लखनऊ के सरकारी भवनों में बदहाल पड़े रेन वाटर हार्वेटिंग के मौजूदा स्ट्रक्चर, देखरेख बनेगी बड़ी चुनौती
लखनऊ के सरकारी भवनों में स्थापित रीचार्ज प्रणालियां देखरेख और अनुरक्षण के अभाव में बदहाल हैं। ऐसे में रीचार्ज की मौजूदा व्यवस्था बड़ी संख्या में शासकीय भवनों में रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग की प्रस्तावित योजना के लिए चुनौती साबित होगी।
लखनऊ [रूमा सिन्हा]। सूखते भूजल भंडारों को बचाने की कोशिश में प्रदेश सरकार द्वारा सूबे में दो लाख सरकारी व गैर सरकारी भवनों में रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणाली स्थापित करने का अहम फैसला लिया गया है, लेकिन विगत एक दशक के दरम्यान तमाम सरकारी भवनों में स्थापित रीचार्ज प्रणालियां देखरेख और अनुरक्षण के अभाव में बदहाल हैं। ऐसे में रीचार्ज की मौजूदा व्यवस्था बड़ी संख्या में शासकीय भवनों में रूफटॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग की प्रस्तावित योजना के लिए चुनौती साबित होगी।
लखनऊ शहर को ही लें, तो यहां करीब 300 सरकारी भवनों में स्थापित रीचार्ज सिस्टम के हाल बेहाल है। अधिकतर के रीचार्ज चेंबर गंदगी से पटे हैं, वहीं रीचार्जिंग के लिए बनाई गई बोरिंग और फिल्टर चेंबर चोक हैं। विगत 15 वर्षों में मुख्य सचिव व अन्य उच्चाधिकारियों के स्तर से सरकारी भवनों पर स्थापित रीचार्ज प्रणालियों के रखरखाव के लिए एक के बाद एक शासनादेश जारी किए गए, लेकिन संबंधित महकमों द्वारा पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया। बताते चलें कि वर्ष 2004 में ही भूगर्भ जल विभाग द्वारा रीचार्ज स्ट्रक्चर के रखरखाव के लिए दिशा निर्देश जारी किए गए थे, परंतु किसी भी विभाग द्वारा इस पर अमल नहीं किया गया।
लखनऊ में मंडलायुक्त कार्यालय, कलेक्ट्रेट, नगर निगम भवन, सचिवालय (लाल बहादुर शास्त्री भवन), बापू भवन, जवाहर भवन, विकास भवन, राजकीय पॉलीटेक्निक, महिला पॉलीटेक्निक, बलरामपुर अस्पताल, हाई कोर्ट पुराना भवन, केंद्रीय भवन अलीगंज, आंचलिक विज्ञान केंद्र, लोक सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश प्रशासन एवं प्रबंधन अकादमी, लाप्लास कालोनी, दिलकुशा कालोनी, गुलिस्ता कालोनी, लखनऊ विश्वविद्यालय सहित अनेक सरकारी भवनों में यह प्रणाली काफी समय से स्थापित है, लेकिन रखरखाव न होने से स्ट्रक्चर की स्थिति काफी खराब हो गई है। इन बदहाल प्रणालियों से वास्तव में कितना पानी रीचार्ज हो पा रहा है, इसकी जानकारी संबंधित महकमों के पास उपलब्ध ही नहीं है।
प्रभाव आकलन की भी व्यवस्था नहीं: रूफ टॉप रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्रणालियों से भूगर्भ जल स्रोतों को कितना लाभ पहुंचा, इसका पता लगाने के लिए पूर्व में ही मुख्य सचिव स्तर से प्रभाव आकलन करने के आदेश जारी किए गए थे, परंतु सूबे में कहीं पर भी इस योजना से मिले लाभ का आकलन नहीं किया गया, जबकि इस संबंध में 2004 में ही भूगर्भ जल विभाग द्वारा गाइडलाइन जारी की गई थी। उसके बाद शासन स्तर से लगातार निर्देश भी दिए गए।