Move to Jagran APP

नाश्ते की शुरुआत चटपटे मसालेदार खस्तों के साथ, ये है लखनऊ की गलियों का जायका

लखनऊ के जायकों में सबसे ज्यादा खस्ता कचौड़ी की अलग पहचान है रत्तीलाल के खस्ते बहुत मशहूर है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 08 Feb 2019 03:11 PM (IST)Updated: Sun, 10 Feb 2019 09:09 AM (IST)
नाश्ते की शुरुआत चटपटे मसालेदार खस्तों के साथ, ये है लखनऊ की गलियों का जायका
नाश्ते की शुरुआत चटपटे मसालेदार खस्तों के साथ, ये है लखनऊ की गलियों का जायका

लखनऊ, कुसुम भारती। मसालेदार चटपटे आलू और मटर के साथ गर्मागर्म खस्ता, साथ में नींबू, हरी मिर्च, लच्छेदार प्याज, जिसे देखते ही मुंह में पानी आ जाए। वॉओ! बोलते हुए आमीन ने पहले से मसालों में लिपटे आलू-मटर पर नींबू का रस निचोड़कर उसके जायके को जैसे दोगुना दिया। फिर झट से बड़ा सा मुंह खोलकर दो-तीन बाइट में ही खस्ते को चट कर गए। ये नजारा था, हीवेट रोड स्थित रत्ती लाल खस्ता शॉप का। जहां, लोगों के नाश्ते की शुरुआत ही खस्ता और आलू से होती है।

loksabha election banner

1937 से यह दुकान अपने एरिया में ही नहीं, बल्कि शहर भर में स्वादिष्ट खस्ते के लिए मशहूर है। हालांकि, शहर में और भी ऐसी कई दुकानें हैं, जो खस्ते के लिए जानी जाती हैं। तो, चलिए इस बार लखनवी जायकों में लेते हैं, चटपटे आलू संग खस्ते का चटखारा।

कहीं आलू, छोले तो कहीं मटर संग मिलता है खस्ता

खस्ता खाने के शौकीन केवल इसके स्वाद से मतलब रखते हैं। इसे किसके साथ परोसा जा रहा है, इससे उन्हें फर्क नहीं पड़ता। कहीं-कहीं इसके साथ आलू मिलता है, तो कहीं छोले और कहीं आलू-छोले दोनों ही मिलते हैं। कुछ लोग इसे आलू और पीली मटर के साथ भी सर्व करते हैं। वहीं, कुछ जगह खस्ते को बीच से फोड़कर उसमें आलू और खट्टी चटनी भरकर जब खाया जाता है, तो उसके आगे छप्पन भोग भी फेल है। खस्ता खाने का तरीका भी बड़ा खास होता है। इसे खाने के लिए आपको बड़ा सा मुंह खोलना होगा। छोटा मुंह खस्ते के लिए फिट नहीं। खस्ता कुतरा नहीं जाता, भकोसा जाता है। यानी पूरे का पूरा खस्ता दो से तीन बार में ही खत्म कर दिया जाए, तभी आप उसका पूरा स्वाद ले सकेंगे।

बरकरार है 82 साल पुराना स्वाद

शहर में रत्ती खस्ते वाले के नाम से मशहूर हीवेट रोड स्थित दुकान में खस्ता खाने के शौकीनों की भीड़ दूर से ही दिख जाती है। हालांकि, अब इसे दुकान कहना सही नहीं होगा, क्योंकि 82 साल पहले रत्ती लाल के नाम से शुरू की गई इस दुकान ने थोड़ा मॉडर्न लुक ले लिया है। दुकान के प्रोपराइटर रवि गुप्ता व ऋषि गुप्ता कहते हैं, 1937 में दादा स्व. रत्ती लाल जी ने खस्ते की दुकान शुरू की थी, फिर पिता स्व. राजकुमार गुप्ता ने और अब हम दोनों भाई पुश्तैनी काम को आगे बढ़ा रहे हैं। खस्ते की खासियत पर कहते हैं, उरद की दाल भरकर खस्ता तैयार होता है, इसके साथ सलाद, मसालेदार सूखे आलू और मटर की सब्जी दी जाती है। सब्जी का चटपटा स्वाद ही इसकी खासियत है, जिसमें करीब 70 प्रकार के मसाले डाले जाते हैं। बाजार से खड़े मसाले लाकर हम अपने सामने पिसवाते हैं। सब्जी में मसालों का सही अनुपात ही उसके स्वाद को बढ़ाता है। पुराने कारीगर आज भी साथ हैं, जो नए कारीगरों को स्वाद मेनटेन रखना सिखाते हैं।

