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UP Politics: भाजपा का आपरेशन क्लीन स्वीप, रामपुर व आजमगढ़ जीतने के बाद सभी 80 लोकसभा सीटों पर नजर

UP Politics लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा ने रणनीति बनाकर काम तेज कर दिया है। भगवा खेमे से जब 75 और 80 सीटें जीतने की हुंकार उठी तो यकीनन विपक्ष ने इसे अति उत्साह ही माना होगा लेकिन भाजपा के रणनीतिकार इसे जमीनी आधार देने में जुट गए हैं।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 01 Jul 2022 06:20 AM (IST)Updated: Mon, 04 Jul 2022 12:34 AM (IST)
UP Politics: भाजपा का आपरेशन क्लीन स्वीप, रामपुर व आजमगढ़ जीतने के बाद सभी 80 लोकसभा सीटों पर नजर
UP Politics: बीते चार चुनावों में भाजपा के अभेद्य किले साबित हुए हैं करीब एक लाख बूथ।

UP Politics: लखनऊ [जितेंद्र शर्मा]। भारतीय जनता पार्टी (BJP) की प्रदेश कार्यसमिति की बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उत्तर प्रदेश की 80 में से 75 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया। संगठन ने उसी के मुताबिक रणनीति तय कर काम शुरू किया।

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इसी बीच उपचुनाव में सपाई गढ़ मानी जाने वाली रामपुर और आजमगढ़ की सीट भी जीतने में सफलता मिली तो भाजपा की नजर पूरी की पूरी 80 सीटों पर जा टिकी। पार्टी के रणनीतिकारों ने अब 'आपरेशन क्लीन स्वीप' पर काम शुरू कर दिया है। जातियों और भावनाओं की बेहतरीन 'केमिस्ट्री' से अपने सियासी फार्मूले सफल करती रही भाजपा के इस बड़े लक्ष्य का गणित मात्र 35000 बूथों पर खास तौर से टिका है।

लोकसभा चुनाव 2024 के लिए भाजपा ने कई स्तर पर अपनी रणनीति बनाकर काम तेज कर दिया है। भगवा खेमे से जब 75 और 80 सीटें जीतने की हुंकार उठी तो यकीनन कुछ लोगों, खास तौर पर विपक्षी नेताओं ने इसे अति उत्साह ही माना होगा लेकिन भाजपा के रणनीतिकार उस उत्साह को जमीनी आधार देने में जुट गए हैं।

2014 में अमेठी और हाल ही के उपचुनाव में आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट जीत चुकी भाजपा को यह भरोसा हो चुका है कि अब कोई विपक्षी किला ऐसा नहीं, जिसे रणनीति के तहत ढहाया न जा सके। जरूरत सिर्फ सटीक रणनीति और परिश्रम की है। संगठन के वरिष्ठ पदाधिकारी बताते हैं 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा-बसपा के गठबंधन को बहुत बड़ी चुनौती माना जा रहा था, लेकिन 64 सीटों पर भगवा लहराया।

2022 के विधानसभा चुनाव में सपा के साथ कई छोटे दल मिल गए, लेकिन विजय रथ नहीं रोक सके। बीते चार चुनावों के परिणाम का आकलन करने पर सामने आया कि लगभग पौने दो लाख बूथों में से करीब एक लाख बूथ ऐसे हैं, जिन पर भाजपा को अच्छी जीत मिली, मतलब कि यह भगवा दल के अभेद्य किले हो गए।

बाकी 75,000 बूथों में लगभग 40 हजार ऐसे हैं, जहां ऐसी आबादी है, जो भाजपा को वोट देना ही नहीं चाहती। वह विपक्षी दलों के गढ़ हैं। इसी तरह 35,000 बूथ ऐसे हैं, जहां न भाजपा मजबूत है और न ही बहुत कमजोर। उन्हीं पर खास तौर पर इस अभियान में फोकस किया जा रहा है।

संगठन के एक पदाधिकारी ने बताया कि इन सभी बूथों पर सांसदों और विधायकों के नेतृत्व में 80 कार्यकर्ताओं की टीम लगाई गई है। इस महीने यह टीमें अपने क्षेत्र के इन बूथों की रिपोर्ट तैयार करेंगी। वह लगभग चालीस बिंदु अपनी रिपोर्ट में लिखेंगे, जैसे कि संबंधित बूथ पर विपक्ष के किस नेता का प्रभाव अधिक है? वहां जातीय समीकरण क्या है? क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे कौन से हैं? वहां की सबसे बड़ी समस्या कौन सी है? वहां सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों की संख्या कितनी है?

ऐसे ही एक-एक बिंदु पर अध्ययन कर उनका समाधान किया जाएगा और अगले दो वर्ष में प्रयास होगा कि इन्हें भी अभेद्य बना दिया जाए। जब भाजपा के पास ऐसे बूथों की संख्या एक लाख 35 हजार हो जाएगी तो मात्र 40 हजार बूथों के सहारे विपक्ष के सभी दल मिलकर भी भाजपा को 80 सीटें जीतने से नहीं रोक पाएंगे।


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