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यहां के कण-कण में बसे हैं राम, कोई रामभक्त सुध ले... तो बने बात

छिटपुट देखरेख तो होती रही है पर मखभूमि, दशरथ समाधि, तमसा तट, भरतकुंड और गुप्तारघाट पर्यटन केंद्र विकसित करने का प्रयास शायद ही किया गया हो।

By Nawal MishraEdited By: Published: Fri, 05 Jan 2018 07:32 PM (IST)Updated: Thu, 18 Jan 2018 10:00 AM (IST)
यहां के कण-कण में बसे हैं राम, कोई रामभक्त सुध ले... तो बने बात
यहां के कण-कण में बसे हैं राम, कोई रामभक्त सुध ले... तो बने बात

अयोध्या (जेएनएन)। रामनगरी अपने वैभव के लिए रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण की बाट जोह रही है। नगरी की यह साध कब पूरी होगी कहा नहीं जा सकता पर नगरी की परिधि पर स्थित भगवान राम से ही जुड़े कतिपय पौराणिक स्थल तीर्थाटन एवं पर्यटन की अपूर्व संभावना से युक्त हैं। इन स्थलों का वजूद न केवल युगों से प्रवाहमान है बल्कि यह स्वयं में शानदार अतीत समेटने के साथ आस्था के केंद्र हैं। इन स्थलों की छिट-पुट देख-रेख तो होती रही है पर इन्हें पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने का प्रयास शायद ही किया गया हो। अयोध्या के पर्यटन विकास की आवाज बुलंद करते रहने वाले नाका हनुमानगढ़ी के महंत रामदास के अनुसार इन स्थलों को अयोध्या के पर्यटन सर्किट के रूप में विकसित किए जाने की जरूरत है।

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 पांच प्रमुख केंद्र

  • मखभूमि
  • दशरथ समाधि
  • तमसा तट
  • भरतकुंड
  • गुप्तारघाट

अयोध्या के साथ इन स्थलों को न केवल बेहतर सड़क मार्ग और समुचित परिवहन से जोड़ा जाना चाहिए बल्कि यहां पर्यटन विकास की संभावनाएं भी सुनिश्चित हों। हकीकत यह है कि इन पौराणिक स्थलों को अभी तक किसी सीधे मार्ग से जोड़ने की कोशिश तक नहीं हुई। पौराणिक और पर्यटन की दृष्टि से इन्हें अपने केंद्र अयोध्या से भी जोड़ने की जरूरत नहीं समझी गई। फिलहाल, रामनगरी के करीब 20 किलोमीटर की परिधि पर स्थित इन स्थलों को पर्यटन परिपथ के रूप में यदि विकसित किया जा सका, तो अयोध्या आने वाले यात्रियों की उत्सुकता तृप्त किए जाने के साथ पर्यटन का परिपूर्ण पैकेज तैयार होगा।

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यहां यज्ञ के बाद हुआ राम का जन्म

