न कहीं होर्डिंग, न ध्वनि विस्तारकों का कानफोड़ू शोर; आइटी के सहारे पार होगी विधानसभा 2022 की चुनावी नैया
UP Vidhan Sabha Election 2022 इंटरनेट मीडिया के विशेषज्ञों का कहना है कि आसन्न विधानसभा चुनाव में फायदा उसी को मिलेगा जिसने ज्यादा मजबूत तैयारी कर रखी होगी। सभी दलों का दावा है कि चुनाव प्रचार के मोर्चे पर उनकी तैयारी मुकम्मल है।
लखनऊ, राजू मिश्र। UP Vidhan Sabha Election 2022: न कहीं होर्डिग, न ध्वनि विस्तारकों का कानफोडू शोर। सब कुछ आम दिनों जैसा। उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव सिर पर है, लेकिन राज्य के किसी भी छोर में जाने पर नहीं लगता कि चुनाव होने वाले हैं। दूसरी ओर हर जुबान पर चर्चा केवल चुनाव की चढ़ी है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों की आइटी टीमें आभासी चुनाव प्रचार के लिए कमर कस चुकी हैं। कोरोना के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए चुनाव आयोग ने सभा और रैली के नियमों में सख्ती कर दी है।
राजनीतिक दलों को कोरोना संकट के चलते पहले से ही अनुमान था कि चुनाव प्रचार पर पाबंदी लग सकती है, लिहाजा सभी ने पहले से ही अपने सूचना एवं प्रौद्योगिकी प्रकोष्ठों को मजबूत बनाने की दिशा में कवायद तेज कर दी थी। भारतीय जनता पार्टी इस मुहिम में सबसे अग्रणी है, वैसे भी आइटी का उसका दस्ता सबसे सशक्त माना जाता है। इंटरनेट मीडिया के जानकारों का मानना है कि जिन दलों ने तैयारी जितनी बेहतर की होगी, इस बार उतना ही बड़ा लाभ उन्हें मिलेगा। भाजपा ने प्रचार की इस मुहिम को धारदार बनाने के लिए डिजिटल वारियर्स लगा दिए हैं।
भाजपा का डाटाबेस बहुत ही सशक्त है। अधिक से अधिक लोगों तक पकड़ साबित करने के लिए उसके पास बूथ स्तर तक स्मार्ट फोन रखने वाले कार्यकर्ता भी खूब हैं, ऐसे में पार्टी की गतिविधियों और जनहितकारी कार्यक्रमों को जन-जन तक पहुंचाने का काम खास दिक्कत तलब नहीं। पार्टी के इंटरनेट मीडिया हेड अंकित चंदेल कहते हैं कि हमारे पास आइटी विशेषज्ञों की दक्ष टीम है। बड़ी संख्या में आइटी प्रशिक्षित कार्यकर्ता भी हैं। पहले के दौर में चुनाव आते ही बच्चों में पोस्टर, बिल्ले और झंडा-बैनर के लिए खास उतावलापन देखने को मिलता था। बच्चों के लिए खास तौर पर बिल्ले बनाए जाते थे। लेकिन समय के साथ ही यह सारी चुनाव सामग्री किसी सपने जैसी होती गई। अब तो सारा दारोमदार इंटरनेट पर ही सिमट सा गया है। बची खुची कसर कोरोना संक्रमण ने पूरी कर दी है। चुनाव आयोग के कड़े आदेशों के चलते सभा, रैली और बैठकों पर भी बंदिश लग गई है।
दरअसल चुनाव की घोषणा से कुछ महीने पहले राजनीतिक दलों ने इंटरनेट मीडिया पर सक्रियता बनाए रखने के लिए कार्यकर्ताओं के लिए प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए थे। जिनमें नामचीन आइटी प्रबंधकों ने इंटरनेट मीडिया पर सक्रियता बनाए रखने के लिए कार्यकर्ताओं को गुर बताए थे। ऐसा भी नहीं कि सिर्फ भाजपा ही आभासी दुनिया के मोर्चे पर सक्रिय है, समाजवादी पार्टी भी डिजिटल माध्यमों के सहारे जनता के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के काम में तेजी से जुटी है।
फिलहाल राजनीतिक दल अपने नेताओं की प्रेस ब्रीफिंग एवं कार्यकताओं से संवाद का लिंक फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप ग्रुपों पर शेयर करके उनके व्यापक प्रचार-प्रसार में जुटे हैं। सरकार की उपलब्धियों को गीतों में पिरोकर मनोज तिवारी जैसे ख्यात गायक स्वर दे रहे हैं, वहीं समाजवादी पार्टी ने भी अपनी नीतियों और विचारों के प्रसार के लिए गीत तैयार करवाए हैं। समाजवादी पार्टी के एक नेता कहते हैं कि हमारा मतदाता ज्यादातर युवा है और स्मार्ट फोन चलाने में अभ्यस्त है, इसलिए चुनाव प्रचार में कहीं कोई दिक्कत नहीं आ रही। पार्टी दफ्तरों में बाकायदा इस बात की मानीटरिंग की जा रही है कि उसके भेजे लिंक को कितने लोगों ने और किस माध्यम पर देखा।
यूं तो कांग्रेस भी डिजिटल चुनाव मैदान में सक्रिय है, लेकिन उसकी मौजूदगी उतनी व्यापक नहीं जितनी कि अन्य दलों की है। कांग्रेस में टिकट की दावेदारी कर रहे लोगों को पहले ही फरमान सुना दिया था कि वह 50-50 वाट्सएप ग्रुप बनाकर कांग्रेस की नीतियों और कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार करें, लेकिन महिलाओं को टिकट में 40 फीसद आरक्षण दिए जाने संबंधी प्रियंका वाड्रा गांधी के निर्देश के बाद ऐसे टिकटार्थी निष्क्रिय भी हो गए। बची-खुची कसर कुछ सीटों पर टिकट की घोषणा ने पूरी कर दी। इंटरनेट मीडिया से काफी हद तक दूरी बनाकर चलने वाली बहुजन समाज पार्टी ने भी इंटरनेट मीडिया पर अपनी उपस्थिति दिखानी शुरू कर दी है। ट्विटर पर पार्टी के वरिष्ठ नेता जहां एक ओर अपनी सक्रियता दिखाते रहते हैं, वहीं युवा चेहरे पार्टी के कार्यक्रमों को सामने लाने में जुट गए हैं।