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Lockdown Coronavirus: ​​​​​इस लॉकडाउन में न सोए कोई पशु-पक्षी भूखा, भारतीय संस्कृति बनी सहारा

Lockdown Coronavirus बेसहारा जानवरों के लिए घरों में बन रहीं पांच रोटी। ताकि जानवरों को भी भूखा न रहना पड़े।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 10 Apr 2020 05:25 PM (IST)Updated: Sat, 11 Apr 2020 07:43 AM (IST)
Lockdown Coronavirus: ​​​​​इस लॉकडाउन में न सोए कोई पशु-पक्षी भूखा, भारतीय संस्कृति बनी सहारा
Lockdown Coronavirus: ​​​​​इस लॉकडाउन में न सोए कोई पशु-पक्षी भूखा, भारतीय संस्कृति बनी सहारा

लखनऊ, जेएनएन। Lockdown Coronavirus: बेसहारा पशुओं को भूखा न रहना पड़ा इसको लेकर शहर के अनेक घरों में पांच रोटी अधिक बनाने का अभियान शुरू किया गया है। कॉलोनियों से लेकर बस्तियों तक में इस तरह से लॉकडाउन पीरियड में पशुओं को भोजन कराने के लिए व्यवस्था की जा रही है। संघ के संगठन सेवा भारती की ओर से भी लोगों से ये अपील की गई है  कि वे सड़क पर भूखा घूमने वाले पशुओं के लिए कुछ भोजन अतिरिक्त बना लें ताकि जानवरों को भी भूखा न रहना पड़े। इसी तरह से चिड़ियों के लिए छतों और बालकनी में दाना पानी रखने की अपील की जा रही है। 

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अलीगंज के सेक्टर एम में रहने वाली गायत्री मिश्रा रोजाना गाय और कुत्तों के लिए अतिरिक्त रोटियां बनाती हैं। वैसे ये उनकी पुरानी परंपरा रही है  कि वे पहली रोटी गाय की और आखिरी रोटी कुत्ते के लिए बनाती थीं, मगर लॉकडाउन में पशुओं पर जिस तरह का संकट आया है, उसमें अब दो की जगह रोटियों की संख्या पांच कर दी गई है। आरएसएस के सह प्रांत कार्यवाहक प्रशांत भाटिया बताते हैं कि जरूरतमंद लोगों के साथ ही हमारे समाज की जिम्मेदारी है  कि वे बेसहारा पशुओं के भोजन का भी प्रबंध करें। इसलिए हमने अपने प्रत्येक स्वयं सेवक से आग्रह किया है कि  वे ऐसे पशुओं के लिए भोजन का इंतजाम करे और अपनी गली या मोहल्ले में ही उनको भोजन करवा दे।

भारतीय संस्कृति में पशु पक्षियों के लिए भोजन की परंपरा

भारतीय संस्कृति में पशु पक्षियों के लिए भोजन बनाने की परंपरा रही है। निराला नगर में रहने वाले पंडित तरूणकांत शर्मा ने बताया कि सर्वे भवन्तु सुखिनः का संदेश देने वाली हमारी संस्कृति के लिए ये परंपरा रही है। परिवारों में पहली रोटी गाय और अंतिम रोटी कुत्ते के लिए बनाई जाती रही है। बंदरों को बजरगंज बली का स्वरूप माना जाता था। चिड़ियों के लिए दाना पानी भी र खा जाता है। इस वक्त अपनी परंपरा को अपनाने का समय है। ताकि समाज का संतुलन बना रहे। हमारे पशु भी हमारे लिए बहुत आवश्यक हैं।


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