वाल्मीकि जयंती : देवभाषा संस्कृत में दो दिवसीय ऑनलाइन कवि सम्मेलन कल से
रामायण के रचयिता और संस्कृत के प्रथम श्लोक को लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि की 31 अक्टूबर को होने वाली जयंती पर उप्र संस्कृत संस्थानम् लखनऊ की ओर से दो दिवसीय ऑनलाइन राष्ट्रीय संस्कृत कवि सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।
लखनऊ, जेएनएन। रामायण के रचयिता और संस्कृत के प्रथम श्लोक को लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि की 31 अक्टूबर को होने वाली जयंती पर उप्र संस्कृत संस्थानम् की ओर से दो दिवसीय ऑनलाइन राष्ट्रीय संस्कृत कवि सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। दो दिवसीय कवि सम्मेलन दो सत्रों में होगा और देश के 40 संस्कृत के कवि अपनी रचनाएं प्रस्तुत कर देव भाषा संस्कृत का मान बढ़ाएंगे।
संस्थानम् के अध्यक्ष डा. वाचस्पति मिश्रा ने बताया कि देव भाषा संस्कृत से आम लोगों को रूबरू कराने वाले महर्षि वाल्मीकि को समर्पित कवि सम्मेलन की शुरुआत शुक्रवार को सुबह बजे से पहला सत्र होगी जिसकी अध्यक्षता शिमला के पद्मश्री अभिराज राजेंद्र मिश्र करेंगे। दो बजे से शुरू होने वाले दूसरे सत्र की अध्यक्षता राजधानी के पद्मश्री ब्रजेश शुक्ला करेंगे। 31 अक्टूबर तक चलने वाले कवि सम्मेलन में 40 कवि संस्कृत में अपनी रचनाएं प्रस्तुत करेंगे। पहले दिन मुख्य रूप से रायबरेली के डॉ.प्रशस्यमित्र शास्त्री, प्रयागराज के प्रो.हरिदत्त शर्मा,हापुड़ के प्रो.वागीश दिनकर, गुजरात के डॉ.भाव प्रकाश, राजधानी के प्रो.ओम प्रकाश पांडेय,प्रो.राम सुमेर यादव, डा.सत्यकेतु व डॉ.नवलता के अलावा वाराणणी की डॉ. कमला पांडेय,हरिद्वार के डॉ.वेदव्रत, जयपुर के प्रो.रमाकांत पांडेय, देहरादून के डा.राम विनय सिंह, मेरठ की डॉ.तुषा शर्मा, छपरा के डा.शशिकांत तिवारी,प्रयागराज से डा.जर्नादन प्रसाद मणि व हरिद्वार के डॉ.अरविंद नारायण मिश्र समेत कई संस्कृत कवि अपनी रचानाएं प्रस्तुत करेंगे। शुक्रवार को ही स्कूलों में आयोजित संस्कृत प्रतियोगिता के विजेताओं के नाम घोषित किए जाएंगे।
ऐसे पड़ा महर्षि वाल्मीकि नाम
आचार्य शक्तिधर त्रिपाठी ने बताया कि 31 अक्टूबर को उनकी जयंती मनाई जाएगी। वाल्मीकि के नाम कहा जाता है कि एक बार महर्षि वाल्मीकि ध्यान में मग्न थे। तब उनके शरीर में दीमक चढ़ गई थी। साधना पूरी होने पर महर्षि वाल्मीकि ने दीमकों को हटाया था। दीमकों के घर को वाल्मीकि ही कहा जाता है। ऐसे में इन्हें भी वाल्मीकि पुकारा जाने लगा। रामायण महाकाव्य को लिखने वाले महर्षि वाल्मीकि के आश्रम मेें माता सीता रुकी थीं जब श्रीराम ने उनका त्याग किया था।