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एथलीट सुधा सिंह अर्जुन पुरस्कार तथा पद्मश्री सम्मान पाने वाली उत्तर प्रदेश की दूसरी खिलाड़ी

PadamShree Sudha Singh एथलेटिक्स में सबसे कठिन स्पर्धा मानी जाने वाली स्टीपलचेज में अपना लोहा मनवाने वाली एथलीट सुधा सिंह पद्मश्री के साथ अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित होने वाली प्रदेश की दूसरी महिला खिलाड़ी हैं। मात्र 34 वर्ष की आयु में ही उनको अर्जुन पुरस्कार के बाद पद्मश्री सम्मान मिला।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 26 Jan 2021 05:16 PM (IST)Updated: Wed, 27 Jan 2021 04:39 PM (IST)
एथलीट सुधा सिंह अर्जुन पुरस्कार तथा पद्मश्री सम्मान पाने वाली उत्तर प्रदेश की दूसरी खिलाड़ी
रायबरेली में बेहद साधारण परिवार में जन्म लेने वाली सुधा सिंह ने अपनी असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया

लखनऊ [धर्मेन्द्र पाण्डेय]। एथलेटिक्स में डिकेथलॉन के बाद सबसे कठिन स्पर्धा मानी जाने वाली स्टीपलचेज में अपना लोहा मनवाने वाली एथलीट सुधा सिंह प्रदेश की दूसरी ऐसी खिलाड़ी हैं, जिनको अर्जुन पुरस्कार के साथ ही पद्मश्री सम्मान भी मिला है। पद्मश्री के साथ अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित होने वाली वह प्रदेश की दूसरी महिला खिलाड़ी भी हैं। अब तक प्रदेश के चार खिलाड़ियों को पद्मश्री सम्मान मिला है। वैसे तो उत्तर प्रदेश से खेल के क्षेत्र में सबसे अधिक योगदान देने के लिए सबसे बड़ा नागरिक सम्मान हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद सिंह को पद्मभूषण मिल चुका है।

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पश्चिमी रेलवे में अधिकारी सुधा सिंह से पहले उत्तर प्रदेश में खेल निदेशालय की नींव रखने वाले स्वर्गीय केडी सिंह 'बाबू', बैडमिंटन स्टार स्वर्गीय मीना शाह तथा पूर्व खेल निदेशक स्वर्गीय पंडित जमनलाल शर्मा को भी पद्मश्री सम्मान मिला। केडी सिंह बाबू तथा जमनलाल शर्मा ने हाकी में देश का ओलंपिक में प्रतिनिधित्व किया तो सुधा सिंह ने एशियाई खेलों में स्वर्ण व रजत पदक जीतने के साथ दो ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व किया है। मीना शाह देश की श्रेष्ठ महिला बैडमिंटन खिलाड़ियों में एक थीं। वह 1959 से 1965 तक लगातार बैडमिंटन की राष्ट्रीय चैंपियन रहीं।

रायबरेली में बेहद साधारण परिवार में जन्म लेने वाली सुधा सिंह ने अपनी असाधारण प्रतिभा का परिचय दिया है। मात्र 34 वर्ष की आयु में ही उनको खेल के क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर दिया जाने वाला सर्वोच्च सम्मान अर्जुन पुरस्कार के बाद पद्मश्री सम्मान मिला है। एथलेटिक जगत में रायबरेली एक्सप्रेस के नाम से विख्यात सुधा सिंह ने दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत के दम पर इस खेल में न सिर्फ खुद को साबित किया बल्कि, दुनियाभर में देश का गौरव भी बढ़ाया।

लखनऊ के स्पोर्ट्स हास्टल में अपना खेल निखारने के बाद सुधा सिंह ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सुधा सिंह ने करीब पांच वर्ष तक लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम के हास्टल में रहकर ट्रेनिंग की। अंतरराष्ट्रीय स्तर वर्ष 2009 में एशियन चैैंपियनशिप में रजत पदक जीतकर उन्होंने सबका ध्यान खींचा। सुधा ने इसके बाद 2010 मेंं हुए एशियन खेल की 3000 मीटर स्टीपलचेज स्पर्धा में स्वर्ण पदक पर कब्जा जमाया। 2013 एशियन चैैंपियनशिप में भी स्वर्ण पदक जीतने वाली सुधा ने 2018 में जकार्ता एशियन गेम्स में रजत पदक जीता। रियो 2012 तथा लंदन 2016 ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करने वाली सुधा सिंह का अब एक ही लक्ष्य टोक्यो ओलंपिक में पदक जीतना है।

पीएम मोदी को विशेष धन्यवाद

सुधा सिंह अपना नाम पद्म पुरस्कार से सम्मानित होने वालों की सूची में शामिल होने के बाद बेहद प्रसन्न हैं। दो ओलंपिक में देश का प्रतिनिधत्व कर चुकीं सुधा सिंह अब तीसरे यानी टोक्यो ओलंपिक में जाने की तैयारी में लगी हैं। साल भर से अपने घर न आने वाली सुधा सिंह पटियाला के बाद अब बेंगलूरू में कैंप कर रही हैं।

