Stubble Burning: किसान समझने लगा पराली जलाने के नुकसान, प्रदेश में अब तक 702 जगहों पर जलाई गई
Stubble Burning बीते वर्ष 1025 घटनाएं हुई थीं दर्ज। अक्टूबर-नवंबर वायु प्रदूषण के लिहाज से बेहद संवेदनशील माह हैं। वायु प्रदूषण के लिए पराली से उठने वाला धुआं भी जिम्मेदार। पराली जलाने की घटनाओं को देखें तो इस वर्ष एक अक्टूबर से अभी तक 702 जगहों पर पराली जलाई गई।
लखनऊ [रूमा सिन्हा]। Stubble Burning: पराली जलाने से पर्यावरण को पहुंचने वाले नुकसान का लेखा-जोखा उत्तर प्रदेश के किसानों को समझ आने लगा है। अक्टूबर-नवंबर वायु प्रदूषण के लिहाज से बेहद संवेदनशील महीने हैं। दिनोंदिन एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) का बढ़ता स्तर देश के उच्चतम न्यायालय के लिए भी चिंता का सबब बन चुका है। वायु प्रदूषण के लिए पराली से उठने वाला धुआं भी जिम्मेदार है।
पिछले कुछ वर्षों से इसकी रोकथाम के तमाम उपाय किए जा रहे हैं। किसानों को बताया जा रहा है कि पराली जलाने से न केवल प्रदूषण की समस्या बढ़ती है, बल्कि खेत की मिट्टी में मौजूद जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं, जो मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए जरूरी हैं।
पराली जलाने की घटनाओं को देखें तो इस वर्ष एक अक्टूबर से अभी तक 702 जगहों पर पराली जलाई गई। वहीं, बीते वर्ष 1025, वर्ष 2018 में 1623 और वर्ष 2017 में 2367 स्थानों पर पराली जलाने की घटनाएं दर्ज हुई थीं। इस माह 20 से 25 अक्टूबर के बीच महज छह दिनों में उत्तर प्रदेश में जहां 283 घटनाएं हुईं। वहीं, इसके मुकाबले कई गुना अधिक पंजाब में 7394 स्थानों पर किसानों ने पराली को आग लगाई। हरियाणा में भी दोगुने से अधिक 821 स्थानों पर पराली जलाई गई। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आइएआरआइ) द्वारा जारी यह आंकड़े इस बात को दर्शाते हैं कि कम से कम उत्तर प्रदेश में तो किसानों को यह बात समझ में आ गई है कि पराली जलाना पर्यावरण के साथ-साथ खेतों के लिए भी नुकसानदेह है।
कृषि विभाग के अधिकारी बताते हैं कि जागरूकता कार्यक्रमों के अलावा निगरानी तंत्र भी मजबूत किया गया है इसका परिणाम सामने आ रहा है। अब तक 315 एफआइआर दर्ज की जा चुकी हैं। वहीं, 6 लाख 47 हजार रुपये बतौर जुर्माना वसूले गए हैं। राहत की बात यह है कि पराली जलाने के मामले बीते वर्ष के मुकाबले काफी कम हैं। हालांकि, आने वाले दिनों में देखना होगा कि नियंत्रण के लिए किए गए प्रयासों का क्या असर रहता है।