यहां शाम चार बजे तक रहती है भीड़

रत्ती लाल की दुकान के बाईं ओर जो सड़क जाती है, वह लाटूश रोड, गौतम बुद्ध मार्ग पर निकलती है। बस, सड़क खत्म होते ही दाहिने हाथ के नुक्कड़ पर दुर्गा खस्ता कार्नर है। जहां, सुबह आठ बजे से स्वाद के शौकीनों की भीड़ लग जाती है। देखने में भले छोटी सी दुकान है, पर स्वाद के मामले में फाइव स्टार होटल भी फेल हैं। इस बात की गवाही यहां लाइन में खड़े खस्ते के शौकीन देते हैं। इनका खस्ता उरद और मूंग की दाल से तैयार होता है। मटर-आलू की सब्जी के साथ नींबू, प्याज, हरी मिर्च स्वाद को और बढ़ा देता है। यहां तो, कुछ लोगों का नाश्ता ही खस्ते से शुरू होता है, तो कुछ लंच में भी खाना पसंद करते हैं। वहीं, कुछ शाम को चाय में स्नैक्स के तौर पर खाते हैं। दुकान के मालिक अजय साहू कहते हैं, पिताजी स्व. दुर्गा प्रसाद साहू ने 1952 में दुकान खोली थी, 1985 से बेटे के साथ मैं इसे संभाल रहा हूं। खस्ते का स्वाद उसकी सब्जी से होता है। आलू की सूखी सब्जी और मटर में काली मिर्च, जीरा, लौंग, इलायची, छोटी पीपल, बड़ी पीपल, जावित्री, दालचीनी समेत करीब 60 प्रकार के मसाले भूनकर डाले जाते हैं। ये मसाले हम घर पर तैयार करते हैं। एक घान खस्ता और सब्जी बनाने में करीब डेढ़-दो घंटे लगते हैं।

साहू नाम से कई खस्ते वाले

देखने में एक छोटी सी गुमटी जैसी दुकान, मगर स्वाद के दम पर बड़ी- बड़ी दुकानों को मात देती है। लाटूश रोड चौराहे से कैसरबाग जाने वाली रोड के बाएं हाथ पर दूसरी गली में ढाल चढ़ते ही श्री साहू खस्ता कार्नर है। दुकान में वीरेंद्र अपने भाई के साथ ग्राहकों को जल्दी-जल्दी खस्ता सर्व करने में लगे थे। उनके हाथों की स्पीड और पैकिंग का अंदाज देखने लायक है। एक ग्राहक को जितनी देर खस्ता खाने में लगती है, उतनी देर में वे पांच ग्राहकों को खस्ता पैक कर विदा कर देते हैं। कुछ तो वहीं खड़े होकर स्वाद लेते दिखाई देते हैं। चटपटे मसाले वाले आलू और मटर के साथ इनके खस्ते भी दूर-दूर तक मशहूर हैं। लालकुआं पर भी एक खस्ते की दुकान है जो साहू के नाम से मशहूर है। इसी तरह ऐशबाग में बाबूलाल, हजरतगंज व चौक में रामआसरे, परंपरा जैसे बड़े प्रतिष्ठानों में भी खस्ता खाने वाले शौकीनों की भीड़ देखी जा सकती है।

ठेलों पर मिलता है अलग स्वाद

आपको कुछ चलते-फिरते चाट के ठेलों पर खस्ते का अलग ही स्वाद मिलेगा। इनके खस्ते हल्के और फूले हुए होते हैं। चाट वाला पहले इसको फोड़ता है, फिर इसमें मटर भरता है, ऊपर से नमक, लाल मिर्च, भुना गर्म मसाला, इमली की मीठी चटनी, कतरी हुई प्याज, हरी मिर्च, धनिया, नींबू का रस निचोड़कर जब हरे-हरे पत्ते में देता है, तो देखते ही मुंह में पानी आ जाता है। इसे खाने के लिए भी आपको बड़ा सा मुंह खोलना पड़ेगा, क्योंकि इसको यदि आप तोड़कर खाएंगे, तो वह स्वाद नहीं मिलेगा जो एक बार में खाने से मिलता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.