100 years of Lucknow University : गाई जाती रहेगी शतायु लखनऊ विश्वविद्यालय की गौरवगाथा
शताब्दी समारोह हजारों उपलब्धियों को अपने आप में समेटे लखनऊ विश्वविद्यालय आज सौ साल पूरे करने जा रहा है। इसके साथ ही यह देश के उन नौ विश्वविद्यालयों में शामिल हो गया जिनके 100 साल पूरे हो चुके हैं।
लखनऊ [ऋषि मिश्र]। 100 years of Lucknow University : देश में केवल नौ विश्वविद्यालय ऐसे हैं, जिनका इतिहास 100 साल पुराना है, उनमें से एक लखनऊ विश्वविद्यालय भी है। इस विश्वविद्यालय के लिए बुधवार का दिन खास होगा, जब इसके सौ साल पूरे होंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस अवसर के साक्षी बनेंगे। सन 1864 के आखिरी दशक में एक स्कूल शुरू किया गया जो बाद में कैनिंग कॉलेज में बदला। 1920 में कैनिंग कॉलेज जब लखनऊ विश्वविद्यालय में परिवर्तन किया गया। तब राजा महमूदाबाद की इस भूमि पर उच्च शिक्षा का ये बड़ा केंद्र शुरू हो चुका था। शुरुआत में छह विभाग होते थे, जिनमें भाषा के उच्च ज्ञान को प्राथिमकता दी गई थी। हिंदी, संस्कृत, फारसी मुख्य थे। धीरे-धीरे बढ़ते-बढ़ते आज लखनऊ विश्वविद्यालय में विभागों की संख्या 50 हो चुकी है।
मुख्यमंत्री आवास से संचालित होती थी छात्र राजनीति की रणनीति
मगर 1980 से 2005 का काल लखनऊ विश्वविद्यालय के लिए संक्रमण का समय रहा जब छात्र राजनीति में सियासी दलों का पूरा प्रभाव हो गया था। लखनऊ विश्वविद्यालय की राजनीति मुख्यमंत्री आवास से संचालित की जाती थी। जिसका परिणाम हुआ कि इन 25 सालों में विश्वविद्यालय का सुनहरा अतीत धूमिल लगने लगना। कई बार बदनामी का ठीकरा भी इसके माथे फूटा मगर धीरे-धीरे बदलाव हुए। अब एक बार फिर से कुछ कमियों के बावजूद सुधार हो रहे हैं। परिसर बदल रहा है।
मुख्यमंत्री जो लविवि से जुड़े रहे
राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खान, कनार्टक के रामकृष्ण हेगड़े, पंजाब के सुरजीत सिंह बरनाला और असम के हितेश्वर सैकिया, ये सब 1950 के दशक में लखनऊ विश्वविद्यालय में विधि की पढ़ाई इसलिए करने आए थे क्योंकि देश में ये अकेला ऐसा विश्वविद्यालय था, जहां से उस वक्त दो साल का विधि और एमए का पाठ्यक्रम एक साथ किया जा सकता था। यही नहीं पूर्व केंद्रीय मंत्री एनकेपी साल्वे भी इसी परिसर से एलएलबी करके निकले और बाद में बड़े नेता और क्रिकेट प्रशासक के रूप में अपनी पहचान बनाई। वर्तमान में उप मुख्यमंत्री डॉ. दिनेश शर्मा और जलशक्ति मंत्री डॉ. महेंद्र सिंह इस विश्वविद्यालय के अध्यापक रहे हैं। 1948 के आजादी के बाद हुए पहले दीक्षांत समारोह में यहां तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू भी आए थे। बाद में वे कई बार आए। अब इन्हीं यादों को संजोने की तैयारी है।
इन्होंने पहुंचाया शिखर पर
देश के राष्ट्रपति रहे डॉ. शंकर दयाल शर्मा से लेकर अनेक राज्यों के मुख्यमंत्री यहां के परिसर से निकले। आचार्य नरेंद्र देव, जेडब्ल्यू चक्रवर्ती, डॉ. बीरबल साहनी, डॉ. एनके सिद्धान्त, डॉ. डीपी मुखर्जी, डॉ. जीएस थापर डॉ. राधा कमल मुार्जी और डॉ. राधाकुमुद मुखर्जी, केएएस अय्यर, वीएस राम प्रो. एईएन सिंह, प्रो. केएस वल्दिया, प्रो. आरयू सिंह जैसे नामों ने लविवि को शिखर पर पहुंचाया।
जब कैनिंग कालेज बना विश्वविद्यालय
12 अगस्त 1920 वह दिन था जब यूनाइटेड प्रॉविंसेस की लेजिसलेटिव असेंबली में गोमती किनारे स्थित कैनिंग कॉलेज को लखनऊ विश्वविद्यालय के रूप में मान्यता देने के लिए प्रस्ताव भेजा गया था। प्रक्रिया आगे बढ़ी और तत्कालीन गवर्नर के हस्ताक्षर के बाद 25 नवंबर 1920 को कैनिंग कॉलेज लखनऊ विश्वविद्यालय में तब्दील हो गया। विश्वविद्यालय छह विभागों से शुरू हुआ था। पिछले 100 साल में इस परिसर ने अनेक मील पत्थर स्थापित किए।
आरपी सिंह और सुरेश रैना भी रहे इस कालेज के छात्र
भारतीय क्रिकेट टीम के सितारे रहे रुद्र प्रताप सिंह और सुरेश रैना भी लखनऊ विश्वविद्यालय से जुड़े रहे हैं। दोनों ने यहां से बीए की पढ़ाई की थी। सुरेश रैना ने तो हाल ही में विश्वविद्यालय के एक वीडियो को ट्विटर पर शेयर कर बधाई भी दी थी। 1952 में भारत और पाकिस्तान के बीच अंतरराष्ट्रीय टेस्ट क्रिकेट मैच यूनिवर्सिटी के मैदान पर ही खेला गया था।
रितू करिधल ने अंतरिक्ष तक पहुंचाया लविवि का नाम
लविवि की डी. लिट रितू करिधल करीब 20-21 सालों में इसरो में कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर चुकी हैं। इनमें मार्स ऑबिटर मिशन बहुत महत्वपूर्ण रहा है। प्रोजेक्ट डायरेक्टर एम. वनिता चंद्रयान 2 में प्रोजेक्ट डायरेक्टर के तौर पर काम कर रही हैं. वनिता के पास डिजाइन इंजीनियर का प्रशिक्षण है और एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी ऑफ़ इंडिया से 2006 में बेस्ट वूमेन साइंटिस्ट का अवॉर्ड मिल चुका है। सालों से सेटेलाइट पर काम कर रही हैं।
क्या कहते हैं लविवि कुलपति ?
लविवि कुलपति प्रो. आलोक कुमार राय के मुताबिक, 100 साल के इतिहास में इस विश्वविदयालय में अनेक मुकाम हासिल किए हैं। यहां के विद्यार्थी हो या अध्यापक विभूतियों की कोई कमी नहीं रही है। अब हम इसमें और मील के पत्थर जोड़ना चाहते है। अनेक शोध संस्थान बनाए जा रहे हैं। विद्यार्थियों के आध्यात्मिक विकास के लिए हैप्पी थिकिंग लैब खोली जाती है। हमारी मंजिल है अपने 100 वें वर्ष के आगे नए मुकाम हासिल करें।