धनतेरस पर लखनऊ में खूब हुई खरीदारी, दो हजार करोड़ के कारोबार ने बाजार में भरी नई जान
पिछली बार 1875 करोड़ का जो कारोबार शहर में हुआ था वह 2000 करोड़ पर पहुंच गया। इसके साथ ही एक बार पुन यह जिजीविषा सत्यापित हुई कि अपने पर्व त्योहारों को धमनियों में बसाकर जीने वाला समाज हर चुनौती पर बीस साबित होगा।
लखनऊ, [अम्बिका वाजपेयी]। दो हजार करोड़ रुपये... यह वह धनराशि है जो धनतेरस में बाजार पर बरसी। पंचपर्व के लिए बाहें खोले खड़े बाजार को पहले पड़ाव पर ही ग्राहकों का जो आलिंगन मिला,उसकी संभावना पहले ही जताई गई थी। दो वर्ष तक पर्व त्योहारों पर छाया रहा कोरोना का कुहासा हमारे उल्लास रूपी सूरज के आगे विलीन हो गया। पिछली बार 1875 करोड़ का जो कारोबार शहर में हुआ था, वह 2000 करोड़ पर पहुंच गया। इसके साथ ही एक बार पुन: यह जिजीविषा सत्यापित हुई कि अपने पर्व त्योहारों को धमनियों में बसाकर जीने वाला समाज हर चुनौती पर बीस साबित होगा।
यह आंकड़ा बीस से 21 भी हो सकता था यदि वाहन निर्माता कंपनियां बाजार की मांग पूरी कर पातीं। चार पहिया वाहन बनाने वाली कंपनियों के उत्पादन पर कोरोना का ऐसा ब्रेक लगा कि वह मांग पूरी नहीं कर सकीं । पहली बार ऐसा हुआ कि मांग ज्यादा थी और आपूर्ति कम। चार पहिया वाहनों में चार से छह महीने की वेटिंग लिस्ट है। प्रसन्नता आंकने का यदि कोई मापदंड होता तो आज हीरे का हार खरीदने वाले की हंसी स्टील का चम्मच खरीदने वाले के समकक्ष प्रतीत होती। यह स्थापित सत्य है कि हर चुनौती से पार पाने की जिजीविषा और पर्व त्योहारों की थाती को सर्वोपरि मानने वाले जनमानस के मानस पटल पर कोई दुख स्थायी नहीं होता।
सराफा, कपड़ा, बर्तन, वाहन और इलेक्ट्रानिक बाजार में उमड़े जनसमूह ने एक ऐसा आंकड़ा सामने रख दिया जो अगले साल उसे ही ध्वस्त करना है । ज्वैलरी पहनकर शीशे में निहारने से लेकर स्टील के भगौने की पेंदी दबाकर देखने वाली महिलाओं का उत्साह सब पर भारी था। कारण जो भी पर इस बार अप्रत्याशित रूप से बाजार मेे महिलाओं की संख्या ज्यादा दिखी। वाहनों की बिक्री आपूर्ति कम होने के बावजूद 400 करोड़ पर पहुंची। व्यापारियों के मुताबिक इस बार सबसे ज्यादा बिक्री फर्नीचर की हुई जो 695 करोड़ पर जाकर रुकी। हरित पटाखों के नियम और अनुमति के असमंजस के बावजूद पटाखा बाजार ने 50 करोड़ गल्ले में जमा कर लिए लेकिन अभी इनका दिन तो आना बाकी है।
इतना तो तय है कि कर्णभेदी पटाखे, आकाशभेदी राकेट और नयनाभिराम आतिशबाजी के कारोबार का पलीता सुलग चुका है। अब इसके विस्फोट में कितने रिकार्ड उड़ेंगे, इसकी गूंज चार नवंबर की रात में सुनाई देगी। रात बारह बजे तक लक्ष्मी-गणेश, दीये, चूरा खिलौना की दुकानों पर लगी रही भीड देखकर लग रहा था जैसे दाे साल की कसर पूरी की जा रही हो। यही उत्लास, उत्साह, उमंग और उत्सवधर्मिता सदियों से हमारी प्राणवायु है और रहेगी। कितनी भी बाधाएं और चुनौतियां आएं, इसी प्राणवायु के वेग के आगे तिनका ही साबित होंगी। सनातन और पुरातन परंपरा का प्रतिवर्ष नूतन उमंग के साथ वरण करने वाले हमेशा बीस ही रहेंगे। पंचपर्व की शुभकामनाएं....