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मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना में खत्म होगा बीमा कंपनियों का दखल, अब डीएम करेंगे निगरानी

अखिलेश सरकार ने वर्ष 2016 में समाजवादी किसान एवं सर्वहित बीमा योजना शुरू की थी। अब यह योजना नए स्वरूप में सामने आएगी।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 13 Nov 2019 10:17 AM (IST)Updated: Thu, 14 Nov 2019 06:57 AM (IST)
मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना में खत्म होगा बीमा कंपनियों का दखल, अब डीएम करेंगे निगरानी
मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना में खत्म होगा बीमा कंपनियों का दखल, अब डीएम करेंगे निगरानी

लखनऊ [राजीव दीक्षित]। मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित बीमा योजना अब नए स्वरूप में सामने आएगी। नए संस्करण में योजना में बीमा कंपनियों का दखल खत्म कर उसे जिलाधिकारियों की देखरेख में संचालित करने का इरादा है। योजना का नाम बदल कर 'मुख्यमंत्री कृषक दुर्घटना कल्याण योजना' करने की भी मंशा है। राजस्व विभाग के इस प्रस्ताव को कैबिनेट की मंजूरी दिलाने की तैयारी है।

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किसानों और सालाना 75 हजार रुपये से कम आय वाले परिवारों को सामाजिक सुरक्षा देने के लिए अखिलेश सरकार ने वर्ष 2016 में समाजवादी किसान एवं सर्वहित बीमा योजना शुरू की थी। यह योजना पूर्व में संचालित कृषक दुर्घटना बीमा योजना के स्थान पर चालू की गई थी। योजना के तहत दुर्घटना के कारण मृत्यु और पूर्ण दिव्यांगता होने पर बीमा राशि के रूप में पांच लाख रुपये देने की व्यवस्था थी। दुर्घटना के बाद इलाज के लिए ढाई लाख रुपये तक की चिकित्सा सुविधा और जरूरत पड़ने पर एक लाख रुपये तक के कृत्रिम अंग उपलब्ध कराने का प्रावधान था।

अखिलेश सरकार में योजना के संचालन की बागडोर संस्थागत वित्त विभाग को सौंपी गई थी। संस्थागत वित्त विभाग ने 14 सितंबर 2016 से 13 सितंबर 2018 तक योजना संचालित की। सत्ता में आने पर योगी सरकार ने योजना का नामकरण मुख्यमंत्री किसान एवं सर्वहित योजना कर दिया। 14 सितंबर 2018 से राजस्व विभाग इस योजना को संचालित कर रहा था। 13 सितंबर 2019 को मियाद पूरी होने पर योजना खत्म हो गई।

शुरुआत में चार बीमा कंपनियां-नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, ओरियंटल इंश्योरेंस, युनाइटेड इंडिया एश्योरेंस और द न्यू इंडिया एश्योरेंस योजना में शामिल हुईं। जब योजना राजस्व विभाग के अधीन आयी तो नेशनल इंश्योरेंस कंपनी ने उससे हाथ खींच लिए। दावों के निस्तारण में सुस्ती की शिकायतें शासन को लगातार मिल रही थीं। बड़ी संख्या में बीमा के दावों को खारिज करने की शिकायतें भी आम थीं। लिहाजा राजस्व परिषद ने योजना को बीमा कंपनियों की बजाय जिलाधिकारियों की देखरेख मे संचालित करने का प्रस्ताव शासन को भेजा है ताकि पीडि़त पक्ष को बीमा लाभ जल्दी मिल सके। अब जिलाधिकारियों की निगरानी में मुआवजा बांटा जाएगा। दुर्घटना में मृत्यु होने पर चार लाख रुपये की रकम राज्य आपदा मोचक निधि से और एक लाख रुपये की रकम उसके अलावा देने का इरादा है।

इलाज की सुविधा खत्म करने का प्रस्ताव

इस योजना के चालू होने के बाद वर्ष 2018 में 'आयुष्मान भारत' योजना शुरू हुई जिसके तहत गरीब परिवारों को पांच लाख रुपये तक के मुफ्त इलाज की सुविधा है। इसलिए नए स्वरूप में प्रस्तावित इस योजना के तहत इलाज की सुविधा को खत्म करने का भी प्रस्ताव है।


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