राष्ट्रीय खेल दिवस : संघर्ष में भी नहीं डगमगाए इनके कदम...Lucknow News
हॉकी के महान खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद्र के जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है राष्ट्रीय खेल दिवस।
लखनऊ [विकास मिश्र ]। खेल चाहे जो भी हो, खिलाड़ी जीतने के लिए ही मैदान में उतरता है। हार का सामना करने वाला खिलाड़ी दोबारा उससे सबक लेकर पूरे दमखम के साथ मैदान में उतरता है। लड़कर जीतने के इसी जज्बे को खेल कहा जाता है। राष्ट्रीय खेल दिवस पर पेश है एक रिपोर्ट...
पिता के सपने को किया पूरा...
सुधा सिंह
स्टीपलचेज यानी पग-पग पर आने वाली बाधाओं को पार करते हुए अपने लक्ष्य तक पहुंचना। एशियन गेम्स 2018 में देश के लिए इसी स्पर्धा में रजत पदक जीतने वाली मूलत: रायबरेली की सुधा सिंह की निजी जिंदगी भी स्टीपलचेज की तरह है। उन्होंने रायबरेली की सड़कों की पटरियों पर दौड़ लगाकर सफलता का सफर तय किया। बताया जाता है कि सुधा के पास एथलीट बनने के लिए न ही पैसा था और न ही संसाधन। हां, वो थकी नहीं, विपरीत परिस्थितियों से हार नहीं मानीं, और आज भी सपने संजोए हैं कि देश की झोली में और भी पदक डाल सकें। वर्ष 2002 में सुधा के पिता ने उनका दाखिला लखनऊ स्पोट्र्स हॉस्टल में करवाया कि शायद बेटी यहां से अपने लक्ष्य को पाने में सफल हो सके। ऐसा हुआ भी। सुधा तीन साल के भीतर ही राज्य व राष्ट्रीय स्तर की चैंपियनशिप में छा गईं। उन्होंने सबसे पहले 2009 एशियन एशियन चैंपियनशिप में रजत, 2010 एशियन गेम्स में स्वर्ण, 2011 एशियन चैंपियनशिप में फिर से रजत और 2012 लंदन ओलंपिक में हिस्सा लेकर इतिहास रच दिया। यही नहीं, 2013 एशियन चैंपियनशिप में शीर्ष स्थान हासिल करते हुए सोने का तमगा हासिल किया। जबकि 2015 में विश्व चैंपियनशिप और 2016 रियो ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली प्रदेश की पहली महिला एथलीट बनीं। इसके बाद 2017 एशियन चैंपियनशिप में अपना जलवा बरकरार रखते हुए स्वर्ण पदक जीता। सुधा ने लगभग सात साल लखनऊ में बिताया। अभी यह स्टार एथलीट विश्व चैंपियनशिप की तैयारियों में जुटी है। कुछ भी आज सुधा की सफलता पर उनके पिता को नाज होता होगा कि सभी को ऐसी बेटी मिले।
कमजोर पिता की मजबूत बेटी
खुशबू गुप्ता- मलूत: प्रतापगढ़ की रहने वाली इस बेटी ने हाल ही चीन के चेंगडू शहर में आयोजित विश्व पुलिस गेम्स में दो अलग-अलग वर्गों में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया।
लखनऊ खेल छात्रावास की एथलीट खुशबू गुप्ता कमाल की एथलीट हैं। उनके पिता राम आसरे की प्रतापगढ़ के दहिलामऊ बाजार में फुटपाथ पर जूते-चप्पल की दुकान है। खुशबू इसी साल दिल्ली में हुई अखिल भारतीय पुलिस एथलेटिक्स चैंपियनशिप में धमाकेदार प्रदर्शन करते हुए 1500 मीटर और 3000 मीटर स्टीपलचेज का स्वर्ण अपने नाम कर सुर्खियों में आईं। इसी गोल्डन डबल का इनाम उन्हें भारतीय पुलिस टीम में चयन के रूप में मिला है। इसमें दुनिया भर की पुलिस के खिलाड़ी हिस्सा लेते हैं। खुशबू इस बार विश्व पुलिस गेम्स में हिस्सा लेने वाली उत्तर प्रदेश की पहली महिला एथलीट हैं। चेंगडू में खुशबू ने पांच किलोमीटर क्रासकंट्री दौड़ में 3000 मीटर स्टीपल चेज में सोने का तमगा हासिल किया था। फिलहाल मजबूर पिता की मजबूत बेटी पर परिवार की जिम्मेदारी भी है।
सात साल पहले लखनऊ आईं खुशबू
