भगवान राम और कृष्ण के साथ गूंज रहा परशुराम का नारा, जानें-लखनऊ की किन सीटों पर है ब्राह्मण वोटरों का असर
उत्तर प्रदेश में उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण किसी भी राजनीतिक दल की दशा और दिशा बना और बिगाड़ सकते हैं इसलिए बिना ब्राह्मणों को लुभाये किसी भी राजनीतिक दल का काम नहीं चलता। लिहाजा उनकी मजबूरी बन गई है श्रीराम और कृष्ण के साथ भगवान परशुराम का नाम लेने की।
लखनऊ, [दुर्गा शर्मा]। उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण किसी भी राजनीतिक दल की दशा और दिशा बना और बिगाड़ सकते हैं, इसलिए बिना ब्राह्मणों को लुभाये, किसी भी राजनीतिक दल का काम नहीं चलता। लिहाजा उनकी मजबूरी बन गई है, श्रीराम और कृष्ण के साथ भगवान परशुराम का नाम लेने की। लखनऊ में हाल ही में दो जगह भगवान परशुराम की आदमकद प्रतिमा स्थापित की गयी। इसमें गोसाईगंज में सपा की तरफ से पूर्व विधायक संतोष पांडेय ने भगवान परशुराम का मंदिर बनवाया और उससे भी भव्य फरसा लगवाया। इसके अलावा सांसद रीता बहुगुणा जोशी के पुत्र मयंक जोशी ने कृष्णा नगर के सैहसोबीर मंदिर में भगवान परशुराम की आदमकद प्रतिमा स्थापित की। मंच से ब्राह्मणों को अपनी तरफ करने के लिए तमाम बातें और वादें किए गए। वहीं, ब्राह्मण समाज की हुंकार भरने वाले प्रतिनिधियों ने बातचीत में स्पष्ट किया है कि
याचना नहीं, अब रण होगा
संघर्ष बड़ा भीषण होगा...।
ब्रह्मर्षि समाज की राष्ट्रीय अध्यक्ष और ब्रह्मसागर महासंघ की राष्ट्रीय महामंत्री श्वेता शुक्ल के अनुसार 19 प्रतिशत ब्राह्मण वोट बैंक आखिर कौन नहीं लेना चाहेगा। वो जमाना बहुत दूर गया, जब ब्राह्मण मीठी-मीठी बातों से खुश होकर मतदान करने आते थे, अब ब्राह्मण समाज जाग चुका है, वो अब अपना अधिकार मांग रहा। पुजारियों, पुरोहितों के घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया है। कोई कथा में 11 रुपये देता है तो कोई 51 रुपये, भला इससे किसके घर का खर्च चल सकता है।
गरीबी के कारण घर के बुजुर्गों का इलाज नहीं हो पाता, लड़कियों की शादी होना मुश्किल हो जाता है। ओम ब्राह्मण महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष धनंजय द्विवेदी कहते हैं, भगवान परशुराम नहीं होते तो भगवान राम और कृष्ण का दर्शन मनुष्य के लिए दुर्लभ होता। जिसने ब्राह्मण का सम्मान किया, वह महान बन गया। इतिहास बताता है कि ब्राह्मण के बगैर देश और समाज सुरक्षित नहीं है। हमारी मांग है कि हमारे संतों का सम्मान हो। ब्राह्मणों पर अभद्र भाषा के प्रयोग पर रोक लगे।
कुछ मांगें
- भगवान परशुराम जी के प्राकट्य दिवस पर सार्वजनिक अवकाश घोषित हो।
- ब्राह्मणों को गालियां देने, अपमानित करने पर, हत्या करने पर कठोर से कठोर दंड का प्रावधान (ब्राह्मण एक्ट) और पीड़ित ब्राह्मण को 50 हजार रुपये भत्ता।
- पुजारी, पुरोहितों को कम से कम 5000 रुपये प्रति महीना भत्ता।
- ब्राह्मण कल्याण बोर्ड की स्थापना।
हिंदू धर्म में भगवान परशुराम को भगवान विष्णु का छठा अवतार माना जाता है और ऐसी मान्यता है कि उनका जन्म उत्तर प्रदेश की पावन धरती पर हुआ था। दुर्भाग्य है कि पूरे उत्तर प्रदेश में भगवान परशुराम का मंदिर देखने को नहीं मिलता था, लेकिन आज चुनावी माहौल में एकाएक ब्राह्मणों की संख्या को देखते हुए भगवान परशुराम की मूर्तियों की स्थापना की जा रही हैं। मूर्ति स्थापना के पीछे भगवान परशुराम के प्रति आस्था कम और ब्राह्मण समाज को खुश करने की राजनीतिक महत्वाकांक्षा ज्यादा प्रदर्शित हो रही है। यक्ष प्रश्न है कि क्या वास्तव में ब्राह्मण समाज को खुश करने के लिए मूर्तियों की स्थापना ही काफी है। सच्चाई यह है कि आज ब्राह्मण स्वयं को पीड़ित महसूस कर रहा है। यह बात भी सत्य है कि आम ब्राह्मण की कहीं कोई सुनवाई नहीं है। यही सामाजिक अवधारणा बन चुकी है यदि कोई भी दल इस अवधारणा को दूर करने में सक्षम होता है तो यकीन मानिए ब्राह्मण समाज उसके साथ सदैव खड़ा रहेगा। - डा. अनीता मिश्रा, समाजशास्त्री
इन सीटों पर मुख्य भूमिका निभाएंगे ब्राह्मणः लखनऊ की सरोजनीनगर, कैंट और लखनऊ उत्तर पर ब्राह्मण मतदाताओं की भूमिका अहम होगी। इसके अलावा लखनऊ पश्चिम, लखनऊ पूर्वी सीट पर भी ब्राह्मण मतदाता निर्णायक होंगे।