Move to Jagran APP

नींव में अशर्फियां मिलीं तो इस मंदिर को अशर्फीभवन नाम मिला Ayodhya news

रामलला के भव्य मंदिर की प्रतीक्षा के साथ आस्था के अन्य केंद्र भी फलक पर।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sun, 17 Nov 2019 07:27 AM (IST)Updated: Sun, 17 Nov 2019 07:27 AM (IST)
नींव में अशर्फियां मिलीं तो इस मंदिर को अशर्फीभवन नाम मिला Ayodhya news
नींव में अशर्फियां मिलीं तो इस मंदिर को अशर्फीभवन नाम मिला Ayodhya news

अयोध्या, (रघुवरशरण)। फैसला आने के बाद रामनगरी में यदि रामलला के भव्यतम मंदिर की प्रतीक्षा शुरू हो गयी है, तो उन मंदिरों की मौजूदगी मौजूं बन पड़ी है, जो रामजन्मभूमि के अलावा भी आस्था के केंद्र बनकर प्रवाहमान हैं। ऐसे मंदिरों में अशर्फीभवन अहम है। 80 वर्ष पूर्व वासंतिक नवरात्र की पावन बेला में स्थापित अशर्फी भवन प्रमुख उपासना केंद्र के साथ ही चमत्कारिक अतीत के लिए जाना जाता है। वे रामानुज संप्रदाय के समर्पित संत स्वामी मधुसूदनाचार्य थे, जिन्होंने पूरे श्रम और यत्न से एकत्रित राशि देकर रामनगरी में लक्ष्मी-नारायण मंदिर के लिए भूमि क्रय की। निर्माण शुरू होना बाकी था, तभी एक वास्तुविद ने बताया कि जहां निर्माण होना है, उस भूमि के नीचे हड्डियां और कंकाल हैं। 

loksabha election banner
मंदिर स्थापना से जुड़ा अपना स्वप्न खटाई में पड़ता देख व्यग्र मधुसूदनाचार्य गुरु गोपालाचार्य के दरबार में पहुंचे। गुरु ने शिष्य को आश्वस्त करते हुए कहा, तुम जैसा संत जहां चरण रखेगा, वहां हड्डी भी सोना बन जाएगी। गुरु के आश्वस्त करने पर मधुसूदनाचार्य ने मंदिर के लिए नींव की खुदाई शुरू कराई। इस दौरान मजदूरों को अशर्फी का घड़ा मिला। श्रमिक चुपके से उसे अपने घर ले गए पर इसके बाद वे चैन से नहीं रह सके और उन्हें खून की उल्टियां शुरू हुईं। हार कर वे अशर्फी का घड़ा लेकर वापस पहुंचे। मधुसूदनाचार्य तो इतने से ही आह्लादित थे कि जिस भूमि की खुदाई में हड्डियां और नर कंकाल मिलने की आशंका थी, उस भूमि से गुरु के आशीर्वाद के अनुरूप अशर्फियां मिलीं। उन्होंने मंदिर का निर्माण तो अपने कोष से जारी रखा और जो अशर्फियां मिलीं, उससे कई दिनों तक अनेक तीर्थों में भंडारा कराया। 
अशर्फियां तो भंडारे में प्रयुक्त हो गईं पर इस संयोग को आराध्य की कृपा मानकर मधुसूदनाचार्य ने लक्ष्मी-नारायण मंदिर को अशर्फीभवन नाम दिया। आज अशर्फीभवन महज भव्य भवन तक ही केंद्रित नहीं है बल्कि गोसेवा, संत सेवा, संस्कृत पाठशाला, धार्मिक-आध्यात्मिक गतिविधियों एवं संस्कार केंद्र के रूप में प्रवाहमान है।
दुनिया भर में बने आकर्षण का पर्याय
अशर्फीभवन के वर्तमान महंत जगदगुरु स्वामी श्रीधराचार्य इस विरासत को आचार्य और आराध्य की प्रत्यक्ष कृपा का परिचायक बताते हैं और कहते हैं, यह अतीत अशर्फीभवन के विशाल आध्यात्मिक परिकर का प्रेरक है। प्रतिवर्ष वासंतिक नवरात्र में आयोजित लक्ष्मी-नारायण के प्राकट््योत्सव के साथ इस विरासत के प्रति अनुराग पूरी भव्यता से परिलक्षित होता है। हालांकि अशर्फीभवन इन दिनों रामलला के प्रति अनुराग से आप्लावित है। स्वामी श्रीधराचार्य कहते हैं, आज तो रामलला के भव्य मंदिर की बात हो रही है और यह इतना भव्य हो कि दुनिया भर में आकर्षण का पर्याय बने।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.