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भारत में दी जा सकती है कोरोना वैक्सीन की तीसरी डोज, जान‍िए क्‍या है लखनऊ के व‍िशेषज्ञों की राय

Coronavirus Vaccination वैक्सीन के बाद एंटीबाडी बनने और उसकी स्थिरता अवधि का किया जा रहा अध्ययन। किसी भी वैक्सीन से बनी एंटीबाडी हमेशा के लिए नहीं होती। यह अध्ययन किया जाना जरूरी है कि इसकी जरूरत पड़ेगी या नहीं।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 25 Aug 2021 06:00 AM (IST)Updated: Wed, 25 Aug 2021 03:46 PM (IST)
भारत में दी जा सकती है कोरोना वैक्सीन की तीसरी डोज, जान‍िए क्‍या है लखनऊ के व‍िशेषज्ञों की राय
विशेषज्ञों का दावा सेल्युलर इम्युनिटी तैयार करेगी आपातकालीन एंटीबाडी।

लखनऊ, [धर्मेन्द्र मिश्रा]। कोरोना वायरस के नित नए-नए वैरिएंट सामने आ रहे हैं। इससे मौजूदा वैक्सीन को भी लगभग सभी देश मोडिफाई कर बूस्टर डोज तैयार करने में जुटे हैं। देश में भी वैक्सीन के असर का अध्ययन किया जा रहा है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि वैक्सीन की बूस्टर डोज यानि तीसरी डोज देने की जरूरत पड़ेगी या नहीं। इस स्टडी में अभी करीब छह से 10 माह तक का समय लग सकता है।

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मसलन वैक्सीन की दोनों डोज या सि‍ंगल डोज लेकर संक्रमित होने वालों और पाजिटिव नहीं होने वाले सभी लोगों का ब्यौरा देशभर में जुटाया जा रहा है। देश में कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि वैक्सीन की बूस्टर डोज देने की जरूरत पड़ सकती है। कुछ विशेषज्ञ इसे खारिज कर रहे हैं। अब इंडियन काउंसिल फार मेडिकल रिसर्च वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके लोगों में एंटीबाडी का अध्ययन करा रहा है।

लोहिया संस्थान में कोविड प्रभारी डा. पीके दास कहते हैं कि भविष्य में बूस्टर डोज की जरूरत से इन्कार नहीं किया जा सकता। किसी भी वैक्सीन से बनी एंटीबाडी हमेशा के लिए नहीं होती। यह अध्ययन किया जाना जरूरी है कि इसकी जरूरत पड़ेगी या नहीं। वैक्सीन की दोनों डोज ले चुके लोगों में हर हफ्ते एंटीबाडी का टेस्ट कराया जाता है। इससे यह पता चल जाता है कि एंटीबाडी का स्तर किस समयावधि तक स्थिर है या किस समयावधि के बाद गिर रहा है। उसके बाद ही यह तय हो पाता है कि बूस्टर डोज लगनी चाहिए या नहीं।

कि‍ंग जॉर्ज चिकित्सा विश्वविद्यालय में माइक्रोबायोलाजी की प्रोफेसर डा. अमिता जैन कहती हैं कि वैक्सीन लगवा चुके लोगों में एंटीबाडी बनने को लेकर डेटा कलेक्शन तो सभी जगह हो रहा है, मगर इस बारे में जब तक कोई स्टडी का परिणाम सामने नहीं आता, तब तक यह कहना मुश्किल होगा कि तीसरी डोज की जरूरत पड़ेगी या नहीं।

एसजीपीजीआइ में माइक्रोबायोलाजी की विभागाध्यक्ष डा. उज्जवला घोषाल कहती हैं कि मौजूदा वैक्सीन का असर लोगों में कितने समय तक रह रहा है। अभी इस बारे में कोई अध्ययन नहीं हुआ है। कोरोना की चेन लंबे समय तक के लिए लगातार ब्रेक नहीं हुई तो बूस्टर डोज की जरूरत बाद में पड़ भी सकती है।

वैक्सीनेशन अभियान के ब्रांड एंबेसडर डा. सूर्यकांत त्रिपाठी कहते हैं कि वैक्सीन से दो तरह की इम्युनिटी बनती है। एक एंटीबाडी और दूसरी सेलुलर एंटीबाडी। एंटीबाडी भले ही बाद में कम हो जाए, मगर सेलुलर एंटीबाडी को पता होता है कि भविष्य में यदि कभी कोरोना का संक्रमण हुआ तो उसे क्या करना है। इसलिए बूस्टर डोज की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए।


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