लगभग सात साल पहले 2012 में राम आसरे ने अपनी बेटी खुशबू को लखनऊ स्पोट्र्स हॉस्टल में सिर्फ इसलिए भर्ती कराया था कि उसे भरपेट भोजन मिलेगा। इसके साथ पढ़ाई-लिखाई भी मुफ्त में होगी। पर राम आसरे की आठ बेटियों में पांचवें नंबर की खुशबू ने ऐसा कमाल कर दिया कि वह न सिर्फ राष्ट्रीय स्तर की चैंपियन एथलीट बनीं, बल्कि इस साल की शुरुआत में एसएसबी में सिपाही की नौकरी भी हासिल की। खुशबू की धावकी हॉस्टल की कोच बिमला सिंह और बीके बाजपेयी की देखरेख में परवान चढ़ी। वह कई बार जूनियर राष्ट्रीय चैंपियन रहीं। विजयवाड़ा जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में उन्होंने नए कीर्तिमान के साथ 3000 मीटर स्टीपल चेज का स्वर्ण पदक जीता। इसके अलावा वह इसी साल जारी जूनियर राष्ट्रीय रैंकिंग में 3000 मीटर स्टीपलचेज में देश की नंबर एक धाविका बनी थीं।
श्रुति मिश्रा-
राजधानी की प्रतिभाशाली बैडमिंटन खिलाड़ी श्रुति मिश्रा ने बुल्गारिया में कमाल कर दिखाया। उन्होंने बुलगैरियन जूनियर अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में मिश्रित युगल का खिताब जीतने में बड़ी सफलता हासिल की। फाइनल में श्रुति ने केरल के एडविन च्वाय इंग्लैंड की ब्रांडन हाव और हैरिस की वरीय जोड़ी को 21-14, 21-17 से शिकस्त देकर सभी को चौंका दिया। शहर की इस बेटी के अब तक के खेल जीवन का यह सबसे बड़ा और पहला अंतरराष्ट्रीय खिताब है।
श्रुति त्रिवेणी नगर की रहने वाली हैं। उनके पिता मनोरंजन मिश्रा पावर कारपोरेशन में कर्मचारी हैं। बेटी की प्रतिभा को देखते हुए पिता मनोरंजन मिश्रा ने बैडमिंटन जैसे खर्चीले खेल की परवाह न करते हुए श्रुति को गोमतीनगर स्थित बीबीडी उत्तर प्रदेश बैडमिंटन अकादमी में 2013 से दाखिला दिलाया। महज एक साल की कड़ी ट्रेनिंग के बाद ही श्रुति ने अपने दमदार खेल से छा गईं। वह जूनियर और सब जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में कई बार पदक जीत चुकी हैं। इस साल फरवरी-मार्च में वह भारतीय अंडर-17 टीम की तरफ से इंडोनेशिया खेलने गई थीं। वहां पहले और दूसरे दौर के मुकाबले जीतने के बाद क्वार्टर फाइनल में हार गईं थीं। श्रुति जुलाई में चीन में हुए एशियन जूनियर बैडमिंटन चैंपियनशिप में भी हिस्सा ले चुकी हैं।
गरीबी को मात देकर हासिल किया मुकाम
मुमताज खान-
मुमताज यानी विशिष्ट। नाम से तो कोई भी मुमताज हो सकता है, पर अपने नाम के अनुरूप मुकाम हासिल करना विरलों के ही बूते का होता है। शहर की बेटी मुमताज ने यह कर दिखाया। अंतरराष्ट्रीय जूनियर यूथ ओलंपिक गेम्स में भारत को रजत पदक दिलाने वाली मुमताज को प्रधानमंत्री मोदी भी सम्मानित कर चुके हैं। इस साल लखनऊ में हुई इंडो-फ्रेंच हॉकी सीरीज में मुमताज ने जूनियर भारतीय टीम की तरफ से प्रतिनिधित्व करते हुए जीत में जीत में अहम भूमिका निभाई थी। भारत ने पांच मैचों की सीरीज 3-2 से अपने नाम की थी। उनके पिता अभी भी कैंट क्षेत्र में सब्जी का ठेला लगाते हैं, लेकिन अपनी मामूली पृष्ठिभूमि को उन्होंने कभी अपनी बेटी के करियर के आड़े नहीं आने दिया। निश्चित रूप से विपरीत परिस्थित से निकलकर ख्याति अर्जित करने वाली हर लड़की के लिए मुमताज जैसा बनना चाहेगी। एक लड़की, वह भी पर्दादारी के हिमायती समाज से ताल्लुक और एक सामान्य सब्जी विक्रेता के परिवार में जन्म। इन परिस्थितियों में मुमताज ने जो मुकाम हासिल किया वह आसान नहीं था। इसका श्रेय जाता है उनके पिता और हॉकी कोच नीलम सिद्दीकी को। शहर के तोपखाना बाजार में छोटे से घर में रहने वाले हफीज खान की छह बेटियां और एक बेटा है। मुमताज तीसरे नंबर पर हैं। हफीज सालों से सब्जी बेचतकर किसी तरह घर का खर्च चलाते हैं, लेकिन इस होनहार बेटी के लिए वह कोई कोर कसर बाकी नहीं रखते। यही वजह है कि जूनियर भारतीय हॉकी टीम की सदस्य मुमताज लगातार अपने अच्छे प्रदर्शन से प्रभावित कर रही हैं। उनका अगला लक्ष्य सीनियर भारतीय महिला टीम में जगह बनाना है।