अनदेखा लखनऊ: कभी न सूखने वाला एक ऐसा सरोवर, जहां पहुंचने पर चिंताओं से मुक्त Lucknow News
लखनऊ के मलिहाबाद कस्बे से मात्र एक किमी दूर इस पवित्र स्थल पर है एक पावन सरोवर।
लखनऊ [पवन तिवारी/आशीष पांडेय]। पावन नवरात्र में आध्यात्मिक वातावरण है। आपको ले चलते हैं शहर से बाहर मलिहाबाद के श्री चिंताहरण हनुमान जी के दिव्य दर्शन कराने। मंदिर परिसर में ही भगवान गोपेश्वरनाथ के दिव्य विग्रह के साथ एक अनूठी गोशाला भी है।
मलिहाबाद कस्बे से मात्र एक किमी दूर इस पवित्र स्थल पर भगवान शिव, गोशाला और हनुमान मंदिर स्थापित होने की कथाएं एक दूसरे से गुंथी हुई हैं। यहीं पर एक पावन सरोवर भी है। कहते हैं कि श्री गोपेश्वरनाथ जी का मंदिर और सरोवर सबसे पहले अस्तित्व में आए। उसके बाद गोशाला बनी और फिर भक्तों की चिंता हरने वाले श्री चिंता हरण हनुमान जी का स्थान वजूद में आया।
यहां से जुड़े लोग बताते हैं कि कई बरस पहले मलिहाबाद दिन्नी शाह नाम के एक सेठ रहा करते थे। उनको कोई संतान नहीं थी। एक संत के आदेश पर उन्होंने भगवान शिव की स्थापना की और पक्के सरोवर का निर्माण करवाया। कहते हैं कि सरोवर में देश की सभी पवित्र नदियों सहित समुद्र का जल घट में भरकर स्थापित किया गया था। उसी वक्त यहां विशाल यज्ञ का भी आयोजन हुआ। मलिहाबाद के पुराने लोग बताते हैं कि मंदिर और सरोवर का निर्माण करीब ढाई सौ साल पहले हुआ। सरोवर का जल कभी सूखा नहीं। बाद में इसका जीर्णोद्धार भी हुआ।
कैसे बनी गोशाला?
साल 1999 में श्रीराम महायज्ञ हुआ। महायज्ञ में ही निर्णय हुआ कि यहां ऐसी गोशाला बनाई जाए, जहां घायल, अशक्त और बेसहारा गोवंश की सेवा और उपचार इत्यादि किया जा सके। उद्देश्य पवित्र था तो वर्ष भर के भीतर ही साल 2000 में गोशाला बनकर तैयार हो गई। मानस मर्मज्ञ स्व. पंडित रामनाथ पांडेय समय-समय पर गोशाला परिवार का मार्गदर्शन करते रहे। उनके अलावा दिवंगत रामबाबू गुप्ता, राधेश्याम गुप्ता, नंदकिशोर गुप्ता, दुर्गा प्रसाद गुप्ता, जानकी प्रसाद शर्मा, रामेश्वर प्रसाद राठौर, वीरेंद्र कुमार वर्मा, राजाराम वर्मा, अवधेश निगम, आदित्य प्रकाश अवस्थी, उमाकांत गुप्ता, प्रेम नारायण गुप्ता, आईएएस राजीव गुप्ता, बालामऊ के प्रेम नारायण गुप्ता और आरएसएस के शांत रंजन का बड़ा योगदान है।
ऐसे हुई चिंताहरण हनुमान की स्थापना
बताते हैं कि एक बार यहां भव्य सुंदरकांड पाठ हुआ। तभी श्री हनुमान जी को गोशाला के राजा राजा के रूप में विराजमान करने का फैसला हुआ। मंदिर के चारों ओर कांच की दीवार है। गोशाला परिवार के प्रबंधक उमाकांत गुप्ता, सहयोगी पंकज और विश्वनाथ गुप्ता का दावा है कि यह अनूठा मंदिर है, जहां हनुमानजी के महाराजा स्वरूप के दर्शन होते हैं। ऐसा दर्शन केवल राजस्थान के सालासर में मिलता है।
गोशाला में मनाते हैं खुशियां
आपको यहां की एक खास परंपरा से परिचित कराते हैं। आप चाहें तो अपने जन्मदिवस, शादी की सालगिरह, पूर्वजों की पुण्यतिथि यहां मना सकते हैं। इसके लिए आपको गायों के एक दिन के चारे की व्यवस्था करनी होती है। इस मौके पर सुंदरकांड का पाठ भी कर सकते हैं। अतिशयोक्ति न होगी कि यह गोशाला प्रदेश की मॉडल गोशाला है।
बारी-बारी से करते हैं सेवा
जख्मी, बीमार, कमजोर गोवंश की सेवा की बात आती है तो यहां के लोग आलस्य नहीं करते। उमाकांत, अभिषेक, प्रकाश, सुनील लोधी, केसरी यादव, राकेश दीक्षित, रामकुमार राठौर, राजू, लोकेश, नवीन राठौर, विवेक, बलराम, दिलीप आदि सुबह सवेरे गोशाला की साफ-सफाई और गायों की मरहम पट्टी भी करते हैं। मौजूदा समय में यहां लगभग 300 गोवंश हैं। इनमें ज्यादातर ऐसी हैं, जो दूध नहीं देतीं, चलने-फिरने और देखने में लाचार या बीमार हैं।
गोपेश्वरनाथ गोशाला
कैसे पहुंचे ?
लखनऊ-हरदोई रोड पर दुबग्गा होते हुए मलिहाबाद आएं। ट्रेन से आना हो तो चारबाग, आलमनगर स्टेशन जाएं। यहां ट्रेन और मेमू चलती हैं। रोडवेज बस से भी जा सकते हैं। इसके अलावा दुबग्गा से प्राइवेट बसें भी चलती हैं। रेलवे और बस स्टेशन से ई-रिक्शा पकड़कर मंदिर और गोशाला तक पहुंच सकते हैं।