मख भूमि: किसी तीर्थ एवं पर्यटन स्थल में जितनी संभावनाएं हो सकती हैं, मख भूमि उन सभी संभावनाओं से युक्त है। पौराणिक मान्यता, भौगोलिक अवस्थिति एवं आस्थागत सरोकार मख भूमि को विशिष्ट श्रेणी का स्थल बनाते हैं। मान्यता के अनुसार पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा से महाराज दशरथ ने इसी स्थल पर यज्ञ कराया था और यज्ञ के फलस्वरूप दशरथ को राम, भरत, लक्ष्मण एवं शत्रुघ्न के रूप में चार यशस्वी पुत्र प्राप्त हुए। अयोध्या से 17 किलोमीटर उत्तर-पूर्व बस्ती जिले में स्थित इस भूमि पर यज्ञ के लिए एक नदी की आवश्यकता थी और नदी की आवश्यकता की पूर्ति के लिए राजा दशरथ ने सरयू के उत्तर-पश्चिम दिशा स्थित टिकरी वन में तपस्यारत ऋषि उद्दालक से प्रार्थना की। ऋषि ने गंगा का आह्वान करते हुए अपने नख से एक रेखा खींची और इसी के साथ उद्दालक की तपस्थली से निकलती जलधार मख भूमि से बहती हुई वर्तमान बस्ती जिला के लालगंज कस्बा के समीप सरयू नदी में जाकर मिल गई। इस नदी को मनवर या मनोरमा नदी के नाम से जाना जाता है। मख भूमि में भगवान राम-जानकी का मंदिर है, जिसका प्रबंधन अयोध्या स्थित पौराणिक महत्व के ही मंदिर दशरथमहल की ओर से किया जाता है। मंदिर परिसर में ही प्राचीन यज्ञ स्थल का प्रतीक यज्ञ मंडप और सामने मनोरमा नदी का मनोरम घाट है। कुछ अर्सा पूर्व इस घाट का सुंदरीकरण भी कराया जा चुका है पर पर्यटकों के ठहरने एवं प्रसाधन की सुविधा के अभाव में सुंदरीकरण के बावजूद इस स्थल को पर्यटन के प्रवाह से नहीं जोड़ा जा सका है। मख भूमि की विरासत के प्रति जवाबदेह दशरथमहल के महंत बिंदुगाद्याचार्य देवेंद्रप्रसादाचार्य कहते हैं, पर्यटकों की सुविधा सुनिश्चित करने के साथ उद्यान-उपवन विकसित कर मख भूमि के सौंदर्य में चार-चांद लगाया जा सकता है। प्रतिवर्ष चैत्र पूर्णिमा से वैशाख शुक्ल नवमी के बीच संचालित अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा मख भूमि से ही शुरू होती है।

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वजूद बचाने की चुनौती

 

दशरथ समाधि: भगवान राम से जुड़ी पौराणिकता जिन चुनिंदा स्थलों से समीकृत होती है, राजा दशरथ की समाधि उनमें से एक है। अयोध्या की पौराणिकता विवेचित करते अयोध्या महात्म्य एवं रुद्रयामल जैसे ग्रंथों के अनुसार महाराज दशरथ का अंतिम संस्कार अयोध्या के आग्नेय कोण पर स्थित सरयू के घाट पर किया गया था। आज यह स्थल फैजाबाद सदर तहसील के ग्राम मांझा मूड़ाडीहा एवं राजेपुर के मध्य बिल्वहरिघाट तट पर स्थापित समाधि से चिह्नित होता है। यहां पर्यटन स्थल विकसित किए जाने की बात दूर समाधि बचाए जाने के लाले हैं। समाधि को प्रत्येक वर्ष सरयू की विकराल बाढ़ का सामना करना पड़ता है। समाधि बचाने के छिट-पुट प्रबंध तो होते हैं। इसके बावजूद प्रति वर्ष की बाढ़ समाधि को कुछ न कुछ क्षति पहुंचाए बिना पीछे नहीं हटती। समाधि स्थल पर बने मंदिर के महंत दिलीपदास कहते हैं, इस स्थल से भगवान राम की ऐतिहासिकता परिपुष्ट है और इसे बचाए जाने के साथ पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जाना चाहिए। हालांकि यह अपेक्षा दूर की कौड़ी है और रामकथा से जुड़े इस अहम स्थल को वजूद बचाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।

तमसा तीर निवास किए प्रथम दिवस रघुनाथ

तमसा तट: भगवान राम ने वन जाते समय तमसा नदी के जिस तट पर प्रथम रात्रि विश्राम किया था, वह अयोध्या से 20 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व दिशा में गैआसपुर के नाम से जाना जाता है। यद्यपि तमसा नदी का वजूद नाममात्र का रह गया है पर यहां भगवान राम के विश्राम की विरासत जीवित है। रामचरितमानस के अनुसार वनगमन के समय भगवान राम के साथ बड़ी संख्या में अयोध्यावासी चले। इस उम्मीद में कि वे भगवान राम को वापस ले आएंगे। इसी उम्मीद के साथ वे लोग तमसा के इस तट तक पहुंचे और रात्रि विश्राम किया। प्रात: जब तक लोगों की आंख खुलती सीता एवं लक्ष्मण के साथ भगवान राम आगे के सफर पर निकल चुके थे। राम को लेकर वापस लौटने की अयोध्यावासियों की आस टूट गई और राम से वंचित हो वे वहीं रह गए। चूंकि राम के जाने से उनकी आस टूट गई थी, इसलिए जहां उनकी बस्ती बसी उसे गैआसपुर कहा गया। करीब अर्द्ध शताब्दी पूर्व इस विरासत को संजोने की ललक जगी। श्रद्धालुओं ने रामचौरा और चरण चिह्न के साथ दुर्गा जी एवं हनुमान जी का मंदिर स्थापित किया। 1985 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायणदत्त तिवारी ने 42 लाख की राशि से इस स्थल का सुंदरीकरण कराया। ऐसी कोशिशें रंग लाईं और इसी के साथ ही गैआसपुर दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित हुआ पर समुचित देख-रेख के अभाव में आज यह स्थल उपेक्षा की मिसाल बनकर रह गया है। मंदिर में भोग तक के लाले हैं। सुंदरीकरण की प्रक्रिया के दौरान लगाई गई लोहे की बैरीकेडिंग तक गायब हो गई है, उसके अवशेष उजड़े चमन की कहानी बयां कर रहे हैं।

