली प्रधानमंत्री के तौर पर स्थापित इंदिरा गांधी ने महिला होने के बावजूद एक भी महिला को कैबिनेट मंत्री नहीं बनाया। हां, उनके दूसरे और तीसरे मंत्रिमंडल में डाक्टर सरोजिनी महिषी, नंदिनी सत्पथी, सुशीला रोहतगी और सरोज खपराडे मंत्री जरूरी रहीं।

राजीव गांधी को भी मंत्री बनाने के लिए महिलाएं कम योग्य लगीं। यही वजह रही कि उनके मंत्रिमंडल में भी केवल मोहसिना किदवई को ही मौका मिला। क्या प्रियंका वाड्रा कह रही हैं कि उनके पिता से लेकर नेहरू सरकार तक में कम महिला मंत्री या प्रतिनिधि होने का मतलब महिलाओं का शक्तिशाली नहीं होना था। वहीं दूसरी ओर जिस उत्तर प्रदेश में प्रियंका महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने की बात कहकर उन्हें लुभाने की कोशिश कर रही हैं, उस राज्य के इतिहास में पहली बार रिकार्ड 40 विधायक भारतीय जनता पार्टी की प्रचंड बहुमत की सरकार में ही पहुंची हैं।

विधायक बनी 40 में से 35 महिलाएं भारतीय जनता पार्टी के ही टिकट पर जीती हैं। इसके लिए भारतीय जनता पार्टी ने लड़कियों को लड़कों से लड़ाने का न तो नारा दिया और न ही परिवार विभाजित करने का अभियान चलाया। इसलिए कांग्रेस के इस नारे और वादे पर यह प्रश्न भारी पड़ जाता है कि परिवार में मतदान करने के आदी भारतीय मतदाताओं में लड़कियों को लड़कों से लड़ाकर वह क्या हासिल कर पाएगी।

[वरिष्ठ पत्रकार]


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