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उत्तर प्रदेश के महोबा जिले से सटे गोरखगिरि पर्वत से निकलेगी पर्यटन की धारा

उल्लेखनीय है कि विरासत वृक्ष के रूप में ऐसे पेड़ों को चुना गया है जो सौ वर्ष से अधिक पुराने हैं ऐतिहासिक महत्व रखते हैं या दुर्लभ प्रजाति के हैं। इनमें कई पेड़ तो पौराणिक घटनाओं ऐतिहासिक अवसरों अति विशिष्ट व्यक्तियों स्मारकों अथवा धार्मिक परंपराओं आदि से जुड़े हैं।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Mon, 15 Mar 2021 10:32 AM (IST)Updated: Mon, 15 Mar 2021 10:34 AM (IST)
उत्तर प्रदेश के महोबा जिले से सटे गोरखगिरि पर्वत से निकलेगी पर्यटन की धारा
गोरखगिरि से महोबा शहर का सुबह के समय दिखता मनोरम दृश्य। जागरण आर्काइव

लखनऊ, राजू मिश्र। महोबा से सटे गोरखगिरि पर्वत का न केवल धार्मिक, बल्कि पर्यटन के लिहाज से भी काफी महत्व है। यह वह स्थान है जहां गुरु गोरखनाथ ने अपने सातवें शिष्य सिद्धोदीपकनाथ के साथ तपस्या की थी। गुरु गोरखनाथ के शिष्य की यहां सिद्धबाबा के नाम से ख्याति है। भगवान राम और मां सीता भी वनवास काल में यहां रुके थे। प्रमाण के रूप में सीता रसोई यहां अब भी स्थित है। प्राकृतिक रूप से भी यह स्थान काफी सुरम्य और रमणीक है। सरोवर और झरने भी मन मोहने वाले हैं। खजुराहो की तरह यहां पर्वत के ऊपर स्थित आनंद आश्रम के आगे बढ़ना शुरू कीजिए तो विभिन्न प्रकार की आकृतियां पत्थरों पर मिलती हैं। पर्वत तक पहुंचने के लिए घुमावदार सड़कें हरियाली के बीच से गुजरती हैं। दो हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचकर यहां से पूरे महोबा का नजारा लिया जा सकता है।

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कहने का तात्पर्य यह कि इस स्थान पर धार्मिक और पर्यटन के लिहाज से पर्याप्त संभावनाएं हैं, लेकिन इनका अब तक दोहन नहीं किया गया। आधारभूत सुविधाएं मुहैया कराने और सुंदरीकरण के लिए कोई पहल नहीं की गई। वर्तमान सरकार में जिस प्रकार चित्रकूट धाम के सुंदरीकरण और पर्यटक सुविधाएं उपलब्ध कराकर काम किया गया, उस दृष्टि से गोरखगिरि का विकास नहीं हुआ। लेकिन पिछले सप्ताह बुंदेलखंड के दो दिवसीय दौरे पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आए तो उनके सामने गोरखगिरि के विकास का प्रस्ताव पेश किया गया। मुख्यमंत्री ने गुरु गोरखनाथ की इस तपोस्थली के विकास में जिस तरह रुचि दिखाई उससे स्पष्ट है कि शीघ्र ही यह स्थान जल्द ही बुंदेलखंड का एक आइकोनिक स्पॉट बनेगा जो पर्यटन के साथ स्थानीय रोजगार का सृजन भी कराएगा।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने महोबा में कई योजनाओं का शिलान्यास किया। समीक्षा बैठक के दौरान जब स्थानीय सांसद व जिलाधिकारी ने गोरखगिरि के सुंदरीकरण का मुद्दा रखा तो मुख्यमंत्री उत्साहित नजर आए। मुख्यमंत्री बोले, इसकी कार्ययोजना तुरंत भेजिए। वैसे भी, गोरखगिरि गोरखनाथ की तपोस्थली है, इसे भव्य होना ही चाहिए। उन्होंने जिले के पर्यटन और औद्योगिक विकास के लिए रखे प्रस्तावों पर भी सहमति जताई। जिन प्रस्तावों पर सहमति बनी है उसमें 12 करोड़ रुपये की लागत से गोरखगिरि में सिद्ध बाबा मंदिर व अन्य स्थलों का सुंदरीकरण कराया जाएगा। सीता रसोई को भी एक सुंदर मंदिर का स्वरूप दिया जाना है। एक अध्यात्म केंद्र बनेगा। जाहिर है कि यदि सुंदरीकरण का यह कार्य होने के बाद न केवल गुरु गोरखनाथ व रामभक्तों के लिए इस स्थल तक पहुंचना आसान होगा, बल्कि बड़ी संख्या में अन्य पर्यटक भी आकर्षति होंगे।

जड़ों से जोड़ते विरासत वृक्ष : थोड़ा अतीत की ओर लौटें। गांव की सीमा में दाखिल होते ही और फिर किसी भी छोर से बाहर निकलते कुछ पेड़ मील के पत्थर की तरह नजर आते थे। चाहे वह बूढ़ा बरगद का पेड़ हो या औषधियों का खजाना बरमबाबा का घर यानी पीपल का पेड़। फिर किसी छोर पर पाकड़ का पेड़ मिलता तो कहीं बड़हल का। घर के अहाते पर नीम के पेड़ की कहानी सुनने को मिलती तो पता चलता कि यह फलां बुआ या दद्दा ने लगवाया था। हर पेड़ की एक कहानी मिलती और सबसे ज्यादा किस्से तो घर के बुजुर्गो सरीखे उस बरगद के पेड़ के होते जिसके बारे में हर एक की जुबानी एक कहानी सुनने को मिलती। कई बार तो यह गांव के पिन कोड की तरह पता भी बताता था। गांव अब पहले जैसे नहीं रहे। पेड़ भी शहरीकरण की भेंट चढ़ते चले गए। लेकिन इन पेड़ों से नई पीढ़ी का रिश्ता बना रहे, यूपी सरकार अब इसके पुख्ता इंतजाम कर रही है।

सरकार ने प्रदेश में 943 विरासत वृक्षों की पहचान की है जिनके साथ कोई न कोई कहानी जुड़ी है। अब इनके इर्द-गिर्द पर्यटन की दृष्टि से विकास कार्य भी कराए जाएंगे और इनका संरक्षण भी होगा। इनमें सर्वाधिक विरासत वृक्ष शिवनगरी वाराणसी और प्रयागराज में चिह्न्ति किए गए हैं। वाराणसी के लंगड़ा आम की मदर ट्री, लखनऊ के काकोरी में स्थित दशहरी, प्रयागराज का अक्षयवट, बाराबंकी का पारिजात, उन्नाव के जानकी कुंड में लगा त्रेता युगीन अक्षय वट और नैमिषारण्य (सीतापुर) का वटवृक्ष भी इन विरासत वृक्षों की सूची में शामिल किए गए हैं। उत्तर प्रदेश के राज्य जैव विविधता बोर्ड की उच्च स्तरीय समिति ने प्रदेश के इन 943 विरासत वृक्षों पर अंतिम रूप से अपनी मुहर लगा दी है।[वरिष्ठ समाचार संपादक, उत्तर प्रदेश]


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