UP में किरायेदारी कानून लागू, आवासीय मामलों में 11 माह होने पर भी नहीं देनी होगी सूचना
यूपी में किरायेदारी विनियमन अध्यादेश को योगी कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भी उसे हरी झंडी दे दी है। राज्यपाल की मंजूरी मिलने के साथ ही सोमवार से प्रदेश में संबंधित अध्यादेश लागू हो गया है।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। भवन स्वामियों और किरायेदारों के हितों के मद्देनजर यूपी की योगी सरकार ने राज्य में उत्तर प्रदेश नगरीय परिसर किरायेदारी विनियमन अध्यादेश-2021 लागू कर दिया है। 11 माह की आवासीय किरायेदारी के मामलों में सरकार ने किरायेदार और मकान मालिक को राहत देते हुए उन्हें किरायेदारी की सूचना किराया प्राधिकारी को देने से छूट देने का फैसला किया है।
शुक्रवार को किरायेदारी विनियमन अध्यादेश को योगी कैबिनेट की मंजूरी मिलने के बाद राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने भी उसे हरी झंडी दे दी है। प्रमुख सचिव आवास दीपक कुमार ने बताया कि राज्यपाल की मंजूरी मिलने के साथ ही सोमवार से प्रदेश में संबंधित अध्यादेश लागू हो गया है।
48 वर्ष पुराने उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किराये पर देने, किराया तथा बेदखली विनियमन) अधिनियम-1972 के स्थान पर लागू किए गए अध्यादेश के तहत लिखित करार (अनुबंध) के बिना अब भवन को किराए पर नहीं दिया जा सकेगा। करार के लिए भवन स्वामी और किरायेदार को अपने बारे में जानकारी देने के साथ ही भवन की स्थिति का भी विस्तृत ब्योरा तय प्रारूप पर देना होगा। इसमें दोनों की जिम्मेदारियों का भी उल्लेख होगा।
किरायेदारी करार की तिथि से दो माह में भवन स्वामी व किरायेदार को संयुक्त रूप से उसकी सूचना किराया प्राधिकारी को देनी होगी। सूचना देने के लिए डिजिटल प्लेटफार्म की व्यवस्था की जाएगी। हालांकि, 12 माह से कम अवधि के आवासीय किरायेदारी के मामलों में किराया प्राधिकारी को सूचना देने की अनिवार्यता नहीं होगी।
गौरतलब है कि ज्यादातर मामलों में 11 माह के लिए ही किरायेदारी का अनुबंध होता है। एक बार तय किराये का अनुबंध होने के बाद आवासीय मामले में पांच जबकि गैर आवासीय परिसर के मामले में सात फीसद वार्षिक की दर से ही किराये को बढ़ाया जा सकेगा। आवासीय मामले में दो माह व अन्य में छह माह के किराये के बराबर सिक्योरिटी राशि ली जा सकेगी। अनुबंध के दो महीने तक किराया न देने पर किरायेदार को भवन से बेदखल किया जा सकेगा।
किरायेदारी के विवाद निपटाने के लिए रेंट अथॅारिटी एवं रेंट ट्रिब्यूनल की व्यवस्था भी रखी गई है। एडीएम स्तर के जहां किराया प्राधिकारी होंगे वहीं जिला न्यायाधीश खुद या अपर जिला न्यायाधीश किराया अधिकरण की अध्यक्षता करेंगे। अधिकतम 60 दिनों में मामले निस्तारित किए जाएंगे।