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MLA Mukhtar Ansari case: माफिया की आयी है बरात...थार सजाओ रे बाबुल

Mukhtar Ansari case पंजाब में अगर कांग्रेस सरकार न होती और मऊ के दंगे व विधायक कृष्णानंद राय की हत्या को लेकर भाजपा मुख्तार पर आक्रामक न होती तो भी क्या उसका एक राज्य से दूसरे राज्य में तबादला इतना देशव्यापी मुद्दा बना होता।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Wed, 07 Apr 2021 01:51 PM (IST)Updated: Wed, 07 Apr 2021 06:25 PM (IST)
MLA Mukhtar Ansari case: माफिया की आयी है बरात...थार सजाओ रे बाबुल
जेल से मुख्तार के निकलने और लंबी यात्रा के दृश्य तत्काल वायरल हो गए।

लखनऊ, [आशुतोष शुक्ल]। वाहनों का काफिला दौड़ रहा है। आगे-पीछे वर्दीधारी भाग रहे हैं। कैमरों की रौशनियां झमक रही हैं। लगभग दो हजार किलोमीटर की यात्रा का टीवी पर सजीव प्रसारण हो रहा है। वेबसाइट लगातार अपडेट की जा रही हैं। अखबारों के पन्ने रंगे जा रहे हैं। ट्विटर और फेसबुक पर अंतहीन बहस चल रही है। राजनीतिक दलों में आरोप प्रत्यारोप जारी है और यहां तक कि दो राज्य आपस में जूझ गए हैं। यह सब हो रहा है मुख्तार अंसारी के लिए। हत्या, हत्या का प्रयास और वसूली जैसे 52 संगीन मुकदमों में वांछित और पंद्रह में विचाराधीन। कोरोना में बंद कमरे में सौ लोगों से अधिक की जुटान पर सरकारी मनाही है, लेकिन मुख्तार को लेने सौ से अधिक पुलिस वाले पंजाब गए। कई गाडिय़ां गईं और वज्र भी गया। पंजाब से बांदा तक की मुख्तार की यात्रा निर्विघ्न संपन्न कराने के सारे जतन किए गए। जेल से मुख्तार के निकलने और लंबी यात्रा के दृश्य तत्काल वायरल हो गए।

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जेल में जिसे अधिकारी माननीय कहते और जिसका रसूख ऐसा कि जेल से कोर्ट जाते हुए वह उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक के दफ्तर पुलिस के सुरक्षा घेरे में पहुंच जाता। मऊ का मुख्तार और चंदौली का ब्रजेश सिंह, पूर्वांचल के दो ऐसे अपराधी निकले जिन्होंने अपराध को धर्म और जाति की चाशनी में सानकर सत्ता को अपनी चेरी बनाकर दिखा दिया। मऊ से बनारस तक नशे का कारोबार हो या मछली और कोयले का, पूर्वांचल में पले-बढ़े किसी भी व्यक्ति से पूछकर देखिए, कहानी की रवानी मिलेगी उसके बयानों में। राजनीति उसके यहां नाक रगड़ती और पुलिस-प्रशासन के बड़े-बड़े बांके बहादुर मुख्तार की कृपा दृष्टि के लिए विकल रहते। एक समय था जब मुख्तार उनके लिए सत्ता का प्रिय बने रहने में मददगार था। मऊ के भयानक दंगों में खुली जिप्सी में घूमते मुख्तार की तस्वीर सत्ता और दबंगई के घालमेल का नमूना बन गई थी।

पंजाब में अगर कांग्रेस सरकार न होती और मऊ के दंगे व विधायक कृष्णानंद राय की हत्या को लेकर भाजपा मुख्तार पर आक्रामक न होती, तो भी क्या उसका एक राज्य से दूसरे राज्य में तबादला इतना देशव्यापी मुद्दा बना होता। मुख्तार को यूपी न भेजने के लिए पंजाब सरकार ने सारे घोड़े खोल दिए। आखिर क्यों इतना शोर मचा। एक राज्य ही तो बदला है। एक जेल ही तो बदली है। ऐसी क्या आफत आ गई कि यूपी सरकार को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा और अदालत के दखल के बाद ही एक सरगना को यूपी भेजने के लिए पंजाब सरकार तैयार हुई। मुख्तार अंसारी को राजनीति का मुद्दा क्यों बनाया गया और क्यों पंजाब पुलिस उसकी सहचरी जैसी दिखने लगी। मुख्तार अंसारी के कृतित्व पर तो कोई संदेह नहीं होना चाहिए था पंजाब सरकार को। ये सब तो जेल के रिकार्ड और पुलिस की फाइलों में है।

मुख्तार अंसारी की यूपी आमद इतनी हंगामाखेज न होती तो बाराबंकी में चल रहे फर्जी अस्पताल का राज भी न खुल पाता। इस अस्पताल के नाम फर्जी एंबुलेंस की कहानी भी न खुली होती। वह एंबुलेंस भी फर्जी नाम पर रजिस्टर्ड थी जिससे मुख्तार को पंजाब में रोपड़ से मोहाली ले जाया और वह एंबुलेंस भी चर्चा मेंं आ गई जिसमें बैठकर वह रोपड़ से बांदा पहुंचा। इस एंबुलेंस की फिटनेस वैधता भी 2017 में समाप्त हो गई थी। सवाल यह है कि वे कौन अधिकारी थे जिनकी इस फर्जी खेल में भागीदारी थी। अस्पताल और एंबुलेंस का लाइसेंस किसने बनवाया, उनकी जांच किसने की। पिछले एक वर्ष में योगी प्रशासन ने मुख्तार अंसारी और उसके लोगों की 192 करोड़ रुपये की संपत्ति या तो जब्त की है या ध्वस्त की है। इस संपत्ति को बनवाने में कौन लोग शामिल थे।

...जो नाम सामने दिखते हैं वे नहीं, जल में रहकर मगर से बैर कौन करता है। पीछे वालों के नाम सामने आ सकें तो बात है...! 

नोट : लेखक दैन‍िक जागरण उत्‍तर प्रदेश के राज्‍य संपादक हैं। 


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