Ayodhya Ram Mandir: रामजन्मभूमि परिसर में सहेजी जाएगी राम मंदिर के संघर्ष की विरासत, जानिए क्या है खास
Ayodhya Ram Mandir विविधता का परिचायक रहा राम मंदिर का संघर्ष। इस संघर्ष में राजा-रानी राजगुरु के साथ संत और आम भक्त रहे हैं शामिल।
अयोध्या, (रघुवरशरण)। Ayodhya Ram Mandir: राममंदिर के 491 वर्ष पुराने संघर्ष की जिस विरासत को रामजन्मभूमि परिसर में स्मारक की तरह सहेजे जाने की योजना है, वह संघर्ष विविधता का परिचायक रहा है। इस संघर्ष में राजाओं-रानियों, विभिन्न परंपरा के संतों और आम भक्तों के अलावा सिखों और मुस्लिमों तक का योगदान रहा है। 21 मार्च 1528 को मंदिर तोड़े जाने के बाद के दो वर्षों में चार युद्ध लड़े गए। इन युद्धों का नेतृत्व भीटी रियासत के राजा महताब सिंंह और हंसवर के राजा रणविजय सिंंह के अलावा हंसवर रियासत की रानी जयराज कुंवरि और राजगुरु पं.देवीदीन पांडेय ने किया।
अगले दशक में इस संघर्ष को रानी जयराज कुंवरि ने स्त्री सेना के साथ आगे बढ़ाया, तो स्वामी महेशानंद के नेतृत्व में साधू सेना भी इस संघर्ष में शामिल हुई। जयराज कुंवरि एवं संन्यासी महेशानंद रामजन्मभूमि की मुक्ति के संघर्ष में शहीद भी हुए। अकबर के समय इस लड़ाई का नेतृत्व करने वाले रामानुजीय परंपरा के स्वामी बलरामाचार्य के बारे में जानकारी मिलती है। औरंगजेब के काल में 1658 से 1707 के बीच रामजन्मभूमि की मुक्ति का संघर्ष और तीव्र हो उठा। इस अवधि में 30 युद्ध होने और मुक्ति के संघर्ष में दशम गुरु गोविंंद सिंंह के शामिल होने की जानकारी मिलती है।
अमीर अली एवं रामशरणदास को एक साथ मिली फांसी
1857 तक आते-आते देश अंग्रेजों के विरुद्ध उबल रहा था। अंग्रेजों के विरुद्ध कंधे से कंधा मिला रहे हिंंदुओं-मुस्लिमों की एकता मंदिर-मस्जिद विवाद का भी खात्मा करने को तैयार हो गई थी। मुस्लिम समाज के लोग मस्जिद ङ्क्षहदुओं को सौंपने को तैयार हो गए थे। अंग्रेजी हुकूमत ने फूट डालो और राज करो की नीति पर चलते हुए समझौते के दोनों पक्षकारों अमीर अली एवं बाबा रामशरणदास को रामजन्मभूमि की कुछ ही दूरी पर स्थित कुबेर टीला के एक पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी थी।
सिखों का योगदान अविस्मरणीय
रामजन्मभूमि के संघर्ष में सिखों का योगदान अविस्मरणीय है। औरंगजेब के काल में रामजन्मभूमि मुक्ति के संघर्ष में दशम गुरु के नेतृत्व का उल्लेख मिलता है। इसी दौर में प्रथम, नवम एवं दशम गुरु रामजन्मभूमि की मुक्ति के संघर्ष के वाहक रहे।
मील के पत्थर जैसे हैं नायर एवं गुरुदत्त
राममंदिर के अभियान में राजकीय अधिकारियों की भी भूमिका अहम है। 22-23 दिसंबर 1949 की रात विवादित ढांचा में रामलला के प्राकट्य के दौरान जिलाधिकारी रहे केके नायर एवं सिटी मजिस्ट्रेट रहे गुरुदत्त ङ्क्षसह की भूमिका मील के पत्थर की तरह मानी जाती है। ढांचा ढहाए जाने के समय एसएसपी डीबी राय भी सरकारी सेवा छोड़कर मंदिर के मुक्ति अभियान में शामिल रहे। विहिप के प्रांतीय प्रवक्ता शरद शर्मा के अनुसार राममंदिर का संघर्ष संपूर्ण न्यायप्रिय समाज का संघर्ष था।