जग जप राम राम जप जेही

भरतकुंड : रामकथा में भगवान राम एवं उनके अनुज भरत के प्रेम की मिसाल दी जाती है। भरत राम के लिए कितने महत्वपूर्ण थे, इसकी तस्दीक रामचरित मानस की इस पंक्ति से होती है- भरत सरिस को राम सनेही जग जप राम राम जप जेही। भरतकुंड भगवान राम एवं भरत के दिव्य-दैवी संबंधों का साक्षी रहा है। भगवान राम के वन जाने के बाद भरत को अयोध्या का राज सिंहासन संभालना पड़ा। राम वन में और भरत राजमहल में रहें, यह संभव नहीं था और इसी सच्चाई के अनुरूप भरत ने अयोध्या के राज्य संचालन का प्रभार तो स्वीकार किया पर स्वयं अयोध्या नगर से 20 किलोमीटर दक्षिण नंदीग्राम चले आए। यहां तपस्यारत रहते हुए उन्होंने 14 वर्ष तक अयोध्या का राज्य संचालित किया। भरत के यहां रहकर तपस्या करने की स्मृति करीब आधा दर्जन मंदिरों एवं 55 बीघा के सरोवर से होती है, जिसे भरतकुंड के नाम से जाना जाता है। वृहद सरोवर और भरत से जुड़ी भव्य विरासत इस स्थल की विशिष्टता बयां करती है। केंद्र में विगत की कांग्रेस सरकार ने चार करोड़ से अधिक की लागत से भरतकुंड का सुंदरीकरण कराया पर पुख्ता कार्ययोजना के अभाव में पर्यटन की संभावना से न्याय नहीं हो सका है। यहां यात्री विश्रामालय एवं अन्य बुनियादी सुविधाएं विकसित करनी होंगी।

यहीं से स्वधाम गए भगवान

गुप्तारघाट: गुप्तारघाट का भगवान राम से गहन नाता रहा है। रामकथा एवं अन्य पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भगवान राम ने पुण्य सलिला सरयू के इसी घाट से अपने लोक के लिए गमन किया था। रामभक्तों के लिए यह स्थल युगों से आस्था का केंद्र है। अयोध्या से करीब 10 किलोमीटर दूर गुप्तारघाट तक पहुंचने के दो रास्ते हैं। सामान्य तौर पर लोग कैंट क्षेत्र से होते हुए सरयू के इस तट तक पहुंचते हैं। दूसरा मार्ग 14 कोसी परिक्रमा के रूप में है। गुप्तारघाट से लगे परिक्रमा मार्ग पर करीब 10 किलोमीटर का सफर कर अयोध्या पहुंचा जा सकता है। घाट के एक ओर पुण्यसलिला का धवल प्रवाह और दूसरी ओर प्राचीन मंदिरों की कतार पुरातनता का मनोहारी दृश्यांकन करती है। सरयू का घाट सौ मीटर पक्का और सफेद एवं लाल बलुआ पत्थर से बना है पर उस पर साफ-सफाई का संकट रहता है। रामकथा मर्मज्ञ एवं गुप्तारघाट के ही समीप स्थित पंचमुखी महादेव मंदिर के व्यवस्थापक आचार्य मिथिलेशनंदिनीशरण कहते हैं कि घाट के साथ सरयू की भी स्वच्छता सुनिश्चित कर पर्यटकों को कहीं अधिक प्रभावी ढंग से आकृष्ट किया जा सकता है।


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