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यूपी चुनाव से पहले गरमाया पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा, शिक्षक संगठनों ने बढ़ाई राजनीतिक दलों की टेंशन

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भले ही राजनीतिक दल विकास और रोजगार के दावों के साथ घोषणा पत्र जारी करें लेकिन साढ़े ग्यारह लाख शिक्षक व कर्मचारियों से जुड़ा पुरानी पेंशन का मुद्दा भी इस बार चुनाव में वोट देने का आधार बनेगा।

By Vikas MishraEdited By: Published: Tue, 18 Jan 2022 07:54 AM (IST)Updated: Tue, 18 Jan 2022 03:30 PM (IST)
यूपी चुनाव से पहले गरमाया पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा, शिक्षक संगठनों ने बढ़ाई राजनीतिक दलों की टेंशन
शिक्षक संगठनों राजनीतिक दलों से अपने घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन बहाली को शामिल करने के लिए कहा है।

लखनऊ, जागरण संवाददाता। उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में भले ही राजनीतिक दल विकास और रोजगार के दावों के साथ घोषणा पत्र जारी करें, लेकिन साढ़े ग्यारह लाख शिक्षक व कर्मचारियों से जुड़ा पुरानी पेंशन का मुद्दा भी इस बार चुनाव में वोट देने का आधार बनेगा। शिक्षक संगठनों ने कहा है कि जो भी राजनीतिक दल अपने घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन बहाली, महाविद्यालयों के शिक्षकों की अधिवर्षता आयु 65 वर्ष करने सहित प्रमुख मांगों को शामिल करेगा, उसी को समर्थन करेंगे।

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दरअसल, उत्तर प्रदेश में एक अप्रैल 2005 के बाद पुरानी पेंशन बंद कर दी थी। तभी से उसके बाद नियुक्त शिक्षक व कर्मचारी इसकी बहाली की मांग कर रहे हैं। अब विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दल अपना-अपना घोषणा पत्र जारी करने वाले हैं। इसलिए शिक्षकों ने अपनी मांगों को भी उसमें शामिल करने के लिए कहा है। 

पुरानी पेंशन की मांग लगातार जारी है। इसके अलावा महाविद्यालयों के शिक्षकों को राज्य कर्मचारियों की भांति मेडिकल सुविधा भी नहीं दी जा रही। कई राज्यों में उनकी सेवानिवृत्त की आयु 65 वर्ष कर दी गई, लेकिन उत्तर प्रदेश में कोई आदेश नहीं। इसलिए जो शिक्षकों की मांगें अपने घोषणा पत्र में शामिल करेगा, उसके पक्ष में वोट देने की अपील की जाएगी। -डा. मनोज पांडेय, अध्यक्ष, लखनऊ विश्वविद्यालय सहयुक्त महाविद्यालय शिक्षक संघ  

पुरानी पेंशन बहाली, प्रोफेसर पद के लिए जारी विसंगतिपूर्ण शासनादेश को वापस करना, अधिवर्षता आयु 65 वर्ष करना सबसे प्रमुख मांग है। इसके लिए लगातार आंदोलन भी किए गए। जो भी शिक्षक हित में उनकी मांगों को घोषणा पत्र में शामिल करेगा, हम उसके साथ आएंगे। -डा. अंशु केडिया, महामंत्री, लखनऊ विश्वविद्यालय सहयुक्त महाविद्यालय शिक्षक संघ 

लखनऊ विश्वविद्यालय सौ साल से भी ज्यादा पुराना है। इसलिए इसे केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा देते हुए सभी सुविधाएं दी जानी चाहिए। जो भी राजनीतिक दल इसे मानेगा, हम उसके समर्थन में वोट की अपील करेंगे। -डा. विनीत वर्मा, अध्यक्ष, लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (लूटा)।

शिक्षक पढ़ा लिखा बुद्विजीवी है। उसे पता है कि किसे वोट देना है। शिक्षकों की कई ऐसी मांगे हैं, जिनके लिए लूटा संघर्ष कर रहा। इसलिए सरकार को सोचना चाहिए। विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दल सभी वर्गों के साथ शिक्षकों की बहु प्रतीक्षित लंबित मांगों को भी ध्यान में रखकर अपना घोषणा पत्र जारी करें। -डा. राजेंद्र कुमार वर्मा, महामंत्री, लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (लूटा)। 

ये हैं प्रमुख मांगें

  • पुरानी पेंशन की बहाली
  • लखनऊ विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिया जाए
  • सेवानिवृत्ति की आयु 65 वर्ष करना
  • शिक्षकों को ग्रेजुएटी का लाभ दिया जाए
  • राज्य कर्मचारियों की भांति शिक्षकों को भी कैशलेस मेडिकल की सुविधा दी जाए
  • केंद्रीय विश्वविद्यालयों की तर्ज पर राज्य विश्वविद्यालयों के शिक्षकों को पीएचडी, एमफिल सहित अन्य इंसेंटिव दिया जाए।

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