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लोह‍िया संस्‍थान में प्लाज्मा बदलकर मरीज को द‍िया नया जीवन Lucknow news

लोहिया संस्थान में प्लाज्मा एफरेसिस शुरू निकाली एंटीबॉडी। पीजीआइ के डॉक्टर की मदद से पांच घंटे में किया प्रोसीजर।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 05 Dec 2019 07:56 AM (IST)Updated: Thu, 05 Dec 2019 07:56 AM (IST)
लोह‍िया संस्‍थान में प्लाज्मा बदलकर मरीज को द‍िया नया जीवन Lucknow news
लोह‍िया संस्‍थान में प्लाज्मा बदलकर मरीज को द‍िया नया जीवन Lucknow news

लखनऊ, जेएनएन। 23 वर्षीय युवक के हाथ-पैर निष्क्रिय हो गए। परिवारजन अचानक लेकर उसे लोहिया संस्थान पहुंचे। डॉक्टरों ने पहले पैरालिसिस की आशंका जताई। वहीं, कुछ दिन में मरीज को सांस लेने में परेशानी होने लगी। ऐसे में मरीज को आइसीयू में शिफ्ट किया गया। यहां जांच में जीबी सिंड्रोम का अटैक मिला। ऐसे में पीजीआइ के डॉक्टर बुलाकर युवक में प्लाज्मा एफरेसिस किया गया। पांच घंटे तक चले प्रोसीजर से मरीज की सेहत में सुधार आना शुरू हुआ।

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लोहिया संस्थान में प्लाज्मा एफरेसिस से इलाज शुरू हो गया है। इसके लिए मंगलवार को पीजीआइ के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की मदद ली गई। संस्थान के ब्लड ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सुब्रत चंद्रा व पीजीआइ की डॉ. प्रीति एलिहंस ने आइसीयू में भर्ती जीबी सिंड्रोम से पीडि़त एक युवक में पांच घंटे प्लाज्मा एफरेसिस किया। इसमें मरीज को ब्लड एफरेसिस मशीन पर शिफ्ट किया गया। उसके शरीर से एंटीबॉडी समेत प्लाज्मा निकाल दिया गया। ऐसे में युवक की हालत में सुधार आ रहा है। संस्थान में इससे पहले एक मरीज में प्लाज्मा एफरेसिस का ट्रायल हुआ था। अब मंगलवार से सुविधा शुरू कर दी गई, गुरुवार को दोबारा प्रोसीजर होगा।

छह यूनिट चढ़ाया प्लाज्मा

डॉ. प्रीति एलिहंस के मुताबिक, मशीन पर शिफ्ट कर मरीज का पूरा प्लाज्मा निकाल दिया गया। इससे एंटीबॉडी व विषैले तत्व शरीर से बाहर हो गए। वहीं फ्रेश प्लाज्मा विद सलाइन चढ़ाया गया। मरीज में कुल छह यूनिट प्लाज्मा पहले दिन चढ़ाया गया।

बढ़ रहा प्रकोप

डॉ. सुब्रत चंद्रा के मुताबिक, जीबी सिंड्रोम का प्रकोप बढ़ रहा है। यह ऑटो इम्यून डीजीज है। इसमें व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडी बनने लगती है। यह एंटीबॉडी शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता के खिलाफ काम करने लगती है। पुरुषों में इसका खतरा अधिक होता है।

दो लाख के इंजेक्शन से छुटकारा

जीबी सिंड्रोम से पीडि़त मरीज को पहले इंट्रा वेनस इम्यूनोग्लोबलिन इंजेक्शन दिया जाता था। यह इंजेक्शन बाजार में लगभग दो लाख का आता है। वहीं मरीज में आठ से 10 दिन में इंजेक्शन की डोज देने पड़ती है। वहीं अब प्लाज्मा एफेरेसिस से इन मरीजों का सस्ता इलाज मुमकिन हो गया है। यह सुविधा केजीएमयू, पीजीआइ के साथ अब लोहिया संस्थान में भी शुरू हो गई। इसका शुल्क 8, 500 है।

ये हैं लक्षण

शरीर में दर्द, हाथों-पैरों में सुन्नपन, सिहरन, अंगुलियों में सूई-सी चुभन, दर्द होना है। इसके अलावा गर्दन, चेहरे, आंखों की मांसपेशियों में कमजोरी। आंख या चेहरे को घुमाने, बात करने, चबाने व निगलने में दिक्कत। अनियंत्रित ब्लड प्रेशर, दिल का तेजी से धड़कना, सांस लेने में दिक्कत व लकवा मारना आदि लक्षण हैं।


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