Move to Jagran APP

जयंती पर विशेषः मूर्तियों के शहर में भगत सिंह के लिए नहीं एक टुकड़ा जमीन

प्रतिमा लगाने के लिए वर्ष 2005 से चल रही है जमीन की तलाश। नगर निगम ने जमीन तलाशी भी तो वह निकल गई विवादित।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 28 Sep 2018 09:05 AM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2018 09:12 AM (IST)
जयंती पर विशेषः मूर्तियों के शहर में भगत सिंह के लिए नहीं एक टुकड़ा जमीन
जयंती पर विशेषः मूर्तियों के शहर में भगत सिंह के लिए नहीं एक टुकड़ा जमीन

लखनऊ [अजय श्रीवास्तव]। चारबाग स्टेशन की दहलीज पार कर शहर के किसी भी रास्ते पर मुड़ जाइए, हर चौराहे पर कोई न कोई इतिहास पुरुष खड़े मिल जाएंगे। कुछ सच्चे, कुछ तराशे और कुछ गढ़े। पार्को में भी प्रतिमाएं खड़ी मिलेंगी। ..लेकिन, क्रांति की ज्वाला भड़काने वाले भगत सिंह के लिए इस शहर में जमीन तलाशे नहीं मिल रही।

loksabha election banner

भगत सिंह देश को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद कराने के लिए मात्र साढ़े तेइस वर्ष की उम्र में ही वर्ष 1931 को लाहौर के सेंट्रल जेल में फांसी के फंदे पर झूल गए थे। उनकी इस कुर्बानी को अफसर और नेता भूल गए। ऐसा न होता तो नगर निगम उनकी प्रतिमा लगाने के लिए एक टुकड़ा जमीन तलाशने में उदासीन होकर न बैठ जाता। 28 सितंबर को उनकी जयंती है तो उन्हें नमन करने की याद आ गई। सरकारी तंत्र को जगाने की याद आई कि शायद अब उनकी प्रतिमा लगाने के लिए जमीन तलाश ली जाए।

ऐसा नहीं कि शहर में शहीद भगत सिंह की प्रतिमा लगाने का विचार नहीं आया। तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव 18 जुलाई, 2005 को लखनऊ के भ्रमण पर थे। इस दौरान उन्होंने शहर के किसी स्थल पर शहीद-ए-आजम भगत सिंह की प्रतिमा लगाए जाने की घोषणा की थी। मुख्यमंत्री की इस घोषणा पर गृह सचिव (सामान्य) अनुभाग-एक की तरफ से एक अर्धशासकीय पत्र डीएम लखनऊ को भेजा गया और डीएम के यहां यह पत्र नगर आयुक्त को भेज दिया गया था। जमीन तलाशी जाने लगी लेकिन मुलायम सरकार जाते ही प्रतिमा लगाने के लिए जमीन तलाशने का काम ही बंद हो गया।

नगर निगम सदन ने शहीद भगत सिंह की प्रतिमा लगाने और उनके नाम से एक पार्क बनाने का निर्णय लिया था। हरदोई रोड के मल्लपुर गांव में जमीन भी तलाश ली गई थी। 15 सितंबर, 2007 को शिलान्यास भी कर दिया गया था लेकिन नगर निगम के तहसील विभाग ने भगत सिंह की प्रतिमा लगाने और पार्क बनाने के लिए विवादित जमीन चिंहित कर दी थी। लिहाजा निर्माण चालू होते ही विरोध हो गया। लंबे समय तक काम बंद रहा और शिलापट ही यह याद दिलाता था कि यहां शहीद भगत सिंह की प्रतिमा लगाई जानी है और उनके नाम से पार्क बनना है। अब शिलापट भी गायब हो चुका है और जिस दीवार पर शिलापट लगाया गया था वह दो तीन टुकड़ों में पड़ा है।

यहां तो बजट ही कम पड़ गया

शहीद स्मारक परिसर में शहीद स्तंभ और पार्क बनाने की नींव रखी गई थी। इस स्तंभ के तीन हिस्से में क्रांतिकारी भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव के चित्र लगाए जाने थे। जनवरी 2001 में काम शुरू होकर नवंबर 2001 में उसे पूरा होना था। लोकनिर्माण विभाग को काम करना था। इसके लिए 9.14 लाख रुपये का बजट मंजूर किया गया था, लेकिन सरकार की तरफ से 5.14 लाख रुपये जारी किए थे। बजट न मिलने से काम बंद हो गया और वहां लगे पीले बोर्ड में काले अक्षरों से लिखे शब्द ही सरकारी व्यवस्था को शर्मसार कर रहे हैं। जब बहुत दिनों तक स्तंभ पर चित्र नहीं लगे तो एक निजी संस्था ने शहीद भगत सिंह की प्रतिमा को उसमे जड़ दिया और शहीद-ए-आजम का बस यही बाकी निशां रह गया।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.