उन्होंने कहा कि सोमवार की रात मेरी खेल करियर की सर्वश्रेष्ठ सूचना देने वाली रात थी। एक खिलाड़ी जब देश के लिए पदक जीतता है तो उसे इस तरह के बड़े सम्मान का इंतजार होता है। प्रधानमंत्री मोदी को विशेष धन्यवाद देना चाहूंगी कि उन्होंने हमारी उपलब्धि का मान बढ़ाया।

हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद ने एक हजार से ज्यादा गोल दागे

हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यानचंद सिंह भारतीय हॉकी टीम के कप्तान थे। भारत एवं विश्व हॉकी के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में उनकी गिनती होती है। वे तीन बार ओलंपिक के स्वर्ण पदक जीतने वाली भारतीय हॉकी टीम के सदस्य रहे। उनका जन्म 29 अगस्त, 1905 प्रयागराज (तब के इलाहाबाद) में हुआ था। उनकी जन्मतिथि को भारत में 'राष्ट्रीय खेल दिवस' के रूप में मनाया जाता है। उन्होंने अपने खेल जीवन में एक हजार से अधिक गोल दागे। 

मेजर ध्यानचंद जब मैदान में खेलने के लिए उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक जाती थी। इसको लेकर कई कहानियां भी खूब प्रचलित हैं। उन्हें 1956 में भारत के प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था। इसके अलावा बहुत से संगठन और प्रसिद्ध लोग समय-समय पर उन्हे 'भारतरत्न' से सम्मानित करने की मांग करते रहे हैं। ध्यानचंद को फुटबॉल में पेले और क्रिकेट में ब्रैडमैन के समतुल्य माना जाता है। 74 वर्ष की उम्र में तीन दिसंबर, 1979 को उनका निधन दिल्ली में हो गया।

विश्व के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी स्वर्गीय केडी सिंह 'बाबू'

विश्व के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी को प्रदान किए जाने वाल हेल्मस पुरस्कार प्राप्त करने वाले स्वर्गीय केडी सिंह 'बाबू' नैसर्गिक प्रतिभा के खिलाड़ी थे। ओलंपिक में अपने बेहतरीन स्टिक वर्क से हाकी में लोहा मनवाने वाले 'बाबू' साहब क्रिकेट तथा फुटबाल के साथ बैडमिंटन व टेनिस के भी शानदार खिलाड़ी थे। कुंवर दिग्विजय सिंह 'बाबू' को हॉकी को भारत में लोकप्रिय बनाने और पूरी दुनिया में इसकी पहचान बनाने में मुख्य भूमिका निभाने के कारण पद्मश्री से सम्मानित किया गया।

लंदन में 1948 में हुए ओलम्पिक में वह भारतीय टीम के उपकप्तान थे तो 1952 में हेलसिंकी ओलम्पिक में टीम की कप्तानी उनके हाथ थी। उनको 1958 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। केडी ने उत्तर प्रदेश में हॉकी को विकसित किया और खिलाडिय़ों को काफी आगे बढाया। केडी सिंह 'बाबू' उत्तर प्रदेश खेल परिषद के पहले संगठन सचिव थे। वह प्रदेश के पहले खेल निदेशक भी थे।

'बाबू की विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया पंडित जमन लाल शर्मा ने 

पंडित जमन लाल शर्मा ने केडी सिंह 'बाबू की विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया। वह रोम में 1960 में रजत पदक जीतने वाली भारतीय टीम में शामिल थे। उन्होंने रोम में 1960 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में रजत पदक जीता।

पंडित जमन लाल शर्मा का जन्म 1932 में पाकिस्तान के बन्नू में हुआ था। खिलाड़ी के रूप में सेवानिवृत्त होने के बाद वह भारतीय टीम के शर्मा कोच बन गए और एशियाई खेलों में भारतीय हॉकी टीम के प्रबंधक थे। भारत सरकार ने उन्हेंं 1990 में पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया। वह उत्तर प्रदेश के खेल निदेशक भी थे।  

मीना शाह को अर्जुन पुरस्कार के बाद पद्मश्री 

सुधा सिंह से पहले बैडमिंटन खिलाड़ी स्वर्गीय मीना शाह को खेल के क्षेत्र में शानदार योगदान के लिए अर्जुन पुरस्कार के बाद पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उनको 1963 में अर्जुन पुरस्कार प्रदान किया गया था।

इसके बाद 1977 में उनको पदमश्री से नवाजा गया। बलरामपुर निवासी मीना शाह अपने पिता से साथ लखनऊ आ गईं और फिर यही अपने खेल को निखारा।


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